लगता है कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाले पीएम मोदी का मकसद उन्हें महज सत्ता से दूर रखने का ही नहीं, बल्कि विपक्ष की जिम्मेदारियों से भी मुक्त रखने का है। इसकी शुरुआत केंद्र से तब हुई जब कांग्रेस नेता विपक्ष के लिए जरूरी 55 सांसद भी नहीं जुटा सकी। वहीं, कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस का यही हाल रहा जब हरियाणा में नेता विपक्ष का पद हाथ से निकल कर आईएनएलडी के पास आ गया और महाराष्ट्र में जो एक उम्मीद की किरण बची थी, वहां भी शिवसेना ने अड़ंगा लगा दिया है।
महाराष्ट्र चुनाव नतीजों से पहले कांग्रेस को इस बात का भरोसा था कि वह विपक्ष की मुख्य भूमिका अदा करेगी। महाराष्ट्र को लेकर एक कांग्रेसी नेता ने तो यहां तक कहा कि वे वहां केंद्र वाली हालत नहीं चाहते। कांग्रेस ने तो नेता विपक्ष के लिए उम्मीदवार का चुनाव भी शुरू कर दिया था, क्योंकि यहां उसके पास नंबर थे।
प्रदेश अध्यक्ष माणिक राव ठाकरे ने कहा कि अगर शिवसेना सरकार में जाती है तो कांग्रेस नेता विपक्ष की स्वाभाविक दावेदार होगी। उनके विधायकों के पास सत्ता का अच्छा खासा तजुर्बा भी है।
लेकिन, सियासत में हवा बदलते देर नहीं लगती। उधर, 25 साल पुरानी बीजेपी−शिवसेना की दोस्ती टूटी और शिवसेना ने ऐन मौके पर नेता विपक्ष की कुर्सी पर कब्जा करते हुए कांग्रेस का सारा खेल बिगाड़ दिया। 63 सीटों वाली शिवसेना महाराष्ट्र विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि कांग्रेस के पास 42 और एनसीपी के पास 41 विधायक हैं।
आखिर नेता विपक्ष के पद की क्या अहमियत है?
- दरअसल नेता विपक्ष एक कैबिनेट दर्जे का पद है, जिसके तहत नेता विपक्ष को मंत्रियों वाली तमाम सुविधाएं मिलती हैं।
- बिना नेता विपक्ष की सहमति के सरकार के कई फैसलों पर निष्पक्ष होने की मुहर नहीं लगती।
- कई पदों के चुनाव में नेता विपक्ष की अहम भूमिका होती है। नेता विपक्ष लोक लेखा समिति और दूसरी कई समितियों का हिस्सा होता है।
कई साल पहले आई एक फिल्म 'अंदाज अपना अपना' में आमिर ख़ान मोगेम्बो के भतीजे मिस्टर गोगो को कहता है कि उसके कई किस्सों के साथ एक और किस्सा जुड़ जाएगा कि हाथ तो आया पर मुंह नहीं लगा। महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ जो कुछ हुआ वह शायद यही था।