कई बार किसी कदम की पहली प्रतिक्रिया भी देखी जानी चाहिए। जैसे ही खबर आई कि प्रधानमंत्री मोदी लाहौर जा रहे हैं, सुनकर ही अच्छा लगा। दुश्मनी हो या दोस्ती भारत-पाकिस्तान संबंधों में हम बहुत औपचारिक हो गए थे। पाकिस्तान को धमकाना चुनावी नौटंकी तो दो-चार नपे तुले वाक्यों में दोस्ती की बात उससे भी ज्यादा नकली लगने लगी थी। मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को बुलाकर ही संदेश दे दिया कि वे भारत पाक संबंधों में एलान-वेलान का सहारा नहीं लेंगे। औपचारिक की जगह आकस्मिक नीति पर चलेंगे। फिर भी लोग औपचारिकता का ही रास्ता देखते रहे। संबंधों में कितना सुधार हुआ या हो रहा है यह तो अब नरेंद्र-नवाज़ ही जानें लेकिन दोनों ने मीडिया संस्थानों में भारत-पाकिस्तान बीट को मिट्टी में मिला दिया है!
लाहौर जाकर नरेंद्र मोदी ने दोस्ती की चाह रखने वाले दिलों को धड़का दिया है। जो लोग भारत-पाकिस्तान को भावुकता के उफान में देखते हैं उन्हें लाहौर जाकर प्रधानमंत्री ने करारा जवाब दिया है। प्रधानमंत्री ने खुद को भी करारा जवाब दिया है। उनके राजनैतिक व्यक्तित्व की धुरी में पाकिस्तान भी रहा है। लोकसभा चुनावों के दौरान इंडिया टीवी के मशहूर शो आपकी अदालत में कहा था कि पाकिस्तान के साथ यह लव लेटर लिखना बंद होना चाहिए। पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना होगा। सबको लगा था कि लव लेटर वाला नहीं बल्कि लेटर बम वाला नेता मिल गया है!
मुल्कों की कोई एक भाषा नहीं होती। समय-समय पर भाषा का संदर्भ बदल जाता है। प्रधानमंत्री का लाहौर जाना मेरे लिए तो लव लेटर लिखने जैसा ही है। हर लिहाज़ से अच्छा है। जैसे ही खबर सुनी कि प्रधानमंत्री लाहौर उतरने वाले हैं, पहली बार लगा कि काश मैं भी होता उनके साथ! पाकिस्तान की उनकी नीति को जो लोग हमेशा उनके चुनावी भाषणों के फ़्रेम में देखने के आदी रहे हैं वे गलती कर रहे हैं। उन्होंने तब भी गलती की जब वे इन धमकियों को गंभीरता से ले रहे थे! अब भी गलती कर रहे हैं जो लाहौर यात्रा को लेकर बातचीत का ड्राफ्ट मांग रहे हैं।
लाहौर जाकर प्रधानमंत्री ने उन न्यूज एंकरों को भी समझा दिया है जो शहीद परिवारों और जवानों के प्रवक्ता बनकर अपने आपको सीमा पर खड़े जवान का दिल्ली में प्रहरी समझ रहे थे। दर्शक भी देख रहे होंगे कि यह लोग पाकिस्तान को लेकर नकली राष्ट्रवादी उन्माद फैला रहे थे। जिसके प्रभाव में सुषमा ने एक सर के बदले दस सर का बयान दिया था। अब कोई शहीदों के गांव घर जाकर भावुकता का उन्माद नहीं फैलाएगा। टीआरपीवादी की शक्ल में राष्ट्रवादी बनकर हर शहादत पर अवार्ड वापसी की बात करने की बचकानी हरकत नहीं करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने इन सबको अच्छा पाठ पढ़ाया है।
