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This Article is From May 19, 2016

सीरियाई संकट...एक सभ्यता का विनाश

Mihir Bholey
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 19, 2016 16:32 pm IST
    • Published On मई 19, 2016 15:37 pm IST
    • Last Updated On मई 19, 2016 16:32 pm IST

सीरिया से मिलने वाली ख़बरें दिल दहला देने वाली हैं। हमारी आंखों के सामने एक सभ्यता का विनाश जारी है। सीरिया कोई सामान्य देश नहीं, विश्व सभ्यता के इतिहास की एक धरोहर है, जिसकी परम्परा हमें यहूदियत, ईसाइयत और इस्लाम के पहले ले जाती है। सीरियाई शहर दमिश्क, अलेप्पो का जिक्र हिब्रू बाइबिल, ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट के साथ कुरान शरीफ में भी मिलता है जो ज्युडो-क्रिश्चियन परम्परा के तीनों धर्मों - यहूदियत, ईसाइयत और इस्लाम के साझा इतिहास का हिस्सा है। अरब स्प्रिंग के साथ शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध के पांच वर्ष बीत चुके हैं।  

इस बीच राष्ट्रपति असद के समर्थक और विरोधी गुटों, इस्लामिक स्टेट, रूस, अमेरिका द्वारा की जा रही नृशंस बमबारी ने सीरिया के शहरों को खंडहरों में तब्दील कर दिया है। सीरियाई समाज अपने ही विरुद्ध विभाजित हो चुका है। इसमें शिया-सुन्नी के ऐतिहासिक अंतर्विरोध हैं, इस्लामिक स्टेट की कट्टर धर्मान्धता है, अप्रजातांत्रिक शासन-पद्धति के खिलाफ उबलता गुस्सा है और पश्चिमी देशों के अपने निहित स्वार्थ हैं। इन सब के बीच पामिरा, बाल शामिन, जोबार यहूदी मंदिर, बोसरा शहर, दमिश्क, अलेप्पो, सभी एक-एक कर सभी ध्वस्त होते जा रहे हैं जो कभी विश्व सभ्यता के केंद्र थे। क्या बाइबिल में की गई सीरिया के विध्वंस की भविष्यवाणी सच हो रही है? कौन जाने?

इसमें शक नहीं कि पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप ने पश्चिम एशिया के तथाकथित तानाशाह तो उखाड़ फेंके पर साथ ही वे इन देशों को भीषण सामाजिक और राजनैतिक अस्थिरता के दलदल में भी धकेल गए। राष्ट्रपति असद के अनुसार, सीरियाई गृहयुद्ध अमेरिका द्वारा इराक की बर्बादी का ही एक परिणाम है। सीरिया में अब तक 22 लाख लोग बेघरबार हो चुके हैं। करीब 45 लाख लोग घर छोड़ कर भाग चुके हैं। मरने वालों की तादाद ढाई लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है और वे अपने पीछे छोड़ गए हैं लाखों मासूम, घायल, बेसहारा बच्चे जो भय, कुपोषण और मानसिक रोग के शिकार बन चुके हैं। जिनका जीवन आसमान से होती बमबारी, ढहते मकानों, गिरती लाशों और इस्लामिक स्टेट की क्रूरता को झेलते बीता हो... उनके लिए जीवन का क्या अर्थ बचा होगा, इसपर कौन सोच रहा है? क्या इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों द्वारा उन्हें नफरत की भट्ठी का ईंधन बनाना मुश्किल होगा?

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सीरियाई गृहयुद्ध दुनिया की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी बताई जा रही है। सामाजिक खाईयां जो हरेक समाज में मौजूद होती हैं, इतनी बढ़ चुकी हैं कि अब उन्हें पाटना मुश्किल हो चला है। अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट जॉन केरी जो कि हाल में जेनेवा में विभिन्न सीरियाई गुटों के बीच शांति वार्ता की मध्यस्थता कर रहे थे, उन्होंने भी माना है कि कई मायनों में वहां परिस्थिति बिलकुल काबू से बाहर है और निराशाजनक भी है। सीरिया के पश्चिमी भाग में अलवाई शियाओं का कब्ज़ा है जो राष्ट्रपति असद के पक्ष में हैं। उसके मध्य में सुन्नी इस्लामिक गुट इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा से जुड़े जब्हत-अल-नुसरा का कब्ज़ा और उत्तर-पूर्व में कुर्दों का दबदबा है।

