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This Article is From Nov 08, 2017

सिर्फ मैरीकॉम ही नहीं, बल्कि इन महिला बॉक्सर्स में भी है गजब का दमखम

Vimal Mohan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 08, 2017 20:13 pm IST
    • Published On नवंबर 08, 2017 20:11 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 08, 2017 20:13 pm IST
भारतीय बॉक्सिंग लेजेंड और ओलिंपिक पदक विजेता 5 बार की वर्ल्ड चैंपियन 34 साल की उम्र में जब गोल्ड मेडल जीतती हैं तो उनके साथ देश में तैयारी करती हज़ारों महिला बॉक्सर्स के सपनों को एक उड़ान मिल जाती है. एमसी मैरीकॉम ने वियतनाम में खेली जा रही एशियन चैंपियनशिप में पांचवीं बार गोल्ड मेडल जीतकर साबित कर दिया कि उनमें बेमिसाल इच्छा शक्ति है. लेकिन उनकी वापसी की कहानी आसान नहीं रही है. वियतनाम जाने से पहले वो अपनी से आधी उम्र की लड़कियों के साथ पसीना बहाते, उन्हें चुनौती देते और उनसे आगे निकलती नज़र आईं. तीन बच्चों की मां ने 2014 में इंचियन एशियन गेम्स का गोल्ड जीतने के बाद उन्होंने अपना वज़न कम कर खुद को 48 किलोग्राम वर्ग के लिए फ़िट कर लिया. मैरीकॉम ने जाने से पहले कहा कि मुझे 48 किलोग्राम वर्ग में ट्रायल्स में कोई नहीं हरा सकता.

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मैरीकॉम रिंग में हों या बाहर उनमें गज़ब का आत्मविश्वास झलकता है. दिल्ली के आईजी स्टेडियम में अभ्यास करती छरहरी मैरीकॉम कमाल का मेहनत करती नज़र आती हैं. लेकिन जूनियर खिलाड़ियों को देखकर उनकी आंखें चमक जाती हैं. वो कहती हैं कि चार-पांच लड़कियां बेहद टैलेंटेड हैं. इनमें मैरीकॉम बनने का दम है. अगर मेहनत करे तो.

गुवाहाटी में 19 से 26 नवंबर तक होने वाले वर्ल्ड बॉक्सिंग वूमन्स यूथ चैंपियनशिप की तैयारी के लिए लगा ये कैंप जोश और महिला मुक्केबाज़ी के संवरते भविष्य की एक साफ़ तस्वीर पेश करता है. यूथ स्तर पर महिला टीम को पहली बार एक विदेशी कोच मिला है. मैरीकॉम की तरह ही हाल ही में वर्ल्ड चैंपियनशिप से भारत के लिए सिर्फ़ चौथा मेडल जीतकर लौटे दिल्ली के गौरव बिधूरी भी इनका हौसला बढ़ा रहे हैं. गौरव अगस्त महीने में वर्ल्ड चैंपियनशिप से ऐतिहासिक मेडल जीतकर लौटे तो उनके दोस्तों ने जलसा भी निकाला. लेकिन वो उन्हीं दिनों बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीत कर लौटीं पीवी सिंधु और सायना नेहवाल की तरह सुर्ख़ियां नहीं बटोर सके. वैसे गौरव को लगता है कि नए बॉक्सिंग फेंडरेशन के वजूद में आने से खिलाड़ियों को बड़ा फ़ायदा हो रहा है. वो कहते हैं, "पिछले 3-4 साल बॉक्सिंग फ़ेडरेशन का वजूद नहीं होने से हमारा बड़ा नुकसान हुआ. नई फ़ेडरेशन ने हमें एक्सपोज़र के कई मौक़े दिये हैं." 

