90 के दशक में झण्डु च्यवनप्राश का एक विज्ञापन टीवी में आता था 'साठ साल के बूढ़े या साठ साल के जवान'। विज्ञापन की यह लाइन हमारे पीएम नरेंद्र मोदी पर सटीक बैठती हैं। स्फूर्ति इतनी है कि विपक्ष के युवा नेता की जवानी को भी शर्म आ जाये। कल का नहीं परसों और बरसों का काम भी अभी करने की ठान रखी है। पता नहीं चलता कब देश में हैं और कब विदेश में। भारत के लोगों के साथ-साथ विदेश में बसे भारतीयों का और विदेशियों का भी दिल जीतने का इरादा बना रखा है। कहीं सेल्फ़ी खिंचवाते हैं तो कहीं नगाड़ा बजाते हैं। कहीं अपनी बात रखते हैं तो कहीं भारत की बात सुनाते हैं।
भारत की विदेश नीति के प्रति मोदी कितने गंभीर हैं, वो उनके शपथ समारोह में ही पता चल गया था। उन्होंने सार्क देशों के सभी नेताओं को शपथ समारोह में बुलाया और पहले ही दिन सभी सार्क देशों से द्विपक्षीय वार्ता की। मोदी के इस कदम से दुनिया में एक सन्देश ज़रूर चला गया कि भारत की भूमिका सिर्फ एशिया में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में बढ़ने वाली है।
इस 26 नवंबर को मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में छह महीने पूरे हो जाएंगे। सिर्फ छह महीनों में ही प्रधानमंत्री के रूप में मोदी नौ देशों का दौरा कर चुके हैं। अगर वाजपेयी का और मनमोहन सिंह का रिकॉर्ड देखें तो उन दोनों का सालाना औसत सिर्फ सात विदेश यात्राओं का था, मोदी के विदेश यात्राओं से कहीं कम।
मोदी इस साल पाकिस्तान यात्रा पर तो नहीं गए, परन्तु पड़ोसी देश से सम्बन्ध सुधारने की कोशिश ज़रूर की। नवाज़ शरीफ को भारत बुलाया। मोदी ने शरीफ की मां के लिए शाल भेंट की तो नवाज़ शरीफ ने मोदी की मां के लिए साड़ी भेजी। पर अगस्त में भारत में पाकिस्तान के हाई कमिश्नर अब्दुल बासित ने कश्मीरी पृथकतावादी नेताओं से मिलकर सब किए कराए पर पानी फेर दिया। भारत ने कड़ा कदम उठाते हुए भारत-पाक के फॉरेन सेक्रेटरी के बीच होने वाली मुलाकात पर रोक लगा दी।
मोदी ने अपनी विदेश यात्राओं की शुरुआत भूटान जैसे छोटे देश से की। 16 से 17 जून की मोदी की दो दिनों की यात्रा से भूटान के भारत के साथ सम्बन्ध और मजबूत हुए। भूटान जैसे छोटे देश को अपनी प्रथम विदेश यात्रा बनाना मोदी का एक सराहनीय कदम था।
13 से 16 जुलाई को मोदी ब्रिक्स सम्मलेन में शामिल होने लिए ब्राज़ील गए। ब्राज़ील, रूस, साउथ अफ्रीका और चीन के नेताओं से द्विपक्षीय वार्ता में शामिल हुए। ब्रिक्स देश पहली बार डेवलपमेंट बैंक बनाने के लिए राज़ी हुए। भले ही बैंक का हेडक्वार्टर चीन में के शंगाई प्रान्त में होगा, लेकिन यह अंतराष्ट्रीय मंच में भारत की एक बड़ी जीत रही। भारत ने चीन को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि इस बैंक में सभी सदस्य देशों की बराबर हिस्सेदारी होगी।
3 से 4 अगस्त को प्रधानमंत्री नेपाल यात्रा पर गए। यह 17 सालों बाद भारत के प्रधानमंत्री की पहली नेपाल यात्रा थी। पशुपतिनाथ मंदिर गए। मोदी ने नेपाल की पार्लियामेंट में नेपाली भाषा में संक्षिप्त भाषण देकर नेपाल के लोगों का दिल जीत लिया। नेपाल के विकास के लिए मोदी ने एक अरब डॉलर के मदद की भी घोषणा भी की।
30 अगस्त से 3 सितम्बर तक मोदी जापान यात्रा पर गए। जापान ने भारत में 35 अरब डॉलर निवेश की घोषणा की। जापान, भारत में बुलेट ट्रेन चलाने और स्मार्ट सिटी बनाने पर राज़ी हुआ। बस एक कमी रह गई, जिस तरह 2008 में भारत-अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील हुई थी, उस तरह जापान के साथ नहीं हो सका।
17 सितम्बर को मोदी का जन्मदिवस होता है और इसी दिन चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भारत यात्रा पर आए। ये पहली बार हुआ जब किसी देश के राष्ट्रपति का स्वागत दिल्ली के बाहर हुआ हो। मीडिया में डिबेट शुरू हो गई कि क्या मोदी चीन से जापान से भी ज़्यादा पैसा निकाल पाएंगे? कोई भी चैनल वाला 100 अरब डॉलर से कम की बात नहीं कर रहा था। लेकिन जब चीन ने भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र में 20 अरब डॉलर निवेश की घोषणा की तो सभी इसे मोदी की नाकामी बताने लगे।
