करवट लेती देश की राजनीति

यानि एक और राज्य बीजेपी के पाले से निकलता दिख रहा है. 

करवट लेती देश की राजनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

मौजूदा साल में एनडीए में कुछ उठापटक के दौर आपको देखने को मिल सकते हैं. जाहिर है लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं एनडीए के सहयोगी दलों में बैचेनी बढ़ती जा रही है. बगावत का बिगुल सबसे पहले शिवसेना ने बजाया है जिसने साफ कह दिया कि अगला चुनाव वो अपने दम पर लड़ेगी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और कह रहे हैं कि शिव सेना हर दो महीने पर इस तरह की धमकी देती रहती है. 

मगर यह भी सच्चाई है कि शिवसेना के बिना बीजेपी की राह महाराष्ट्र में उतनी आसान नहीं होगी. शिवसेना के 21 फीसदी वोट को हल्के में नहीं आंकना चाहिए. उससे भी महत्वपूर्ण बात है कि शिवसेना और अकाली दल बीजेपी की हमेशा से स्वाभाविक सहयोगी रही हैं और अब उसका दूर जाना अपने आप में कई राजनैतिक संकेत दे रहा है. यही नहीं, दूसरी तरफ तेलगु देशम भी बीजेपी से दूर जा रही है. चंद्र बाबू नायडू ने कहा है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं की मांगों को और अब सहा नहीं जा रहा है. अभी तक हम मित्र धर्म को निबाहे जा रहे हैं, मगर अब मेरे लिए अपने कार्यकर्ताओं को समझाना और अब और आसान नहीं होगा. यानि नायडू ने भी अपनी तैयारी पूरी कर रखी है. यानि एक और राज्य बीजेपी के पाले से निकलता दिख रहा है. 

इधर बीजेपी में यह विचार जोर शोर से चल रहा है कि विधान सभा और लोक सभा का चुनाव साथ-साथ कराया जाए. इसके पक्ष में खुद प्रधानमंत्री हैं और उनके पीछे है संघ. उम्मीद की जा रही है कि इस साल के अंत में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा का चुनाव भी करवा लिया जाए और इसी में बिहार का चुनाव भी जोड़ दिया जाए. 

मगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह रहे हैं कि चुनाव तय कार्यक्रम के अनुसार 2020 में ही होगा. मगर जिस तरह से नीतीश कुमार ने बिहार में सरकार बनाई है, बीजेपी वहां पर हावी होने की कोशिश करेगी और कर भी रही है. बिना बिहार पैकेज के मिले यदि नीतीश चुनाव में जाते हैं तो उनका आरजेडी खूब उपहास बनाएगी. 

कहा जा रहा है कि शराब बंदी से जो बिहार के राजस्व में कमी आई है उसकी भरपाई के लिए नीतीश कुमार को बीजेपी के आगे पीछे डोलना ही पड़ेगा. माना जा रहा है कि बीजेपी 40 लोक सभा सीटों में से 9 सीटें नीतीश कुमार को ऑफर करने वाली है. वैसे अभी तक बिहार की 40 लोकसभा सीटों के लिए 25-15 का फार्मूला चलता आ रहा है यानि 25 सीटों जेडीयू और 15 सीट बीजेपी. 

बिहार विधानसभा की 243 सीटों में 71 जेडीयू के पास हैं तो 52 बीजेपी के पास. अब जेडीयू अपने लिए सम्मानजनक सीटों की मांग कर रही है मगर क्या यह संभव है. लगता नहीं है कि बीजेपी ने इस बार यदि अपना दमखम नहीं दिखाया तो फिर कभी मौका नहीं आएगा. एक तरफ जहां शिव सेना और तेलगू देशम अपना दम दिखा रही हैं वहीं नीतिश कुमार वैसे हालात में नहीं हैं. उन्हें बीजेपी के पीछे ही चलना पड़ेगा. 

यानि देश की राजनीति अब एक नई करवट बदल रही है लगता है कि 2019 की तैयारी शुरू हो गई है और सरकार में होने का फायदा एनडीए उठाना चाहती है.

(मनोरंजन भारती एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल, न्यूज हैं)

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