मनीष कुमार की कलम से : नेपाल में भारत ने अब तक क्या खोया और पाया

काठमांडू:

नेपाल में भूकंप मरनेवालों की संख्या 6 हज़ार से अधिक हो गई है। इस भूकंप से प्रभावित लोगों की संख्या 50 लाख से अधिक है। नेपाल में जब से भूकंप आया तब से भारत काफी सक्रिय है या कहिये हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल को सहायता या राहत मिले, उसके लिए कोई कसर नहीं जाने दे रहे, लेकिन सवाल है हमारे कदम से हमारे पड़ोस मतलब नेपाल के लोग कितने खुश हैं या उनमें कितना असंतोष है...

इस बात में कोई संदेह नहीं कि नेपाल खासकर काठमांडू में फंसे वह चाहे पर्यटक हों या काम की तलाश में तराई से गए लोग, सबको निकालने में भारत सरकार ने जो तत्परता दिखाई वह काबिलेतारीफ है, लेकिन जिस बात पर हम आप अपनी पीट थपथपा रहे हैं, वह असंतोष का कारण है।

दरअसल, भूकंप शनिवार को आया और रविवार सुबह से इंडियन एयर फोर्स ने लोगों को निकलना शुरू कर दिया। शुरू में बीजेपी नेता एमजे अकबर और बाबा रामदेव जैसे लोगों को प्राथमिकता दी गई, लेकिन मंगलवार शाम तक त्रिभुवन एयरपोर्ट पर भारतीय सेना के जहाजों और सर्विस प्लानों के कारण वहां की व्यवस्था अस्त-व्यस्त रही, जिसके कारण नेपाली सेना का बचाव कार्य न केवल प्रभावित हुआ, बल्कि कई देशों के राहत से भरे सामान भी नहीं पहुंच पाए। काठमांडू में होने वाली बैठक में भारतीय अधिकारियों को हर देश के प्रतिनिधि इस बात का अहसास कराने से नहीं भूलते कि अपने लोगों को निकलने की जल्दी में हम लोगों ने आवश्यक राहत सामग्री, जो ज्यादा जरूरी थी, उसमें विलंब कर दिया।

भारत से एनडीआरएफ की टीमें गईं। उसने बचाव कार्य किया, लेकिन सब कुछ काठमांडू शहर या उसके आसपास सीमित रहा, जबकि हमारे दूसरे पड़ोसी जैसे पाकिस्तान ने बगल के शहरों जैसे भक्तपुर में अपना अस्पताल बनाया। निश्चित रूप से स्केल भारत के सामान नहीं था, लेकिन नेपाली लोगों में खासकर नेपाली सेना में ये भावना है कि भारत ने अपने लोगों को निकलने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई।

नेपाल में फ़िलहाल बिजली, पेट्रोल, डीजल और मिट्टी के तेल की सबसे बड़ी किल्लत है और बिजली को छोड़कर बाकी की तीन चीजों के लिए नेपाल पूरी तरह भारत पर निर्भर है, लेकिन अभी तक भारत सरकार भले ही दावा करे कि उसकी तरफ से इन सामानों की कोई किल्लत नहीं, लेकिन काठमांडू में जाएंगे तो आपको पता चल जाएगा कि शायद अगर भारत ने इन सामानों की सप्लाई बढ़ा दी होती तो सामानों की राशनिंग की जरूरत नहीं होती। मतलब हम जितना दावा करते हैं, उतना प्रयास जमीन पर पूरा करने में लगाए तो शायद नेपाल के लोगों की मुश्किलें खत्म भले न हों, लेकिन कम जरूर होंगी।

सबसे ज्यादा दिक्कत फिलहाल मदद के सामान लेकर जा रहे ट्रकों की है। राष्ट्रीय राजमार्ग 28 जो मोतिहारी से रक्सौल को जाता है, 55 किलोमीटर की दूरी आपको तय करने में तीन घंटे लग जाते हैं। निश्चित रूप से भारत सरकार ने अपने इस सबसे महत्वपूर्ण राजमार्ग के रख-रखाव पर कभी इस आधार पर ध्यान नहीं दिया होगा कि ये बिहार की सड़क है, लेकिन पूरे विश्व से जब रोड से रिलीफ मैटेरियल आएगा, तब न केवल बिहार बल्कि भारत की भी जग हंसाई होगी। इसलिए आने वाले दिनों में न केवल हमें पूरे नेपाल के लिए सहयता की नीति पर फिर से सोचना होगा, बल्कि इस बात का ध्यान रखना होगा कि हमारी पूरी कोशिश से नेपाल के आम लोगों को लाभ मिले न कि कुछ सीमित लोगों को।

नेपाल में वह आम आदमी हो या प्रशासन और सेना के अधिकारी। उन सबकी शिकायत है कि भारत जितना काम धरातल पर नहीं कर रहा है, उससे कई गुना ज्यादा प्रचार मीडिया में ले रहा है। आने वाले दिनों में कोशिश होनी चाहिए कि लोगों की ये शिकायत कम हो।

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नेपाल हमारा पड़ोसी देश हैं इसलिए कोई भी मदद देने से पहले हमें वहां के लोगों की भावना और सरकर की संवेदना को भी ध्यान रखना पड़ता है, लेकिन ऐसा न हो कि हम अपने आपमें इतना ज्यादा आत्ममुग्ध न हो जाएं कि असल जरूरतों को नजरअंदाज करते चले जाएं और पता चले कि मदद करने आए सारे देश भारत के खिलाफ एकजुट हो जाएं।