कहने लगे मोदी की मेहमाननवाज़ी शी चिनफिंग को रास नहीं आई, मोदी का शी के साथ झूला झूलना कुछ ज़्यादा हो गया, लेकिन जब रिसर्च किया तो पता चला की ये चीन का अबतक का सबसे बड़ा निवेश है। पिछले 14 सालों में सिर्फ 40 करोड़ डॉलर ही निवेश किए थे। 20 अरब डॉलर पिछले दशक में हुए कुल निवेश से कहीं ज़्यादा बड़ी रकम है। चीन ने भारत में फ़ास्ट रेल लिंक्स और दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाने की भी घोषणा की।
इसी बीच चीन के मैरीटाइम सिल्क रूट प्रोजेक्ट (जो हिंद महासागर के जरिये चीन को यूरोप से जोड़ेगा) के प्रभाव को काम करने के लिए मोदी ने प्रोजेक्ट मौसम लॉन्च किया। प्रोजेक्ट मौसम ईस्ट अफ्रीका से लेकर इंडोनेशिया तक फैला होगा और भारत को हिंद महासागर पर नियंत्रण करने का जरिया बनेगा। इसी सिलसिले में 15 सितम्बर को भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी वियतनाम गए। वहां भारत ने सात तेल के और गैस के भंडार खरीदे हैं जिसका संबंध विवादित दक्षिण चीन सागर से है।
26 सितम्बर से 30 सितम्बर मोदी संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को सम्बोधित करने के सिलसिले में अमेरिका गए। कश्मीर के मामले में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। अमेरिका और भारत रक्षा क्षेत्र में आपसी सहयोग के लिए हुए समझौतों को दस साल और बढ़ाने के लिए राज़ी हुए। अमेरिका के बड़े उद्योगपतियों से मिलकर उनको भारत में निवेश करने के लिए उत्साहित किया। मेडिसन स्क्वायर में 20 हज़ार से ज़्यादा अप्रवासी भारतियों को सम्बोधित किया। आयोजकों के मुताबिक अप्रवासी भारतीयों की अब तक की सबसे बड़ी भीड़ थी।
11 से 13 नवंबर मोदी ईस्ट एशिया समिट में शामिल होने के लिए म्यांमार गए। सिर्फ तीन दिनों में आठ देशों के नेताओं से द्विपक्षीय वार्ता की। मोदी ने सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान आतंकवाद के खिलाफ भारत का कड़ा रुख जाहिर करते हुए विश्व नेताओं से धर्म और आतंकवाद के बीच की कड़ी को दृढ़ता से खारिज करने की अपील की।
14 से 18 नवंम्बर मोदी जी 20 समेल्लन में शामिल होने के लिए ऑस्ट्रेलिया गए। ऑस्ट्रेलिया में मोदी ने वहां के प्रधानमंत्री टोनी एबोट से द्विपक्षीय बातचीत की। पार्लियामेंट को संबोधित किया और सिडनी के ऑलफोंस एरेना में मेडिसन स्क्वायर की तर्ज़ पर भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित किया। ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले 6 सितम्बर को मोदी और टोनी एबोट ने सिविल न्यूक्लियर डील पर दस्तखत किए।
19 नवंबर को मोदी फिजी की यात्रा पर गए। वहां फिजी के प्रधानमंत्री से द्विपक्षीय वार्ता की। वहां के पार्लियामेंट को संबोधित किया और राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में भाषण दिया।
25 से 27 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए नेपाल जाएंगे। अब चाहे मोदी झंडू च्यवनप्राश लेते हों या फिर रेड बुल का एनर्जी ड्रिंक, ये बात तो सच है कि उनके नाम की गूंज हर जगह सुनाई दे रही है। ओबामा के 'मैन ऑफ़ एक्शन,' भारत को विश्व के मानचित्र में प्रमुख स्थान दिला पाते हैं या नहीं, चीन का तोड़ बना पाते हैं या नहीं, ये तो वक़्त बताएगा...
This Article is From Nov 20, 2014
मनीष की नज़र से : विदेश दौरों में भी नरेंद्र मोदी ने मारी बाजी, उनके दौरों का एक लेखा-जोखा
Manish Sharma, Rajeev Mishra
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Updated:नवंबर 21, 2014 13:25 pm IST
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Published On नवंबर 20, 2014 18:56 pm IST
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Last Updated On नवंबर 21, 2014 13:25 pm IST
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