2012 में पत्रकार और लेखक एस हुसैन ज़ैदी ने राहुल भट्ट के साथ एक किताब लिखी थी 'हेडली एंड आई' जिसमें अमेरिका की जेल में कैद डेविड हेडली ने NIA को जो बयान दिए थे वह भी शामिल किए गए थे। वैसे तो इस किताब को महेश भट्ट के बेटे राहुल भट्ट के नज़रिये से लिखा गया है जिसमें उन्होंने हेडली के साथ अपनी दोस्ती पर एक तरह से 'सफाई' दी है। राहुल ने बताया है कि हेडली के साथ उनकी मुलाकात किन हालातों में हुई और वह किस तरह करीब डेढ़ साल की दोस्ती में बिल्कुल नहीं जान पाए कि हेडली दरअसल एक आतंकवादी हैं। वह तो हेडली की चतुराई और बुद्धिमानी के इतने कायल थे कि उन्हें किसी अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी (पढ़ें CIA) के जासूस से कम नहीं समझते थे।
ख़ैर राहुल-हेडली की बात किसी और दिन, अभी तो लखवी पर ध्यान देते हैं। तो किताब में हेडली के दिए बयानों में लखवी का नाम भी बार बार आता है। लश्कर के इस कमांडर को हेडली कभी लखवी तो कभी ज़की कहकर संबोधित करते हैं और बताते हैं कि कब और किस तरह 26/11 ऑपरेशन से कुछ साल पहले इनकी मुलाकात इस अहम शख्स से हुई थी। किताब के मुताबिक हेडली अपने बयान में कहते हैं ‘मैं हाफिज़ सईद द्वारा आयोजित इज़्तिमे में शामिल होने लगा था। लोग मुझे पहचानने लगे थे। ऐसे ही एक कार्यक्रम में ज़की-उर-रहमान लखवी ने भाषण दिया। बाद में मुझे उनसे मिलवाया गया और मैंने उनसे जिहाद के बारे में अपनी उत्सुकता साझा की। लेकिन लखवी और उनके साथियों ने कहा कि मुझे इस्लाम के बारे में कुछ नहीं पता और मैं पूरी तरह अनाड़ी हूं। उन्होंने मुझे सलाह दी कि सच्चा मुसलमान बनने के लिए पहले मुझे थोड़ी ट्रेनिंग लेनी होगी।‘
हेडली ने आगे कहा ‘हाफीज़ सईद और ज़की-उर-रहमान लखवी दोनों ही जिहाद में यकीन रखते थे लेकिन दोनों की भूमिकाएं अलग अलग थीं। हाफिज़ को उनके भाषण के लिए जाना जाता था। वह इज़्तिमे के ज़रिए लोगों को यकीन दिलाते थे कि उनका (लश्कर) का इस्लाम ही सच्चा है और बाकी सब बकवास। लखवी का काम इसके बाद से शुरू होता था। वह कहता था कि जिहाद ही जिंदगी जीने का सही तरीका है। लखवी कहा करता था कि इस्लाम को तुम्हारा खून चाहिए, तुम्हारा बलिदान चाहिए।’
किताब में हेडली के बयान को आगे बढ़ाते हुए लिखा गया है ‘लखवी ने मुझे जो कुछ कहा उसे सुनकर मैं निराश हो गया। उसने मुझसे कहा - तुम्हारे लिये कश्मीर जाना सही नहीं होगा क्योंकि उस मिशन के लिए तुम्हारी उम्र हो चुकी है। कश्मीर की लड़ाई के लिए हमें कुछ ऐसे युवा चाहिए जो 20 की उम्र में हो, जिनका रगों में जवान खून दौड़ रहा हो। मेरे दोस्त, तुम तो चालीस की उम्र पार कर चुके हो। हम तुम्हे कश्मीर जाने की इजाज़त नहीं दे सकते।’
किताब में हेडली द्वारा आईएसआई के एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर रियाज़ का ज़िक्र करने की बात कही गई है। हेडली ने कहा ‘रियाज़ जिस आलीशान घर में रहता था, वैसे घर अक्सर फिल्मों या तस्वीरों में ही देखने को मिलता है। कई बार लश्कर के मुखियाओं के साथ मैं भी उसके घर जाया करता था। तब मुझे पता लगा कि पाकिस्तान की आईएसआई और लश्कर के बीच मालिक-नौकर जैसा रिश्ता है। लश्कर का कमांडर ज़की, जो सारे ऑपरेशन का कर्ता धर्ता था, रियाज़ के आगे वह एक नौकर से ज्यादा कुछ नहीं था। वह कभी भी रियाज़ की बात से असहमत नहीं होता था, उसकी हां में हां मिलाता था और उसके आदेशों का पालन करता था। ज़की के साथ काफी वक्त गुज़ारने के बाद मुझे पता था कि वह रियाज़ की कई बातों से सहमत नहीं होता था लेकिन इनके अधिकारों की एक सीमा रेखा खींच दी गई थी और रियाज़ का काम आदेश देने का था और ज़की का काम बिना सवाल पूछे, उन आदेशों का पालन करना था।’
‘आईएसआई और लश्कर के बीच की यह शादी बेहद अजीब थी और मैं जानता हूं कि लश्कर इससे खुश नहीं था। लश्कर के लिए जिहाद सबसे जरूरी था लेकिन आईएसआई को जिहाद से कोई सरोकार नहीं था। उनकी दिलचस्पी भारत को अस्थिर करने में ज्यादा था। मैं जानता था कि ज़की और उसके बाकी साथी सोचते हैं कि आईएसआई इस्लाम को लश्कर से ज्यादा अच्छे से नहीं समझते, ना ही एजेंसी सच्चे इस्लाम में यकीन रखती है। लेकिन उनके हाथ बंधे हुए थे। लश्कर को टिके रहने के लिए आईएसआई के कवच की जरूरत थी और इसके लिए उन्हें एजेंसी के सभी आदेशों का पालन करना ही था। मेरे सभी लश्कर मास्टर अपने आईएसआई मास्टर का कहा मानते थे।‘
हेडली के सुनाए एक और वाकये का ज़िक्र जिसके बारे में किताब में लिखा गया था – ‘आईएसआई और लश्कर के बीच काफी वक्त से कुछ ठीक नहीं था। खासतौर पर अब्दुर रहमान पाशा (पाकिस्तान सेना का रिटायर्ड मेजर) और लखवी के बीच काफी तनाव चल रहा था। लखवी को लगता था कि आईएसआई उसका इस्तेमाल कर रही है। एक बार पाशा, अबु दुजाना, मेजर हारून और मैं एक साथ बैठकर राष्ट्रपति मुशर्रफ की हत्या की योजना बना रहे थे। बाद में अबु दुजाना ने जब इस बारे में ज़की को बताया तो उसके गुस्से का ठिकाना नहीं था। उसने हमें ऐसी कोई योजना बनाने से साफ मना कर दिया। बाद में मेजर हारून और लखवी के बीच भी मनमुटाव हो गया था और हारून ने ज़की के खिलाफ पर्चे भी बंटवाए थे। ऐसी अफवाहें भी थीं कि आईएसआई बहुत जल्द ज़की को लश्कर के मिलेट्री चीफ से हटा देगी। हालांकि ऐसा कुछ हुआ नहीं...’
कल्पना एनडीटीवी ख़बर में कार्यरत हैं.
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