ठीक है कि सीमा पर होने वाली शहादत को लेकर राजनीतिक रूप से बीजेपी भी भाषाई उन्माद फैलाने में लगी थी लेकिन क्या यह बातचीत की बात करने वालों और उन्माद का विरोध करने वालों की जीत नहीं है। क्या बीजेपी आज पहले से बेहतर नहीं महसूस कर रही होगी? बिल्कुल उसे भी अच्छा लगा है कि उनके नेतृत्व में आगे बढ़ने की चाहत है। हम तो तब भी कहते थे कि सीमा पर गोलीबारी और आतंकवादी घटनाओं को उन्माद के प्रभाव में नहीं देखा जाना चाहिए। जो लोग चुनावी रैलियों में पाकिस्तान को सबक सिखाने वाला भाषण सुनकर लौटे थे उनके लिए यह कितना अच्छा मौका है। सीखने, समझने और सुधरने का मौका है कि चुनावी भाषणों पर ताली बजाने का सुख और राज चलाने की व्यावहारिकता का सुख-दुख अलग होता है। उन्हें कुछ वक्त के लिए अकेलापन लगेगा लेकिन वे भी समझ जाएंगे कि उनके नेता ने अच्छा कदम उठाया है।
प्रधानमंत्री मोदी की लाहौर यात्रा का स्वागत होना चाहिए। उन्होंने मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक समाज से पाकिस्तान को लेकर उन्माद फैलाने वालों को किनारे लगाने का सुनहरा मौका दिया है। मनमोहन सिंह में यह साहस नहीं था। वे बीजेपी के हमलों के आगे झुक गए। बिरयानी वाले संवाद से ऐसे डर गए जैसे पाकिस्तान में बिरयानी ही न बनती हो। जैसे पाकिस्तानी तभी बिरयानी खाते हैं जब हिंदुस्तानी खिलाते हैं ! प्रधानमंत्री मोदी साहसिक हैं। जोखिम लिया है तो कुछ भी हो सकता है। अच्छा भी हो सकता है।
पाकिस्तान और भारत के बीच कुछ तो चल रहा है। हो सकता है कोई पर्दे के पीछे से चला भी रहा हो। युद्ध विकल्प नहीं है वरना पश्चिमी ताकतें अफगानिस्तान, सीरिया और इराक जैसे हालात इधर भी पैदा कर देंगी। भारत-पाकिस्तान के बीच कुछ भी अचानक और आमूलचूल नहीं होगा। यही क्या कम है कि दोनों नेता जब चाहें एक दूसरे के यहां आने जाने लगें। बस जरा स्टील कारोबारी की मध्यस्थता या उपस्थिति की बात खटकती है। जिस मसले के लिए सीमा पर हमारे जवान रोज शहीद हो रहे हैं उसके लिए गुप्त रूप से किसी कारोबारी की जरूरत पड़े, थोड़ा ठीक नहीं लगता। अगर कारोबारी यह काम कर सकते हैं तो कूटनीति वाले विद्वानों को कुछ दिन के लिए आराम देने में कोई हर्ज नहीं !
बेशक चुनौतियां आएंगी तब हो सकता है कि भारत-पाकिस्तान को लेकर फिर से सवाल बदल जाएं। लेकिन इसी अंदेशे में नकारात्मक हुआ जाए यह ठीक नहीं। जब ऐसी कोई चुनौती आएगी तो प्रधानमंत्री जवाब देंगे कि उन्हें ऐसा क्या लगा था कि वे पाकिस्तान पर भरोसा करने लगे। लाहौर जाने लगे। अगर आप इस सवाल का जवाब चाहते ही हैं तो किसी बिजनेस बीट के पत्रकार से पूछ लीजिएगा। भारत-पाक और कश्मीर बीट के प्रोफेसर हो चुके पत्रकारों को तो यही समझ नहीं आ रहा कि पीएम जो भी कर रहे हैं उन्हें खबर क्यों नहीं लग पाती!
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This Article is From Dec 25, 2015
लाहौर यात्रा - पाकिस्तान को प्रधानमंत्री मोदी का लव लेटर
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 25, 2015 23:40 pm IST
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Published On दिसंबर 25, 2015 23:33 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 25, 2015 23:40 pm IST
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