एक साल के भीतर भारत के नौ राज्यों में व्हॉट्सऐप (WhatsApp) पर बच्चा चोरी की अफवाहों के कारण 27 मासूम लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला. फेक न्यूज़ का यह सबसे वीभत्स रूप है, लेकिन इसके और भी चेहरे हैं, और हर तरफ नज़र आ रहे हैं. फेक न्यूज़ या फिर झूठी ख़बर कभी जाने-पहचाने चेहरों के ज़रिये आप तक पहुंचती है, कभी सोशल मीडिया पर छिपे हुए लोगों की फैलाई हुई होती हैं. कई बार अपने विचारों के कारण लोग फेक न्यूज़ पर भरोसा करते हैं या फिर जिनके ज़रिये उन तक वह झूठी ख़बर पहुंची है, उन पर भरोसे के कारण ख़बर पर भी भरोसा हो जाता है. लेकिन फेक न्यूज़ का हर अवतार घातक है, किसी न किसी तरह. लोगों को मार डालना एक उदाहरण है. हमने फेक न्यूज़ के कारण दंगे, तनाव भी भड़कते देखे हैं, समुदायों में वैमनस्य पनपना देख रहे हैं. लेकिन तब क्या होता है, जब कोई नेता, वह नेता, जिस पर इस बात की ज़िम्मदारी है कि वह तथ्यों को लेकर झूठ नहीं बोलेगा, लोगों को बहकाएगा नहीं, झूठ बोलता है...? पत्रकार के तौर पर हमारी ज़िम्मेदारी हर ख़बर को देख-परखकर ही उसे दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाने की होती है, लेकिन जब फेक न्यूज़ वायरल बुखार की तरह फैल जाए, तब क्या...?
अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य की राजधानी सैक्रामेंटों में है कैपिटल पब्लिक रेडियो. हैरान मत होइए, क्योंकि यहां ख़बरों के लिए, मनोरंजन के लिए रेडियो अब भी फल-फूल रहा है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक कार्यक्रम के तहत जब मैं सैक्रामेंटो के इस रेडियो स्टेशन के दफ्तर पहुंची, तो मुझे जो सबसे आश्चर्यजनक बात लगी, वह यह थी कि उन्होंने एक पत्रकार की नियुक्ति सिर्फ तथ्यों को परखने के लिए की है. जब हमने इसकी वजह जाननी चाही, तो पता चला कि कई नेता तथ्यों को तोड़-मरोड़कर बोलने लगे थे और उसकी तह तक जाने के लिए जिस तरह से पुराने बयान, सरकारी आंकड़े, और बाकी सबूतों को जुटाने की ज़रूरत होती है, उसके कारण यह नियुक्ति ज़रूरी लगी. और तो और, इसका असर भी हुआ है. जब इस रेडियो स्टेशन ने सबूतों के साथ बयानों को झूठा या गलत बताया, उस पर नेताओं ने माफी मांगी और उनके बयानों में अब ज़्यादा पारदर्शिता भी दिखती है.
यहां भारत में वक्त कुछ ऐसा है कि कितना भी बड़ा राजनेता क्यों न हो, उसके दावों और बयानों को परखने की ज़रूरत बढ़ती जा रही है. किसी के लिए भी अंधभक्ति और गफ़लत का जो माहौल है, उसमें सिर्फ यह कहना काफी नहीं कि फलां बयान झूठ है, गलत है. पूरे सबूत चाहिए. ऐसे में पत्रकारों की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वे निजी और व्यक्तिगत राय से ऊपर उठकर सिर्फ तथ्यों पर टिके रहें. यह फेक न्यूज़ से निपटने का बड़ा तरीका है. नेता सुधरेंगे या नहीं, यह तो वक्त बताएगा.
वैसे फेक न्यूज़ से निपटने के लिए सरकार भले ही अपने स्तर पर कदम उठा रही हो, सोशल मीडिया कंपनियां भले ही कह रही हों कि वे कदम उठाएंगी, लोगों को समझाने-बताने के लिए विज्ञापन भी दे रही हों, लेकिन ज़रूरत हर कदम पर रोकथाम की है. सिर्फ सरकार, कंपनियां और पत्रकार ही नहीं, ज़िम्मेदारी सबकी है. सोशल मीडिया पर मिली ख़बरों के बारे में सोचें-समझें और ज़िम्मेदार सूत्रों से तसदीक करने की कोशिश करें. भड़काऊ मैसेज आगे न बढ़ाएं. सोचें-समझें और खुद के लिए फैक्ट चेकर बनें. फेक न्यूज़ पूरी दुनिया में बड़ा खतरा है, और हर जगह लोग इससे पार पाने की कोशिश में हैं.
कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...
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This Article is From Jul 10, 2018
ज़िम्मेदारी सभी की है, सभी को बनना होगा 'फैक्ट चेकर'
Kadambini Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 10, 2018 14:15 pm IST
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Published On जुलाई 10, 2018 14:15 pm IST
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Last Updated On जुलाई 10, 2018 14:15 pm IST
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