NDTV के मनीष कुमार से बातचीत में लालू प्रसाद यादव ने उस दिन के घटनाक्रम को याद किया, जब उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया था.
कल, मैंने वे ख़बरें और तस्वीरें देखीं, जिनमें लोग बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने का जश्न 'शौर्य दिवस' के रूप में मना रहे थे... मस्जिद को BJP के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में गिराया गया... मेरे लिए, 6 दिसंबर, 1992 सबसे दुःखद दिन था... यदि सुप्रीम कोर्ट से वादा करना, और फिर उसे तोड़ देना बहादुरी है, तो यह कतई नई परिभाषा थी...
मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि मैंने अक्टूबर, 1990 में समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार क्यों किया था... बहुत सीधी-सी बात है, देश को बचाने के लिए... देश को बचाने के लिए, और संविधान की रक्षा करने के लिए...
जब उनकी रथयात्रा बिहार पहुंच गई, मेरे पास भी उनका सम्मान करने और उन्हें आगे बढ़ जाने के लिए अपने राज्य से सुरक्षित रास्ता देने का विकल्प था... इससे सुनिश्चित हो जाता कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की केंद्र सरकार बची रहती, लेकिन मैंने वह कुर्बानी देने का फैसला किया... क्योंकि अगर कोई भी पलटकर देखेगा, तो यही कहेगा कि हमने अपनी ही सरकार का बलिदान देकर उस समय देश को बचा लिया था...
कल्पना कीजिए, यदि लालकृष्ण आडवाणी का रथ उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर गया होता, तो क्या होता... इस यात्रा ने वैसे ही हर तरफ सांप्रदायिक हलचल मचा रखी थी...
सोमनाथ से अयोध्या जाने के लिए शुरू हुई लालकृष्ण आडवाणी की जिस रथयात्रा को समस्तीपुर में रुकना पड़ा, वह केंद्र सरकार द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की प्रतिक्रिया के रूप में निकाली गई थी... वह 'मंडल बनाम कमंडल' था... और हम इस बात के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे कि कमंडल को कभी नहीं जीतने देंगे, क्योंकि उससे देश में भेदभाव फैलने का ज़्यादा खतरा था...
मैं दृढ़प्रतिज्ञ था कि लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या की ओर नहीं बढ़ने दूंगा... लेकिन उस समय काफी उलझन की स्थिति थी, क्योंकि दिल्ली में भी दिन-रात बातचीत के दौर जारी थे... ऐसी ही एक बैठक के लिए लालकृष्ण आडवाणी खुद अपनी यात्रा को बीच में छोड़कर गए थे, और फिर उनका रूट बदल दिया गया...
BJP के शीर्ष नेताओं में से एक लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 को रथयात्रा शुरू की थी...
उन्हें धनबाद से अपनी यात्रा फिर शुरू करनी थी, सो, हमने कुछ योजनाएं बनाईं... मैंने भी उच्चस्तरीय बैठक की... हमारी मूल योजना यह भी कि जैसे ही उनकी ट्रेन 'हावड़ा राजधानी' रात को लगभग 2 बजे सासाराम के आसपास बिहार में प्रवेश करेगी, हम उन्हें गिरफ्तार कर लेंगे... रोहतास के जिला मजिस्ट्रेट मनोज श्रीवास्तव ने रेलवे अधिकारियों को विश्वास में लिया, और योजना बनाई कि ट्रेन को रेलवे केबिन के पास रोक दिया जाएगा, और वहीं लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा... लेकिन यह योजना लीक हो गई, और हमें दूसरी योजना बनानी पड़ी... बहुत मुश्किल से हम मनोज श्रीवास्तव तक पहुंच पाए, जो उस समय रेलवे ट्रैक के पास पहुंच चुके थे... उन दिनों मोबाइल फोन नहीं होते थे...
फिर हमने लालकृष्ण आडवाणी को धनबाद में गिरफ्तार करने का फैसला किया, लेकिन वह भी नहीं हो पाया, क्योंकि स्थानीय अधिकारियों में कुछ कन्फ्यूज़न था...
मैं जानता था कि मुझे बेहद सावधानी से योजना बनानी होगी, उसमें बेहद कम लोगों को शामिल करना होगा, चर्चा भी सिर्फ कुछ शीर्ष अधिकारियों से ही करनी होगी... मैंने पहले दुमका के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट सुधीर कुमार को फोन किया, जिनके पास मसनजोर में बेहद खूबसूरत गेस्ट हाउस था, और उन्हें बताया कि मैं अगली सुबह वहां आना चाहता हूं, सो, उन्हें गेस्ट हाउस के आसपास बेहद कड़ी सुरक्षा का इंतज़ाम करना होगा... मैंने ज़ोर देकर कहा कि गेस्ट हाउस के आसपास किसी को भी आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए...