राष्ट्रपति असद इसे गृहयुद्ध की जगह आतंकवाद मानते हैं और इसके लिए पश्चिमी मुल्कों को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनके अनुसार अस्सी के दशक में पश्चिमी मुल्कों ने अफ़ग़ान आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी का रुतबा दिया और 2006 में जब इराक में उनकी शह पर इस्लामिक स्टेट खड़ा हुआ तो अमेरिका ने उसका खात्मा नहीं किया। आज अमेरिका और नाटो के सदस्य देश उसके खिलाफ अंधाधुंध बमबारी कर रहे हैं जिसमें ज्यादातर निर्दोष नागरिक ही मारे जा रहे हैं।

सीरियाई नागरिक अब छोटे-छोटे कबीलों में तब्दील हो चुके हैं। ईरान और रूस असद की शिया सरकार का समर्थन कर रहे हैं तो अमेरिका समर्थित सऊदी अरब, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात विपक्षी सुन्नी गुटों के साथ है। इस्लामिक स्टेट का सफाया करने के नाम पर अमेरिका और नाटो द्वारा की जा रही बमबारी में असद समर्थक गुटों को निशाना बनाने का काम किया जा रहा है तो रूस द्वारा की जा रही बमवर्षा में असद विरोधियों को निशाना बनाया जा रहा है। लेकिन युद्ध की शब्दावली में जिसे ‘कोलैटरल डैमेज’ कहते हैं उसमें सभी मिलकर अंत में सीरिया की ऐतिहासिक विरासत और उसके निर्दोष नागरिकों का ही सफाया कर रहे हैं।

इस विध्वंस के पीछे क्या है – ‘अरब स्प्रिंग’ से उपजा प्रजातान्त्रिक संघर्ष, इस्लामी दुनिया पर वर्चस्व के लिए जारी शिया-सुन्नी टकराव, बर्बर जिहादी संगठनों द्वारा दुनिया को दारुल इस्लाम बनाने की कट्टर सोच, वैश्विक राजनीति की धूर्त चाल या इन सब का मिला-जुला रूप? चिंता इस बात की भी है कि सामाजिक अंतर्विरोधों को उभार कर की जाने वाली अदूरदर्शी राजनीति का यह मॉडल कहीं हम भी न अपना बैठें। बेतुकी और असंवैधानिक बातों को लेकर हंगामा खड़ा करना और फिर सामाजिक अंतर्विरोधों को बेवजह उभार कर सरकार से टकराव और अराजकता की स्थिति पैदा करने का जो राजनैतिक फैशन आजकल भारत में चल पड़ा है वह सीरिया जैसी स्थिति पैदा कर सकता है।

निर्दोष सीरियाई नागरिक दोहरी मार झेल रहे हैं। जो देश के अन्दर फंसे हैं वे निरंतर चल रहे गृहयुद्ध के कारण भूख, मकान, दवा, इलाज के अभाव में तड़प रहे हैं। जो शरणार्थी बन कर यूरोपीय देशों में शरण लेना चाहते हैं उसके लिए यूरोप की जनता तैयार नहीं है। जर्मनी की इमिग्रेशन विरोधी पार्टी एएफडी सीरियाई शरणार्थियों के उनके देश में आने पर विरोध जताती है। उसके अनुसार इस्लाम की सोच उनके देश के संविधान के अनुकूल नहीं है। इस्लाम उनके लिए एक बाहरी चीज है इसलिए वह ईसाइयत की तरह उनके देश में एक समान धार्मिक आज़ादी की मांग नहीं कर सकता।

चेक गणराज्य, पोलैंड, हंगरी ने सीरिया और अन्य इस्लामी देशों से होने वाले इमिग्रेशन के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाने के यूरोपियन यूनियन के प्रस्ताव के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया हुआ है। राष्ट्रपति असद के अनुसार यूरोपीय देश एक आंख से शरणार्थियों के लिए आंसू बहा रहे हैं और दूसरे से उनपर मशीनगन का निशाना साध रहे है। यदि वे सचमुच इसके लिए चिंतित हैं तो उन्हें उग्रवादियों को समर्थन देना बंद करना होगा। इस्लामी और पश्चिमी मुल्कों का यह बढ़ता टकराव कहीं तीसरे विश्वयुद्ध का दरवाजा न खोल दे इस खतरे पर भी सभी को गंभीरतापूर्वक सोचने की ज़रुरत है।

मिहिर भोले राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान, अहमदाबाद में इंटरडिसिप्लिनरी स्टडीज्‍ड की सीनियर फैकल्टी हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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