एक समय ऐसा था जब जस्टिस मार्कंडेय काटजू अपने बेबाक बयान के लिए जाने जाते थे, अगर काटजू कुछ लिख देते थे तो लोग पागल की तरह पढ़ने लगते थे क्योंकि जस्टिस काटजू ने एक ईमानदार जज के रूप में लोगों में एक पहचान बनाई. जब भी मीडिया में जस्टिस काटजू के इंटरव्यू होते, लोग ध्यान से सुनते थे. सब को लगता था जस्टिस काटजू जो कह रहे वह सही है, लेकिन आजकल जस्टिस काटजू कुछ ऐसे बयान देने लगे हैं जिसे लेकर उनकी आलोचना होने लगी है. जब एक पूर्व जस्टिस इस तरह के बयान देंगे तो आलोचना तो होना ही है.
कुछ दिन पहले जस्टिस काटजू ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा था अगर पाकिस्तान को कश्मीर चाहिए तो बिहार को साथ में लेना पड़ेगा. इस बयान को लेकर काफी हंगामा होने के बाद जस्टिस काटजू ने सफाई देते हुए कहा था कि वह मज़ाक कर रहे थे. कर भी रह होंगे, जब एक पूर्व जस्टिस कह रहा है तो उनकी बातों पर विश्वास करना चाहिए. 4 अक्टूबर को जस्टिस काटजू ने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि “यह काफी नहीं है, ऐसे नहीं मानेंगे, लोढा, बीसीसीआई के अधिकारियों को नंगा करके खम्भे में बांधे और 100 कोड़े लगाएं”
जब जस्टिस काटजू ने ऐसा लिखा तो हंगामा होना ही था, बीसीसीआई को भी झटका लगा होगा या फिर अगर बीसीसीआई ज्यादा समझदार होगा तो समझ गया होगा कि काटजू कटाक्ष कर रहे हैं. लोगों को भी यह समझ नहीं आ रहा था जो जस्टिस काटजू लोढा सिफ़ारिशें के मामले में बीसीसीआई को क़ानूनी सलाह दे चुके हैं. वह बीसीसीआई के खिलाफ ऐसी बात क्यों कर रहे हैं. उम्मीद भी की जा रही थी कि जस्टिस काटजू सफाई देंगे. फिर इस ट्वीट के करीब 24 घंटे के बाद जस्टिस काटजू ने फेसबुक पेज पर सफाई दी कि वह कटाक्ष कर रहे थे. काटजू ने यह भी लिखा कि लोगों को न कटाक्ष समझ में आता है न मज़ाक. स्वाभाविक रूप में कैसे भी आएगा क्योंकि भारत के 90 प्रतिशत लोग तो मूर्ख हैं. यह मैं नहीं कह रहा हूं जस्टिस काटजू कह चुके हैं.
समझ नहीं आ रहा है कि ट्विटर और फेसबुक पर गाली-गलौज करने वाले लोग जस्टिस काटजू के उस मज़ाक और कटाक्ष को कैसे समझ नहीं पाए, क्या सच में ट्विटर और फेसबुक पर एक्टिव रहने वाले ज्यादा से ज्यादा लोगों को कटाक्ष, मजाक और वास्तविकता की समझ नहीं है. हो सकता न भी हो, जब मीडिया वाले समझ नहीं पाए तो दूसरे क्या समझेंगे. जब जस्टिस काटजू ऐसे बयान देते है मीडिया में यह आग की तरह फैल जाता है,खबर बन जाती है. ऐसा लगता है मीडिया ही मजाक कर रहा है जो कटाक्ष को समझ नहीं पा रहा है. जब जस्टिस काटजू मजाक कर रहे हैं तो उसे मजाक की तरह लेना चाहिए खबर बनाने कि क्या जरूरत है. क्या और कोई खबर नहीं है? यहां जस्टिस काटजू की वह बात याद आती है जब उन्होंने कहा था कि मीडिया के माथे में कुछ नहीं है.
जो भी हो जस्टिस काटजू को मीडिया वालों के ऊपर थोड़ा मेहरबान होना पड़ेगा जब वह जानते हैं कि मीडिया के माथे में कुछ नहीं है तो जब भी ऐसे बयान दें तो आगे लिख दें कि वह मजाक कर रहे हैं. अगर ऐसे करेंगे तो सफाई देने कि जरूरत नहीं पड़ेगी और अगर सफाई देनी है तो तुरंत दे दें, इंतज़ार न कराएं. हंगामे का इंतज़ार न करे. जब मजाक या कटाक्ष है तो लिखने में क्या दिक्कत है.
अगर ऐसे करेंगे तो मीडिया वालों का भी समय बच जाएगा. वह मजाक को मजाक समझेंगे और कटाक्ष को कटाक्ष, बेकार का दिमाग नहीं लगाएंगे और न ही ऐसे मजाक और कटाक्ष को खबर बनाएंगे, कम से कम सही खबरों को तो जगह मिलेगी.
सुशील कुमार महापात्र NDTV इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...
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This Article is From Oct 06, 2016
जस्टिस काटजू के कटाक्ष और मीडिया का मजाक
Sushil Kumar Mohapatra
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 06, 2016 11:43 am IST
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Published On अक्टूबर 06, 2016 11:43 am IST
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Last Updated On अक्टूबर 06, 2016 11:43 am IST
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