हरियाणा के जींद का उपचुनाव अब महज एक विधायक चुनने का चुनाव नहीं रह गया है क्योंकि कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और कैथल से विधायक रणदीप सुरजेवाला ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला कर इस उपचुनाव को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का बिषय बना दिया है. हर जगह यही बातें हो रही हैं कि सुरजेवाला आखिर ये जोखिम क्यों ले रहे हैं. यही वजह है कि अपने हर मीटिंग में सुरजेवाला इसी बात पर सफाई देते नजर आते हैं कि आखिर वे जींद का उपचुनाव लड़ने क्यों आए हैं. सुरजेवाला यह भी कहते हैं कि यदि वे जीत गए तो जींद से ही विधायक रहेंगे और कैथल छोड़ देंगे. मगर लोग यह भी मानते हैं कि हारने पर उनकी किरकिरी होगी और उनके इमेज को धक्का लगेगा. वहीं लोगों को यह भी लगता है कि अगर वो जीत गए तो मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे और हरियाणा की राजनीति में उनका कद बढ़ेगा. यही वजह है कि सुरजेवाला को यहां अपने विरोधी कांग्रेसियों से भी भीतरघात का खतरा है.
वैसे कांग्रेस सूत्रों की मानें तो कांग्रेस अध्यक्ष ने जब रणदीप सुरजेवाला को बुला कर कहा कि आपको जींद का उपचुनाव लड़ना है तो सुरजेवाला ने कहा कि वो तो कैथल से विधायक हैं. तो राहुल ने उनसे कहा कि हर चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ा जाता, कुछ चुनाव पार्टी की साख बचाने लिए भी लड़े जाते हैं. राहुल की सोच सही ही है. हरियाणा में कांग्रेस की हालत खराब है और वह चौथे नंबर की पार्टी है. यही वजह है कि कार्यकर्ताओं में भरोसा पैदा करने के लिए जींद उपचुनाव को कांग्रेस ने शुरूआत के तौर पर लिया है.
वैसे जींद के इतिहास को देखें तो यहां की राजनीति में तीन लोगों का दबदबा रहा है उनमें से एक चौधरी बीरेन्द्र सिंह हैं जो पहले कांग्रेस में थे मगर अब बीजेपी में हैं और केन्द्र में मंत्री हैं. दूसरे मांगे लाल गुप्ता हैं जो अब काफी बुजुर्ग हो गए हैं हालांकि सभी दलों ने कोशिश की कि वे चुनाव लड़ लें उनकी पार्टियों से मगर उन्होंने मना कर दिया. मांगे लाल अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे मगर इसमें सफल नहीं रहे. और तीसरे व्यक्ति हैं शमशेर सिंह सुरजेवाला जो नरवाना से चुनाव जीतते रहे, बाद में रणदीप सुरजेवाला ने कमान संभाली और एक चुनाव में ओमप्रकाश चौटाला को हरा कर सुर्खियां बटोरी. मगर जब नरवाना सीट सुरक्षित घोषित की गई तो सुरजेवाला नरवाना छोड़ कर कैथल चले गए.
एक और व्यक्ति हैं जिनका नाम है जयप्रकाश जिनका यहां काफी दबदबा है और वो निर्दलीय ही चुनाव जीतते रहे हैं मगर इस बार सुरजेवाला को सर्मथन दे रहे हैं. उसके एवज में कांग्रेस ने उनके बेटे को अगले विधानसभा में टिकट देने का वायदा किया है. जींद में यदि जाति के आधार पर समीकरण देखें तो एक लाख सत्तर हजार मतदाताओं की इस विधानसभा में 45 हजार जाट हैं जो निर्णायक भूमिका में हैं, 17 हजार ब्रहाम्ण हैं तो सैनी, पंजाबी, बनिया और दलित मतदाताओं की संख्या 15 हजार के करीब है जो दलित के एक ही जाति से आते हैं, अन्य दलित अलग हैं. जबकि 18 हजार अन्य जाति के मतदाता हैं. जींद उपचुनाव में राजकुमार सैनी ने भी अपना उम्मीदवार उतार रखा है जो पहले बीजेपी में थे. उन्हें 15 हजार सैनी मतदाताओं का ही सहारा है.
सैनी यहां वोटकटवा की भूमिका में हैं. दूसरी तरफ 15 हजार पंजाबी और 15 हजार बनिया मतदाता एक साथ वोट नहीं करते. इनका झगड़ा इतना बड़ा है कि ये एक दूसरे की शादियों में भी नहीं जाते. हांलाकि बीजेपी ने इनको एक साथ लाने की भी कोशिश की है, एक बैठक भी बुलाई गई मगर वहां भी इनके बीच विवाद हो गया. यही नहीं जींद उपचुनाव में ओमप्रकाश चौटाला या कहें अभय चौटाला ने बीएसपी के साथ गठबंधन किया है. जाहिर है उनकी नजर 15 हजार दलित वोटों पर होगी. बाकी अन्य दलित जाति का वोट बंटेगा. इन्हीं वोटों पर कांग्रेस की भी नजर है, यही वजह है कि हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जो खुद दलित हैं, सुरजेवाला को मोटरसाईकिल पर जींद में प्रचार करवा रहे हैं. बचे 45 हजार जाट वोटों के लिए अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय दिन रात एक किए हुए हैं. मगर उन्हें अभय चौटाला और उनके बेटे करण और अर्जुन कड़ी टक्कर देने में जुटे हैं. इसी जाट वोट पर सुरजेवाला की भी नजर है.
यानी कहें तो जींद उपचुनाव में खेस अभी खुला हुआ है. कांग्रेस ने सुरजेवाला को जींद भेज कर चौथे पांचवें नंबर पर ना आने की लड़ाई लड़ रही है तो दूसरी तरफ दुष्यंत और दिग्विजय अपने दादा ओम प्रकाश चौटाला को गलत साबित करना चाहते हैं और अपने को चौधरी देवीलील का असली वारिस साबित करना चाहते हैं. जबकि अभय चौटाला यह साबित करना चाहते हैं कि हरियाणा में इनेलो और उनके चुनाव चिह्न ऐनक का दबदबा है. दूसरी ओर बीजेपी यह सीट जीत कर मुख्यमंत्री खट्टर की लाज बचाना चाहती है. यही वजह है कि जींद उपचुनाव में सबके लिए कुछ न कुछ दांव पर लगा है और यही वजह है कि जींद की जंग शानदार और जानदार होने वाली है.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...)
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