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This Article is From Aug 06, 2019

क्या नीतीश कुमार के लिए सिद्धांत सर्वोपरि हैं?

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 12, 2019 16:24 pm IST
    • Published On अगस्त 06, 2019 22:21 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 12, 2019 16:24 pm IST

आर्टिकल 370 के मुद्दे पर केंद्र की भारतीय जनता पार्टी को अपने सहयोगी नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड से निराशा हाथ लगी. लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में जनता दल यूनाइटेड के नेताओं ने न केवल विरोध में भाषण दिया बल्कि सदन का बहिष्कार भी किया. जबकि इस मुद्दे की गंभीरता और जनता में इसको लेकर आम लोगों के बीच जो सरकार के प्रति भावना है उसके बाद बीएसपी, आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दल सरकार के समर्थन में आगे आए. लेकिन सवाल है कि इस सबके बावजूद आख़िर इस मुद्दे पर अपनी पार्टी की पुराने लाइन और सिद्धांत पर नीतीश क्यों टिके रहे. इसके लिए आपको पांच वर्ष के एक घटनाक्रम पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कमेंट जानना होगा.

यह बात 18 मई 2014 की है जब लोकसभा चुनाव में मात्र दो सीटों पर सिमट जाने के बाद नीतीश कुमार ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी. उसके बाद सबको लग रहा था कि उन्होंने इस्तीफा देने की औपचारिकता केवल पूरी की है और अगले एक से दो दिन में वे इस्तीफा वापस ले लेंगे. तब बिहार भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने एक पत्रकार को फोन किया और पत्रकार के यह कहने पर कि पार्टी के नेताओं के दबाव में नीतीश जी इस्तीफ़ा वापस लेने को मजबूर होंगे, भाजपा नेता ने कहा था कि आप ग़लतफ़हमी में हैं. मैं जानता हूं वे बहुत ज़िद्दी हैं. इसलिए एक बार फ़ैसला लिया है तो मुख्यमंत्री तो कोई और होगा. हालांकि उसी समय बिहार भाजपा के एक और नेता सुशील मोदी का ट्वीट आया कि इस्तीफा नाटक है और नीतीश अपनी कुर्सी नहीं छोड़ सकते. लेकिन नीतीश नहीं माने उन्होंने अपनी जगह जीतनराम मांझी को कुर्सी पर बिठाया लेकिन इस्तीफा वापस नहीं लिया.

इधर पिछले एक सप्ताह के दौरान यह दूसरा मौक़ा था जब नीतीश कुमार के निर्देशन में जनता दल यूनाइटेड ने, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित वह चाहे ट्रिपल तलाक़ का मामला हो या 370 का मुद्दा, अपने स्टैंड पर पुनर्विचार करने से साफ इनकार कर दिया. लोकसभा में तो जेडीयू के संसदीय  दल के नेता राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह ने साफ़-साफ़ कहा कि आप आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई उसके संबंध में कुछ भी क़दम उठाएं, हम आपके साथ हैं. लेकिन इस विवादास्पद मुद्दे को आपको छेड़ना नहीं चाहिए था. निश्चित रूप से यह लाइन नीतीश कुमार की ही रही होगी जिन्होंने लालू यादव और कांग्रेस पार्टी के साथ महागठबंधन की सरकार में होने के बावजूद अपने और डॉक्टर लोहिया के सिद्धांतों के अनुसार नोट बंदी का समर्थन किया. साथ ही साथ जब सर्जिकल स्ट्राइक हुई तो वे पहले विपक्ष के नेता थे जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदम का समर्थन किया था. सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी पर नीतीश के उस स्टैंड से न केवल उनके सहयोगी बल्कि तब उनकी पार्टी में मौजूद शरद यादव जैसे नेता काफ़ी असहज हो गए थे. उन्होंने नीतीश कुमार से अपने स्टैंड पर पुनर्विचार करने का आग्रह भी किया था. लेकिन नीतीश उस समय भी टस से मस नहीं हुए. यह बात अलग है कि उन्हें उम्मीद थी कि कम से कम 3-4 लाख करोड़ रुपये नोट बंदी के बाद सिस्टम में वापस नहीं आएंगे और केंद्र सरकार उतने ही नोटों को फिर से जारी करेगी जो विकास पर ख़र्च होगा, जिसका लाभ बिहार जैसे राज्यों को मिल सकता है. लेकिन न नौ मन तेल हुआ न राधा नाची.

नीतीश कुमार यह बात करना नहीं भूलते कि क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म से कोई समझौता नहीं हो सकता. जब उनके उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और राजद उनके इस्तीफ़े के लिए तैयार नहीं हुई तो नीतीश कुमार ने एक बार फिर इस्तीफ़ा दिया और बीजेपी के साथ सरकार बनाई. पिछले दो वर्षों के दौरान बीजेपी के नेताओं को इस बात का आभास हो गया कि सरकार की आड़ में अगर उन्होंने सांप्रदायिक घटनाओं को हवा दी तो गुस्साए नीतीश कुमार समझौता नहीं करेंगे. इसका प्रमाण तब सामने आया जब नवादा और समस्तीपुर में पुलिस ने एक साथ कई बीजेपी नेताओं को रामनवमी के दौरान सांप्रदायिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार मानते हुए जेल भेज दिया.

हालांकि जनता दल यूनाइटेड के नेता भी मानते हैं कि वे सारे छोटे-मोटे मुद्दे थे, इस बार यह मुद्दा बीजेपी के लिए चुनाव में काफी लाभदायक और जनता दल यूनाइटेड के स्टैंड के कारण इसके लिए नुकसानदेह भी हो सकता है. भाजपा ने चुनाव के समय किया गया वादा पूरा किया है. उसने अचानक जिस तरह से लोकसभा और राज्य सभा में बिल को पास कराया  उसको लेकर लोगों में काफी उत्साह है. इस बात का प्रमाण इस चीज़ से भी मिलता है कि मुस्लिम समुदाय का न तो बंगाल में, न हैदराबाद या दिल्ली, बिहार में कोई विरोध प्रदर्शन देखने को मिला. जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का कहना है कि फ़िलहाल तो सरकार को कोई खतरा नहीं है लेकिन हां बीजेपी के साथ भविष्य में रिश्तों में विश्वास की कमी ज़रूर आएगी क्योंकि मोदी शाह की भाजपा है, जो पार्टी के अंदर अपना विरोध करने वाले को नहीं छोड़ते तब नीतीश कुमार के प्रति नरम रहेंगे, इसकी गारंटी कौन देगा. हालांकि नीतीश को जमीनी हक़ीक़त का अंदाज़ा ज़रूर होगा और वे एक मुद्दे के कारण कुर्सी से हाथ धोना नहीं चाहेंगे.

लेकिन राजनीति में जहां हर हफ़्ते स्थिति बदलती रहती है वहीं नीतीश कुमार ने ट्रिपल तलाक़ के बाद अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर भी साबित कर दिया है कि कुर्सी के लिए वे सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करते.

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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