तब तक लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा पटना पहुंचकर समस्तीपुर के लिए रवाना हो चुकी थी, जहां सर्किट हाउस में उनका रात को रुकने का इरादा था... मैंने कुछ अधिकारियों को बुलाया और उन्हें घर नहीं लौटने दिया... उनमें राजकुमार सिंह (जो अब केंद्रीय ऊर्जा मंत्री हैं) तथा रामेश्वर ओरांव (जो उस वक्त पुलिस के डीआईजी थे, और बाद में सांसद बने) शामिल थे... मैंने अपने चीफ पायलट से भी संपर्क साधे रखा, और उनसे आग्रह किया कि वह तड़के ही चॉपर उड़ाने के लिए तैयार रहें, लेकिन यह नहीं बताया कि जाना कहां है...
पायलट अविनाश बाबू अगले तड़के राजकुमार सिंह तथा रामेश्वर ओरांव को समस्तीपुर लेकर गए, जहां उन्हें समस्तीपुर के सर्किट हाउस के निकट एक स्टेडियम पर उतारा गया...
पिछली ही रात को मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया था, और रात को लगभग 2 बजे सर्किट हाउस में फोन कर मैथिली भाषा में बात करते हुए खुद को स्थानीय अख़बार का रिपोर्टर गोनू झा बताया और लालकृष्ण आडवाणी के बारे में पूछा... जिसने फोन उठाया था, उसने बताया कि वह सो रहे हैं... उसने इस बात की पुष्टि की कि उनके समर्थक जा चुके हैं... मैं दरअसल यह सुनिश्चित करना चाहता था कि जब उनकी गिरफ्तारी के लिए फोर्स पहुंचे, तो उन्हें समर्थकों की भारी भीड़ का सामना नहीं करना पड़े...
बड़ी राहत की बात थी कि लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के साथ जो मीडिया वाले चल रहे थे, उन्होंने उस रात पटना में ही रुके रहने का फैसला किया था... उनमें से कुछ मुझे भी मिले थे, और मैंने उनसे कहा था कि मेरा लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने का कोई इरादा नहीं है; उनमें से कुछ लोग आडवाणी तथा BJP के काफी करीब थे...
जब मेरे अधिकारियों ने लालकृष्ण आडवाणी और अशोक सिंहल को गिरफ्तार कर लिया, वे मसनजोर जाने की जगह उड़कर वापस पटना चले गए... कुछ देर के लिए मैं भी घबरा गया था कि कहां क्या गड़बड़ हो गई, लेकिन मुझे आश्वस्त कर दिया गया कि सभी कुछ बिल्कुल ठीक है, और वह सिर्फ ईंधन भरवाने के लिए पटना लौटे हैं...
जब लालकृष्ण आडवाणी मसनजोर गेस्ट हाउस पहुंच गए, मैंने उन्हें फोन किया और कहा, "सर, आपको गिरफ्तार किया जाना ज़रूरी था... प्लीज़, मेरे खिलाफ कुछ मन में न रखिएगा..." मैंने उन्हें यह भी बताया कि वहां एक रसोइया, डॉक्टर तथा सभी अन्य सुविधाएं उनके लिए मौजूद हैं...
वह कई दिन तक मसनजोर गेस्ट हाउस में रहे थे... मैंने उनसे संपर्क बनाए रखा, और उनके परिवार से भी, जब वे उनसे मिलने के लिए आए... मैंने ज़ोर देकर कहा था कि वे मसनजोर तक कार चलाकर जाने की जगह सरकारी चॉपर (हेलीकॉप्टर) का इस्तेमाल करें... मैं भले ही उनकी राजनैतिक विचारधारा के खिलाफ था, लेकिन हम दुश्मन नहीं हैं...
मैं माफी चाहता हूं, लेकिन सच्चाई यही है कि हम अपनी संस्कृति को भूल चुके हैं, और आजकल राजनैतिक संवाद में इतनी ज़्यादा कड़वाहट भर चुकी है कि उस तरह की अच्छी बातों के बारे में सोचना भी नामुमकिन है, जो उन दिनों हुआ करती थीं...
हमने केंद्र में सरकार गंवा दी, लेकिन मुझे आज भी इस बात पर फख्र है कि हमने वह किया, जो समय की आवश्यकता थी... सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को रोकने के लिए लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया जाना बेहद ज़रूरी था...
लालू प्रसाद यादव राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, तथा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री हैं...
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