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नासिक की 81+ किलोग्राम वर्ग में मुक्केबाज़ी करने वाली शायान पठान का एक अलग संघर्ष रहा है. शायान के पिता का सॉफ़्टवेयर बिज़नेस है और घर में पढ़ाई का माहौल है. वो कोई और खेल भी खेल सकती थीं. लेकिन अचानक बॉक्सिंग का जुनून चढ़ गया. 18 साल की शायान अच्छी तरह समझती हैं कि इतने बड़े वज़न में बॉक्सिंग करने के क्या ख़तरे हैं. पिता की सॉफ़्टवेयर कंपनी की वजह से उन्हें आम बॉक्सर्स की तरह पैसे का संघर्ष नहीं करना पड़ रहा. वो पहले गुवाहाटी और फिर टोक्यो ओलिंपिक्स का ख़्वाब पाल रही हैं. शायन पठान कहती हैं, "मेरा सपना तो ओलिंपिक्स है. लेकिन मैं जानती हूं मुझे काफ़ी मेहनत करनी होगी और मैं अपना 150 फ़ीसदी देना चाहती हूं. मैं किसी से कम नहीं हूं."

ये हैं देश की और भी 'मैरीकॉम'
वैसे इसी ग्रुप में पूजा, मनदीप, साक्षी अंकुशिता, ज्योति और निहारिका जैसी दूसरी कई महिला बॉक्सर्स हैं जिनकी कहानियां हमेशा से सुनते आए दूसरे बॉक्सरों से अलग नहीं हैं. इन सबने हरियाणा ने घरों से बॉक्सिंग के रिंग तक पहुंचने के लिए अलग जद्दोजहद की है. लेकिन अब इन सबके ख़्याब बड़े हो गए हैं. इन सबमें एक ज़िद है तो है...

कोई विजेन्दर तो कोई मैरीकॉम बनने का ख़्वाब देख रही हैं.. बॉक्सिंग टीमों से जुड़े विदेशी कोचों ने इनके ट्रेनिंग का तरीका पूरी तरह बदल दिया है जिससे इनके सपनों को पंख मिल गये हैं. भारतीय बॉक्सिंग के टेक्निकल डायरेक्टर सैंटियागो निएवा कहते हैं, "आप इन्हें थोड़ा वक्त दीजिए. इनमें से कई बॉक्सर्स में अलग हुनर है. मुझे लगता है इनके सहारे भारतीय बॉक्सिंग का फ़्यूचर बहुत अच्छा है."

पढ़ें: बॉक्‍सिंग: एमसी मेरीकॉम ने एशियाई चैम्पियनशिप में जीता स्वर्ण पदक

यूथ स्तर पर भारतीय महिला बॉक्सर्स को पहली बार एक विदेशी कोच मिला है. इटली से आए विदेशी कोच रफ़ेल बेरगामास्का के खिलाड़ी इटली के लिए ओलिंपिक्स का गोल्ड मेडल (रॉबर्टो कैमारेल्ये 2008 के बीजिंग ओलिंपिक्स में स्वर्ण पदक) तक जीत चुके हैं. रफ़ेल को टूटी-फूटी अंग्रेज़ी आती है फिर भी हरियाणा और दूसरी जगह से आई लड़कियों से बातचीत में उन्हें कोई मुश्किल नहीं आती. 'चलिए, जल्दी-जल्दी, ज़ोर से मारिये, जय माता दी' जैसी अभिव्यक्तियां उनकी काफ़ी मदद करती हैं. 

मुख्य भारतीय कोच भास्कर भट्ट नए कोच रफ़ेल के कायल नज़र आते हैं. वो कहते हैं, "रफ़ेल एक शानदार कोच हैं और उन्होंने यहां खिलाड़ियों के अभ्यास का तरीका बदल दिया है. वो बहुत इंटेनसिव ट्रेनिंग करवाचे हैं. खिलाड़ियों को दिन भर नहीं थकाते. इनकी ट्रेनिंग में लड़कियों को ज़रूर अच्छा करना चाहिए.  बॉक्सिंग की फ़िज़ा फिर से बदलती दिख रही है. ये मुक्केबाज़ रियो की नाकामी से खुद को और इस टीम को कितना आगे ले जा सकेंगी इसकी एक झलक गुवाहाटी में देखने को ज़रूर मिल सकती है. फ़िलहाल मैरीकॉम ने बॉक्सिंग को सुर्ख़ियों में ज़रूर ला दिया है. 

VIDEO: भारत में और भी हैं मैरीकॉम

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