पाकिस्तान में शहबाज़ शरीफ के सत्ता संभालते ही उनकी मुश्किलें और बढ गई हैं. जैसी उनके गठबंधन को उम्मीद थी कि 'सेलेक्टेड पीएम' इमरान खान को उन्होंने पूरी तरह मात दे दी है, ऐसा हुआ नहीं है. असल में सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद इमरान खान को अवाम के एक बड़े तबके की सहानुभूति मिल रही है. यही वजह है कि उनके आज़ादी मार्च को अच्छा खासा समर्थन मिला. जब पेशावर से उन्होंने अपना मार्च शुरू किया तो पाकिस्तान मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, समर्थकों की संख्या ज्यादा नहीं थी. दूसरी तरफ इस्लामाबाद को आने वाली हर सड़क को विशालकाय कंटेनर लगाकर बंद कर दिया गया. कुछ और शहरों में घुसने के रास्तों पर बैरिकेड लगाए गए. बड़ी संख्या में पुलिस तैनात की गई. कई जगहों पर जैसे - पेशावर, लाहौर, कराची में इमरान की पार्टी पीटीआई (PTI) के समर्थकों और पुलिस के बीच झड़प हुई. पीटीआई के मुताबिक इस हिंसा में कम से कम पांच पीटीआई कारकून मारे गए जबकि सरकार के मुताबिक 18 से ज्यादा पुलिसवाले घायल हुए. लेकिन इस सब के बावजूद इमरान का काफिला इस्लामाबाद पहुंचने में कामयाब रहा.
इसके पहले इमरान की पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से शहर के अंदर जलसे की इजाज़त ले ली लेकिन जलसे की इजाजत सिर्फ इस्लामाबाद के सेक्टर एच-9 और सेक्टर जी-9 के बीच मैदान के लिए मिली. कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर भी कोर्ट ने रोक लगा दी और गिरफ्तार पीटीआई समर्थकों को रिहा करने का आदेश दिया. पीटीआई ने कोर्ट को ये आश्वासन दिया कि उनका इस्लामाबाद में धरना शांतिपूर्ण रहेगा. इस बीच सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी कर शहर की रेड ज़ोन की सुरक्षा में सेना की तैनाती का आदेश दे दिया. रेड ज़ोन इस्लामाबाद का वो इलाका है जहां सुप्रीम कोर्ट, संसद, पीएम आवास और देशों के दूतावास मौजूद हैं.
गुरुवार की सुबह जब इमरान इस्लामाबाद में घुसे तो उनके कारवां में लोग जुड़ते गए.बड़ी संख्या में महिलाएं भी आईं लेकिन इसके पहले पीटीआई के कारकूनों ने शहर में जमकर उत्पात किया. कई पेड़ों को आग लगा दी, मेट्रो स्टेशन में भी आगज़नी हुई. इस सब के बीच इमरान खान ने शहबाज़ शरीफ की 'इंपोर्टेड सरकार' को 6 दिन की मोहलत दी है कि वो ताज़ा चुनावों का ऐलान कर दें. और अगर ऐसा नहीं होता है तो उन्होंने कहा है कि वो वो वापस अपने समर्थकों के साथ इस्लामाबाद लौटेंगे.
असल में 9 अप्रैल को विश्वासमत खोकर सत्ता से बाहर हुए इमरान खान ने इसे एक विदेशी साज़िश करार दिया है. इसमें उन्होंने पाकिस्तानी सेना को भी लपेट लिया है. युवा बड़ी संख्या में उनके साथ लगते हैं और शहबाज शरीफ के गठबंधन पर वंशवाद का ठप्पा भारी पड़ रहा है. वो चाहते हैं कि उनकी सरकार तय समय यानि अक्टूबर 2023 में ही चुनाव कराए. इस बीच पाकिस्तान की मीडिया में ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा, जिनका टर्म नवंबर में खत्म हो रहा है, भी एक्सटेंशन चाहते हैं लिहाज़ा फौरन चुनाव वो भी नहीं चाहेंगे. ये भी कहा जा रहा है कि इमरान के सेना को भ्रष्ट साबित करने की कोशिशों के कारण इस बार सेना, पूर्व पीएम के पक्ष में नहीं है. और इस सब के बीच पाकिस्तान के आर्थिक हालात लगातार खराब हो रहे हैं.
कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और सीनियर एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.