क्योंकि पत्रकारिता आज भी ज़िन्दा है...

क्योंकि पत्रकारिता आज भी ज़िन्दा है...

उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के उरई शहर में केपी सिंह के घर में घुसते ही लगता है, जैसे कई महीनों से यहां कोई नहीं रह रहा है. घर मे अस्त-व्यस्त पड़ा सामान भी यही तसदीक करता है, लेकिन हाज़िरजवाब केपी सिंह अपने 'स्पेशल' ड्राइंगरूम में कुर्सी पर बैठे दिखाई दिए. 'स्पेशल' इसलिए, क्योंकि उस कमरे में पुराने जमाने का एक टीवी था, यहां-वहां फैला सामान दिख रहा था, ऊपर एक अल्मारी उन्हें मिले सम्मानों से पटी पड़ी थी. मैंने सोचा - थोड़ा घर के अंदर भी घूम लूं - वहां गया, तो पुराने अख़बारों का ढेर लगा हुआ था, जैसे कई साल से रद्दी बेची न गई हो. सबसे भीतरी कमरे में हल्की-सी रोशनी थी, जहां वह सोते हैं... घर में वैसे तो सुख-सुविधा का कोई साधन नहीं है, लेकिन हां, एक कम्प्यूटर ज़रूर है, जिसके ज़रिये वह ख़बरें लिखतें हैं. घर में सन्नाटा छाया है, क्योंकि वह परिवार से दूर अकेले ही रहते हैं.

केपी सिंह को राष्ट्रीय स्तर पर भले ही कम लोग जानते हों, लेकिन बुंदेलखंड में वह किसी पहचान के मोहताज नहीं. एक कुशल वक्ता, इस उम्र में भी छोटी-छोटी ख़बरों की ललक, ख़बरों में गहराई, ईमानदारी और सिस्टम की धज्जियां उड़ाती ख़बरों से ही उनकी पहचान आक्रामक और खांटी पत्रकार की है.
 

kp singh jalaun bundelkhand up

हम जैसे मॉडर्न पत्रकार जहां एक महीने में ही अख़बार को रद्दी समझकर बेच देते हैं, वहीं केपी सिंह उन तमाम अख़बारों को सहेजकर रखते हैं, जिनमें देश और प्रदेश से जुड़ी खास ख़बरें छपी हों, और ज़रूरत पड़ने पर वह अख़बार निकालकर उनका प्रयोग अपनी ख़बर के लिए करते हैं. केपी सिंह ने आज के पत्रकारों की तरह पत्रकारिता का कोई प्रोफेशनल कोर्स नहीं किया है, और उनका मानना है कि पत्रकारिता जन्मजात होती है. उनका कहना है - जिसमें समाज की विसंगतियों से जूझने और उन्हें बदलने की बैचेनी नहीं, वह पत्रकार नहीं बन सकता.

आज जब जिला स्तर की पत्रकारिता बेहद जोखिम भरी है, और सरकारों के इशारे पर ख़बरों को मैनेज करने, दलाली करने या पैसे लेने के आरोप आम हैं, पिछले 35 साल से पत्रकारिता कर रहे केपी सिंह आज भी बेदाग हैं. ख़बरों की गहराई की समझ इस कदर है कि वह किसी भी बड़े राष्ट्रीय पत्रकार को बहस की चुनौती देने का माद्दा रखते हैं.

चाहे बीहड़ और चंबल के डकैतों से जुड़ी कहानियां हों, डकैतों और सफेदपोशों का सिंडिकेट हो, खनन माफिया के खिलाफ मुहिम हो या भ्रष्ट अफसरों की पोल खोलती ख़बरें हों. उन्होंने एक लंबी लड़ाई लड़ी है और इसका खामियाज़ा भी उन्होंने कई बार नौकरी गंवाकर या किसी और रूप में भुगता है, लेकिन केपी सिंह कभी बाहुबलियों या सत्ता के नशे में चूर लोगों से डरे नहीं. कई बार तो उनकी ख़बरें संसद के गलियारों में भी गूंजीं.

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बुंदेलखंड से निकलने वाले अख़बारों - जैसे दैनिक कर्मयुग प्रकाश, दैनिक अग्निचरण, दैनिक विवस्वान और दैनिक लोकसारथी में अहम पदों पर काम कर चुके केपी सिंह कुछ समय के लिए दैनिक जागरण में भी रहे, कई बार उन्हें बेहतरीन पत्रकारिता के लिए नवाज़ा गया, लेकिन फक्कड़ स्वभाव के चलते वह आज के दौर की पत्रकारिता के ढांचे में खुद को कई बार असहज महसूस करते हैं, इसलिए अब 'जालौन टाइम्स' नाम से खुद का एक न्यूज़ वेब पोर्टल चलाते हैं.

उनकी जीवनी का उल्लेख बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की एक किताब 'बुंदेलखंड में साहित्य की परंपरा' में है. केपी सिंह ने बुंदेलखंड में पत्रकारिता की शुरुआत देश के जाने-माने पत्रकार स्वर्गीय आलोक तोमर के साथ की थी. आज जब पत्रकारिता के दौर में कई पत्रकार राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ता बन गए हैं या दलाली के आरोप झेल रहे हैं, प्रादेशिक और जिलास्तरीय पत्रकारिता कर रहे केपी सिंह निर्भीक होकर डटे हैं. वह नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए एक बड़े प्रेरणास्रोत हैं.

मुकेश सिंह सेंगर NDTV इंडिया में कार्यरत हैं...

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