मेरे दोस्त ने कहा कि जूता उतारना पड़ेगा, क्योंकि छोटा बच्चा फर्श पर चलता है। इसके कारण दीदी भी जूता या चप्पल अंदर नहीं पहनती हैं। मैं और मेरा दोस्त उस स्यूट के ड्राइंगरूमनुमा जगह पर बैठ गए। कमरे के अंदर से पूजा करने की आवाज आ रही थी। मेरे जेहन में उप्र के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखने वाली महिला की कई छवि उमड़-घुमड़ रही थी, लेकिन पांच सात मिनट इंतजार करने के बाद जब वह आईं तो उनके पैरों में चप्पल नहीं थी। दरम्याना कद और सिम्पली ब्यूटीफुल। उनके बारे में बस अंग्रेजी का यही शब्द लिख सकता हूं। यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर से इंटरनेशनल रिलेशन में मास्टर की डिग्री ले चुकी हैं। जरूरत के मुताबिक ही अंग्रेजी बोलने वाली यह महिला मुलायम की छोटी बहू और प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव हैं।
छोटे से औपचारिक परिचय के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। वह हर्ष एनजीओ की ब्रांड अंबेसडर हैं। इसके जरिये महिलाओं के बीच में पुलिस और सिस्टम के बारे में जागरुकता फैलाने का काम करती हैं। उन्होंने कहा, उप्र इतना बड़ा है और सामाजिक काम करने का इतना स्कोप है कि जितना काम करो उतना कम है।
वह कहती हैं कि पुलिस को लेकर समाज में काफी डर है, खासतौर पर महिलाएं थाने जाने से घबराती हैं। मैं उन्हें इस बारे में लगातार जागरूक कर रही हूं कि अपनी समस्याओं को लेकर वह बेखौफ थाने जाएं और शिकायत करें। वह एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च करने की सोच रही हैं, जिससे मुसीबत के समय महिलाएं तुरंत सहायता के लिए पुलिस से संपर्क साध सकें।
इन सारे विषयों पर चर्चा करने के बाद मैंने माहौल को हल्का करने के लिए पूछा, प्रतीक से आपकी मुलाकात कैसे हो गई। वह हंस पड़ीं, बोलीं, हां मैं लोरेटो कान्वेंट में पढ़ती थी। प्रतीक सीएमएस में पढ़ते थे। वह मुझसे दो साल बड़े हैं। मैं जब 9वीं क्लास में थी, प्रतीक 11 वीं में थे। तब मेरी मुलाकात एक छोटी-सी बर्थ डे पार्टी में उनसे हुई थी। प्रतीक की मां यानी मेरी सासु मां को पता था कि मैं गाना अच्छा गाती हूं।
उसी गाने ने जिंदगी को एक शानदार मोड़ दे दिया। मैंने पूछा, वह कौन-सा गाना था। वह झेंपते हुए बोली 'देवदास' फिल्म का ये सिलसिला है प्यार का...
यह कहते हुए वह हंसने लगीं। कहने लगीं कि इस गाने के बाद प्रतीक के याहू मैसेनजर पर कई मैसेज आए। मैंने सात दिन बाद ये मैसेज पढ़े। इतना सुनते ही हम लोग हंसने लगे। मैंने कहा, शुक्र है आज का दौर नहीं था।
राजनीति को ना..
राजनीतिक परिवार की बहू किस नेता की तारीफ करती हैं, किसकी बुराई, यह हमेशा से लोगों के लिए दिलचस्पी का विषय रहा है। मुलायम सिंह के प्रति सम्मान और अखिलेश की तारीफ के कसीदे सुनकर मैं बोला इन दोनों को छोड़कर कौन-से नेता को आप पसंद करती हैं। क्या मोदी अच्छा काम कर रहे हैं। वह झिझकते बोलीं, मोदी का फिलहाल का काम अच्छा है, लेकिन बदलते वक्त में उनकी क्या छवि मेरे दिमाग होगी कहना मुश्किल है, लेकिन गांधी जी और अमेरिका का राष्ट्रपति जॉन एफ केनडी की मैं प्रशंसक हूं, लेकिन मैं खुद राजनीति नहीं करना चाहती, बस समाज के लिए अच्छा काम कर सकूं, इसी पर मेरा फोकस है। भातखंडे संगीत विद्यालय से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले चुकी अपर्णा यादव की मनपसंद ठुमरी अवध के नवाब वाजिद अली शाह की लिखी...बाबुल मोरा नईहय्यर छूटा जाए...है।
बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाती वह कहती हैं कि आज का मीडिया जिम्मेदार नहीं है। किसी बात पर रिसर्च नहीं करता है। मेरे पिता भी टाइम्स आफ इंडिया के संपादक रहे हैं। वह दौर था जब पत्रकार रिसर्च करके पूरी जिम्मेदारी से खबर लिखते थे। आज का पत्रकार क्या लिख दे, कुछ पता नहीं है। मैं हंसा, मैंने कह, ये आरोप वाजिब भी हैं और जरूरी भी।
कुछ देर बातचीत के सिलसिले के बाद मैंने मोबाइल में समय देखा, फिर अपर्णा यादव को देखकर मैं उठ खड़ा हुआ। मैंने कहा, मैम फिर मिलेंगे। मैं आपसे मुलाकात का ब्यौरा ब्लॉग पर लिखूंगा तो नाराज तो नहीं होंगी, बदले में वह सौम्यता से हंस पड़ीं।