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This Article is From Aug 07, 2016

एक ऐसा दोस्‍त बनाएं, जिससे आप कभी मिल ही न पाए...

Anita Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 07, 2016 17:08 pm IST
    • Published On अगस्त 07, 2016 17:01 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 07, 2016 17:08 pm IST
आज का दिन मेरे लिए बहुत खास है. आज मैंने एक नया दोस्‍त बनाया है. एक ऐसा दोस्‍त जिससे मैं मिली ही नहीं हूं, जिसका नाम, पता तक मुझे नहीं मालूम और न ही उसे मेरा... पर मेरा यह दोस्‍त मुझे हमेशा याद रखेगा. सिर्फ वही नहीं, उसके दोस्‍त और परिवार वाले भी. मैं रहूं न रहूं, वो हमेशा मुझे अपने अंदर जिंदा रखेगा.

आप शायद हैरान होंगे कि ऐसा कौन है भला, जो मुझे जानता तक नहीं फिर भी वह मेरे लिए इतना कुछ करेगा. दरअसल, आज मैंने एक छोटा लेकिन बड़ा कदम उठाया अपने उस दोस्‍त की ओर... आज से मैं एक 'ऑनर' ऑर्गन डोनर बन गई हूं. मैं गर्व से सबको यह बता देना चाहती हूं कि देर से ही सही पर आज मैंने अपने अंगदान कर दिए हैं. अब शायद आप समझ गए होंगे मेरे उस दोस्‍त के बारे में.

अगर आप बेहद संवेदनशील हैं, तो शायद आपका यह कदम आपके अपने स्‍वास्‍थ्‍य के लिए भी अच्‍छा साबित हो जाए. हो सकता है कि इसके बाद आप अपना ध्‍यान रखना शुरू कर दें, क्‍योंकि आज मेरा भी मन कर रहा है कि जिम ज्वाइन कर लूं, अपने खाने-पीने का ध्‍यान रखूं, ताकि मेरे शरीर का हर वह अंग जो मैंने दान किया है, सही-सलामत रहे. इस अनुभव के बाद तो मुझे जीवन की कद्र सी हो उठी है.

अक्‍सर लोग अंगदान करने से हिचकते हैं. लेकिन क्‍या यह कुछ ऐसा नहीं कि एक तीर से दो शिकार हो जाए! पहला 'शिकार' वह रूढ़िवादी समाज होता है, जो जाने किन-किन बेतुके अंधविश्‍वासों के चलते अंगदान के लिए आज तक नहीं मान पाया है. याद है मुझे जब 12वीं कक्षा में स्‍कूल टीचर ने नेत्रदान के लिए सब बच्‍चों से कहा था, तो एक छात्रा ने उनसे कहा था- ''मैम दादी मना करती हैं. कहती हैं अगर मैंने आंखें दान कीं तो मैं मर कर अंधा भूत बनूंगी.'' टीचर ने उसे खूब समझाया था, पर यह मामला समझाने से ज्‍यादा समझने का है. जब तक आप समझना नहीं चाहेंगे कोई कैसे आपको समझा सकता है.

अनिता शर्मा एनडीटीवी खबर में चीफ सब एडिटर हैं।

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