यह ख़बर 24 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

मनीष शर्मा की नजर से : कट्टरपंथ और उदारवाद के बीच की कड़ी मदन मोहन मालवीय

पंडित मदन मोहन मालवीय की फाइल तस्वीर

भारत रत्न के पिछले भाग में लिखा सत्यमेव जयते का मदन मोहन मालवीय के बीच कनेक्शन है। सत्यमेव जयते का नारा देने वाले पंडित मदन मोहन मालवीय ही थे। मदन मोहन मालवीय कथा वाचक से शिक्षक, शिक्षक से वकील और फिर अंत में वकील से राजनेता बने। जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे। कथावाचक थे तो तंगहाली में दिन गुजरे तो वकालत के दिनों के दौरान रईसी का भी सुख भोगा और फिर देश की खातिर उन सुखों को त्याग भी दिया।

1886 में कांग्रेस में शामिल होकर अपना जीवन देश की सेवा में अर्पण कर दिया। गांधीजी ने उनके विचारों से प्रभावित होकर उन्हें महामना की उपाधि दी। उन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ कर योगदान दिया तो साइमन कमीशन के बायकॉट के दौरान लाला लाजपत राय और नेहरू के साथ कंधे से कंधा मिलकर खड़े हुए।  1930 में सविनय अविज्ञा आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए।

मदन मोहन मालवीय ने शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी योगदान दिया। उन्होंने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की स्थापना की। 1903 में 230 छात्रों की रिहाइश की समस्या को सुलझाने के लिए मैकडोनाल्ड हिन्दू बोर्डिंग हाउस बनाया।

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चार बार (1909, 1918, 1930, 1932) कांग्रेस के अध्यक्ष बने।  वह न तो बाल गंगाधर तिलक की तरह कट्टरपंथी थे न ही गोपाल कृष्ण गोखले की तरह उदारवादी। वे पचास साल तक कांग्रेस से जुड़े रहे। 1937 में उन्होंने सक्रीय राजनीति से सन्यास ले लिया।