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This Article is From Jan 11, 2015

मनीष कुमार की कलम से : दलित राजनीति के नए आइकन हैं मांझी या फिर भस्मासुर?

Manish Kumar, Saad Bin Omer
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  • Updated:
    जनवरी 11, 2015 21:43 pm IST
    • Published On जनवरी 11, 2015 21:22 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 11, 2015 21:43 pm IST

बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी दलित राजनीति के नए आइकन हैं या फिर भस्मासुर? यह सवाल आज कल सबके मन में कोंध रहा है। खासकर उन लोगों के जिन्हें बिहार की राजनीति में दिलचस्पी है।

रविवार को पूरे बिहार के अनुसूचित जाति एवं जनजाति से आने वाले अधिकारियों से खुलम-खुल्ला अपने सचिवालय कक्ष में मांझी ना केवल मिले, बल्कि पटना के एक पांच सितारा होटल से खाना भी खिलाया। उसके बाद यह साफ था कि अपने सत्ता में एक-एक पल का मांझी अपना ब्रांड बनाने के साथ ही दलित समुदाई को यह संदेह भी देना चाहते हैं कि उन्होंने उनके हितों की रक्षा के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

आप भले बिहार के पुर्व या रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों की तरह इस मीटिंग का पोस्टमॉर्टम करें कि ऐसा नहीं होना चाहिए था या कभी नहीं हुआ, लेकिन आज की तारीख में मांझी को इसकी परवाह नहीं, क्योंकि उन्हें नीतीश कुमार का भी उदाहरण मालूम है, जिन्होंने बिहार में कानून का राज कायम करने में और विकास के लिए एड़ी चोटी एक कर दी, लेकिन बिहार कि जनता मोदी के वादों पर ज्यादा भरोसा करते हुए चुनाव के समय नरेंद्र मोदी को वोट देती दिखी।

इसलिए मांझी को मालूम है कि बिहार में अपना वोट बैंक मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। भले पूरी व्यवस्था चौपट हो जाए और विकास का काम रुक जाए, लेकिन चुनाव आप जीतते रहेंगे।

यह संदेश बिहार के मतदाताओं ने खुद दिया है और ऐसे में दलितों को शहरी इलाकों में पांच डेसिमिल जमीन देना हो या सरकारी ठेकों में आरक्षण की बात, ये सारे राग छेड़कर मांझी एक ऐसे दलित नेता के रूप में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं जिसने दलितों के लिए नीतीश से ज्यादा काम किए।

यह भी सच है कि आज़ादी के बाद पहली बार बिहार में सचिव स्तर पर दलित अधिकारी इतने महत्वपूर्ण पदों पर हैं।

जबकि दूसरा पक्ष यह भी है कि नीतीश कुमार के खिलाफ विशेष तेवर अपना कर मांझी ने साफ कर दिया है कि अगर सत्ता ट्रांसफर करने का मौका मिले तो आप सब पर भरोसा कर सकते हैं, लेकिन दलितों के प्रति सचेत रहिए... वह ना केवल आपके बातों को अनसुना करेंगे, बल्कि दलित वोट बैंक के चक्कर में बाकी के सभी जाती और समुदाई को टारगेट कर उन्हें आपके और आपकी पार्टी का दुश्मन भी बना देंगे।

एक और तक यह है कि कल को जब मांझी सीएम नहीं रहेंगे, तो जिन अफसरों की आज चांदी है, उन्हें फिर अमावास्या की रात भी देखना होगी।

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