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This Article is From Feb 12, 2016

लोकतंत्र का जरूरी तत्‍व होता है नेता, इसकी रक्षा जरूरी है

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 12, 2016 22:09 pm IST
    • Published On फ़रवरी 12, 2016 22:01 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 12, 2016 22:09 pm IST
बिहार बीजेपी उपाध्यक्ष विशेश्वर ओझा की हत्या को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इस मामले की तह तक जांच करायें। दिखावे के लिए नहीं बल्कि स्थापित करने के लिए राजनेता किसी भी दल का हो उसकी हत्या लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक आहट है। उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि हो सकती है लेकिन उसकी हत्या को इस आधार पर सामान्य नहीं समझा जा सकता। देखा जाना चाहिए कि ओझा की हत्या किसी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता की प्रक्रिया में हुई है या आपराधिक गैंगवार के कारण।

दोनों ही स्थितियों में ख़तरनाक है लेकिन अगर इसमें राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का कोई रोल है तो यह भयावह है। कोई कथित रूप से अपराधी है और राजनीति में है तो यह जवाबदेही भी सरकार की है वो ऐसे मामलों को जल्दी नतीजे पर पहुंचाये। नेता नेता होता है। इसकी रक्षा इसलिए जरूरी है और सबकी जवाबदेही है कि वो लोकतंत्र का एक ज़रूरी तत्व है। इसलिए बीजेपी नेता विशेश्वर ओझा की हत्या किसी भी तरीके से शुभसंकेत नहीं है। राजनीतिक हत्या का माहौल सबको वहशी बना देगा।

प्रधानमंत्री ने भी चुनावी प्रचार में कहा था कि एक साल के भीतर नेताओं के मामले की सुनवाई को नतीजे तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा। प्रधानमंत्री हों या मुख्यमंत्री कोई भी इस प्रक्रिया को महत्व नहीं देता जबकि देना चाहिए। जो भी राजनीति में आता है उसकी रक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए। ये और बात है कि जगह जगह पर सरकारें अब लोकतंत्र को पुलिस तंत्र के ज़रिये चलाना चाहती हैं। विरोधियों को दबाना राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। हमें हर तरह की विचारधारा और सोच की जगह की रक्षा करनी चाहिए। लोकतांत्रिक नागरिक होने का मतलब यह भी है। उसकी भूमिका यही होनी चाहिए। आप अपनी सुविधा अनुसार दायरे की दीवार नहीं बना सकते।

लोकतंत्र का मतलब ही है हद से अनहद की तरफ प्रस्थान करना। सत्ता के नियंत्रण पर लगातार सवाल करते रहना। सत्ता या सरकार ईश्वरीय देन नहीं है। उसका निर्माण लोक के बीच से होता है और सरकार उस लोक की मालिक नहीं है। लोकतंत्र में सज़ायाफ़्ता होने तक आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों के लिए भी जगह है। हर दल में ऐसे लोग हैं। मंत्री हैं और अध्यक्ष हैं। इसलिए ज़रूरी है कि विशेश्वर ओझा की मौत को सिर्फ पुलिस जांच के हवाले नहीं किया जाए। शीर्ष से जांच की निगरानी होनी चाहिए।

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