इतना टेंशन क्यों हैं भाई। उड़ता पंजाब नाम ठीक न लगे तो उड़ता पहलाज रख लो। पंजाब की जगह पहलाज कर देने से दो बातें होंगी। अनुस्वार और ब उड़ जाएगा। लेकिन कम से कम प और ज तो रह जाएंगे। साथ में ब के बदले ल और बड़ी आ की मात्रा को ठौर मिल जाएगा। दोनों खुश। है कि नहीं। निहलानी भी निहाल हो जायेंगे और अनुराग का राग भी बैराग में बदल जाएगा कि भैय्या अगली फिल्म बट सावित्री की कथा पर ही बनाएंगे।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन। हिन्दी में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड। कायदे से इसका नाम होना चाहिए केंद्रीय कांट-छांट उपरान्त फिल्म प्रमाणन बोर्ड। यानी जो फिल्म आएगी उसे हम कांट छांट कर फिर से बना कर देंगे। जिन लोगों ने गुस्से में पहलाज निहलानी को अयोग्य कहा है मैं उनसे नाराज़ हूं। मैं हमेशा से प्रो-अयोग्य रहा हूं यानी अयोग्य समर्थक। देश सिर्फ योग्य लोगों के हाथ में रहेगा तो इतने सारे अयोग्य क्या झाल बजाएंगे। इस देश के कई राज्यों में बोर्ड की परीक्षा में पचास फीसदी छात्र फेल हो जाते हैं। ये फेल इसलिए होते हैं क्योंकि फेल होने से पहले कोई इनके बारे में नहीं सोचता है। कम से कम फेल होने के बाद तो इनके बारे में सोचा जाए। बोर्ड से फेल हुए इन्हीं लाखों छात्रों में से कई आगे चलकर तमाम तरह के बोर्ड के चेयरमैन बन जाते हैं। अत: अयोग्यता स्थायी नहीं होती। योग्य भी कभी अयोग्य था- इस नाम से चाहे तो कोई सीरीयल बना सकता है।
निहलानी ने अनुराग कश्यप को जवाब देने के नाम पर सरकार की मेहनत पर पानी फेर दिया। अभी तक मंत्री कह रहे थे कि उड़ता पंजाब से पंजाब उड़ा देने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। “मैंने सुना है कि अनुराग कश्यप ने इस फिल्म के लिए आम आदमी पार्टी से पैसे लिये हैं”। क्या पहलाज निहलानी अपनी इस बात से बोर्ड के फैसले के पीछे राजनीतिक मंशा ज़ाहिर नहीं कर रहे हैं। ये तो पता चल गया कि पहलाज निहलानी सिर्फ फिल्म नहीं देखते बल्कि फिल्म के बारे में क्या क्या बातें कही जा रही हैं वो भी सुनते हैं! ये क्या कम है कि पहलाज साहब सुनी सुनाई बातों की कांट-छांट नहीं करते। जो भी सुनते हैं उस पर यकीन कर लेते हैं!
