बिहार चुनाव (Bihar Elections) के बारे में अभी तक यह कहा जा रहा था कि यहां तीन बड़े दल हैं जिसमें से दो एक साथ हो गए तो चुनाव वही जीतेंगे. जैसे कि जेडीयू (JDU) और बीजेपी (BJP), या कहें पिछली बार जेडीयू और आरजेडी (RJD). मगर बिहार में जिस तरह के चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने अपने तेवर दिखाए हैं उससे बिहार का चुनाव दिलचस्प हो गया है. एक तो चिराग पासवान ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के अस्तित्व को ही नकारते हुए जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. चिराग की इस घोषणा के पीछे बीजेपी की भी रणनीति दिखाई दे रही है.
बीजेपी और जेडीयू इस बार बराबर सीटों पर लड़ रहे हैं. यदि 2010 के आंकड़ों को देखें तो जब बीजेपी और जेडीयू एक साथ लड़े थे तब जेडीयू 141 सीटों पर लड़ी थी और बीजेपी 102 पर. तब जेडीयू ने 15 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने 91 सीटें. फिर 2015 में जेडीयू,आरजेडी और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. जबकि पासवान की एलजेपी बीजेपी के साथ एनडीए का हिस्सा थी. एलजेपी 40 सीटों पर लड़ी थी और 2 सीटें जीत पाई थी. अब जब रामविलास पासवान अपने गिरते स्वास्थ्य की वजह से अस्पताल में हैं, पूरी पार्टी चिराग पासवान के हवाले है और वही रणनीति तय कर रहे हैं. ऐसे में चिराग पासवान के यह कहने से कि उनका गठबंधन बीजेपी के साथ है और वे जेडीयू के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारेंगे, बिहार की राजनीति गरमा गई है.
चिराग को भी मालूम है कि बिहार में यदि उन्हें अपनी पार्टी का विस्तार करना है तो उन्हें यह दांव खेलना पड़ेगा और उनकी रणनीति एकदम साफ है- बीजेपी के साथ रहो और जेडीयू के विकल्प के तौर पर अपने को तैयार करो. चिराग को यह मालूम है कि बिहार की राजनीति में लालू यादव,रामविलास पासवान और नीतीश कुमार अपनी आखिरी पारी खेल रहे हैं. नीतीश कुमार अगले साल 70 साल के हो जाएंगे. और पांच साल यदि वे उतने सक्रिय नहीं रहते हैं तो जेडीयू का भविष्य क्या होगा, कहना मुश्किल होगा. कुछ उसी तरह जैसे अब लोगों को समता पार्टी की याद नहीं रहती. दिक्कत यह भी है कि नीतीश कुमार ने अभी तक जेडीयू में अपने उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की है और ना ही उनके परिवार का कोई सदस्य राजनीति में है. दूसरी तरफ आरजेडी में यह तय हो चुका है कि तेजस्वी यादव ही नेता हैं और महागठबंधन का भी नेतृत्व कर रहे हैं. इसमें कांग्रेस और वामदल भी तेजस्वी को अपना नेता मान चुके हैं. ऐसे हालात में चिराग को जरूर लगता होगा कि बिहार में युवा नेताओं में वे पिछड़ते हुए नहीं दिखना चाहते. यही वजह है कि चिराग तेजस्वी को अपना छोटा भाई भी बताते हैं और विजयी भव का आशीर्वाद भी देते हैं. यही सब बातें जेडीयू को नागवार गुजरी है.
जेडीयू को यह भी लगता है कि यदि चिराग पासवान ने उनके खिलाफ उम्मीदवार उतारे और यदि थोड़े भी सफल रहे तो जेडीयू का स्ट्राइक रेट कम हो जाएगा. तब नीतीश कुमार के लिए असहज स्थिति पैदा हो जाएगी कि मुख्यमंत्री या सुशासन बाबू कहलाते हुए भी अपनी पार्टी को कम सीटें जितवा पाए. हालांकि बीजेपी के सुशील मोदी ने साफ किया है कि एनडीए में कोई कितनी भी सीटें जीते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे.
बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले जानते हैं कि नीतीश कुमार ने चिराग पासवान को कभी गंभीरता से नहीं लिया सिवाय एक बार जब चिराग ने सुशांत सिंह राजपूत मामले में नीतीश कुमार को पत्र लिखा था. इसी वजह से चिराग नीतीश कुमार से चिढ़े बैठे थे. फिर चिराग चाहते थे कि नीतीश कुमार एक कॉमन मिनिमम प्रोगाम बनाएं जिसमें 'बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट' के उनके विजन को भी जोड़ा जाए. नीतिश इसके लिए तैयार नहीं थे. चिराग की भी रणनीति साफ है, 141 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करके वे अपनी पार्टी को खड़ा कर पाएंगे. कम से कम इन सीटों के हर बूथ पर उनका कार्यकर्ता होगा और पार्टी का ढांचा खड़ा हो जाएगा. जो पार्टी के लिहाज से काफी शुभ संकेत होगा. इन्हीं सब कारणों की वजह से चिराग को जेडीयू की परछांई से बाहर निकलना पड़ा जिसमें रामविलास पासवान की भी सहमति थी. हाल ही में जब रामविलास पासवान से यह पूछा गया कि चिराग को आप बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं? तो उनका जबाब था यह तो हर बाप का सपना होना चाहिए. अब आपको अंदाजा हो गया होगा कि चिराग के इस निर्णय के पीछे कई कारण हैं जिन्होंने उन्हें जेडीयू के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूर किया है.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं.)
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