“अगर मैं भारत के प्रधानमंत्री का चमचा नहीं हूं तो क्या मैं इटली के प्रधानमंत्री का चमचा हूं”। “हां मैं मोदी का चमचा हूं जैसा अनुराग कश्यप ने कहा है”। पहलाज निहलानी की इन बातों से प्रधानमंत्री को भी झटका न लग जाए। उन्होंने नवंबर 2015 में ‘मेरा देश है महान’ नाम से एक वीडियो फिल्म बनाई थी, जिसमें बच्चे प्रधानमंत्री मोदी को मोदी काका पुकारते हैं। काका कहना बिल्कुल ठीक है जबतक कि बीजेपी से कोई यह सवाल न कर दे कि कहीं ये चाचा नेहरू की नकल तो नहीं है। गनीमत है कि इस पर ध्यान नहीं गया। सारा विवाद इस पर था कि इसमें विदेशों के सीन दिखाकर भारत के बताये गए हैं। मगर किसी वैधानिक बोर्ड का मुखिया यह कहे कि मैं मोदी का चमचा हूं तो मेरी राय में वो प्रधानमंत्री की साख पर बट्टा लगा रहा है। आज कल इतनी मेहनत से यह प्रचार हो रहा है कि पूरी सराकार किस कदर पेशेवर तरीके से काम करती है। पहलाज की बातों से लगता है कि मोदी सरकार में चमचों की भी पूछ है। वीडियो के विवाद के वक्त भी पहलाज कह चुके हैं कि मुझे चमचागिरी पर गर्व है। ऐसा लगता है कि वे खुद को चमचागिरी के फ्रेम से आज़ाद नहीं करा पा रहे हैं। वे ख़ुद उड़ना नहीं चाहते हैं इसलिए उड़ता पंजाब से पंजाब उड़ा दिया।
मंत्री कह रहे हैं कि बोर्ड के काम में सरकार की भूमिका नहीं है। बोर्ड के मुखिया कह रहे हैं कि मैं भारत के प्रधानमंत्री का चमचा हूं। कायदे से उड़ता पंजाब विवाद से ज्यादा ये संगीन मामला बनता है कि पहलाज निहलानी को चेयरमैन के पद से हटा दिया जाए। विदेश यात्रा पर गए प्रधानमंत्री के पीछे अगर उनके मंत्री या संस्थाओं के मुखिया यह बोलने लगें कि हम उनके चमचे हैं तो देश-दुनिया में उनकी क्या छवि रह जाएगी। कहीं विपक्ष ने मोदी सरकार पर चमचा राज का लेबल चिपका दिया तो? इसलिए संस्थाओं के प्रमुखों को जवाब भी अपने दायरे में देना चाहिए। उनके पास कुछ भी बोलने की छूट नहीं है। अगर वे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का असीमित इस्तमाल कर सकते हैं तो फिर किस हक से उड़ता पंजाब पर कैंची चला रहे हैं।
मेरी राय में पहलाज साहब इस तरह से भी कह सकते थे कि मैं प्रधानमंत्री मोदी में विश्वास रखता हूं। प्रधानमंत्री देश के नेता हैं, इसलिए मेरे भी नेता हैं। पहलाज ने अच्छी फिल्में नहीं बनाईं तो क्या हुआ। हिन्दी में ढंग की कुछ स्क्रीप्ट भी पढ़ी होती तो वे प्रधानमंत्री से जोड़ कर ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करते। जब आप ख़ुद को किसी का चमचा कहते हैं तो आप उसका तो नुकसान करते ही हैं जिसका चमचा होने का आप एलान करते हैं, साथ ही आप अपने विरोधियों की वो बात साबित कर देते हैं कि आप योग्य नहीं हैं।
पहलाज ने कहा है कि पंजाब चुनावों के कारण उड़ता पंजाब में कांट-छांट नहीं की गई है। उनके अनुसार अगर कोई पूरी फिल्म देखेगा तो वही समझ सकता है कि पंजाब शब्द को क्यों डिलिट किया गया है। कितनी ख़ुशी की बात है। है न! नाम और सीन उड़ाने के बाद उन्होंने किसी को पता लगने लायक फिल्म को छोड़ा भी है कि पंजाब क्यों डिलिट किया।
बहरहाल उड़ता पंजाब की जगह आप देखते रहिए उड़ता पहलाज। पहलाज साहब को डिक्टेटर कहलाना पसंद नहीं, हां वे खुद को चमचा कहलाना ज़रूर पसंद करते हैं।
This Article is From Jun 08, 2016
उड़ता पंजाब की जगह उड़ता पहलाज चलेगा क्या!
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जून 08, 2016 19:16 pm IST
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Published On जून 08, 2016 19:12 pm IST
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Last Updated On जून 08, 2016 19:16 pm IST
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