विज्ञापन
This Article is From Sep 18, 2019

ट्विटर पर ट्रेंड हुई तो क्या समस्या हल होगी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 18, 2019 00:30 am IST
    • Published On सितंबर 18, 2019 00:30 am IST
    • Last Updated On सितंबर 18, 2019 00:30 am IST

ट्विटर पर ट्रेंड के बारे में आपने सुना होगा. किसी मसले को लेकर जब कुछ समय के भीतर ट्वीट की संख्या बढ़ने लगती है तो वह ट्रेंड करने लगता है. कई बार मार्केंटिंग कंपनियां पैसे लेकर भी ट्रेंड कराती हैं, राजनीतिक दलों का आईटी सेल भी संगठित रूप से ट्रेंड कराता है. कई बार लोग अपनी तरफ से किसी मसले को लेकर ट्वीट करने लगते है और वह ट्रेंड में बदल जाता है. कई बार किसी खास समूह के लोग अपनी मांग को लेकर ट्वीट करने लगते हैं और ट्रेंड बन जाता है. ऐसा समां बांधा जाता है कि इस वक्त देश में यही बड़ी घटना है. पर क्या जब आम लोग अपनी समस्या को लेकर ट्वीट करते हैं, ट्रेंड कराते हैं तो मीडिया और सरकार उन्हें तवज्जो देती है? ट्रेंड कराने वाले नौजवान प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री विशेष को टैग करते हैं, सारे मीडिया संस्थानों के ट्विटर हैंडल को टैग करते हैं ताकि सभी अपनी टाइम लाइन पर देख सकें कि जनता किस मुद्दे को लेकर त्राहिमाम संदेश भेज रही है. हमारा सवाल यही है कि ट्विटर पर ट्रेंड कराने से कुछ होता है या प्रदर्शन की एक और औपचारिकता पूरी होती है और अगले दिन कुछ और ट्रेंड कर रहा होता है.

इस लिहाज़ से देखें तो एसएससी सीजीएल 2017 के छात्र कई दिनों से ट्रेंड करा रहे हैं तो क्या उन्हें मीडिया में प्रमुखता से जगह मिली है, सरकार की तरफ से कोई बयान आया है. हम इसका विश्लेषण करना चाहते हैं. आज सीजीएल की परीक्षा के साथ यूपी की 69000 शिक्षकों की बहाली की मामला भी ट्रेंड करता रहा. इसी को हम समझना चाहते हैं. इसके लिए पहले आपको ट्विटर के ट्रेडिंग सेक्शन में ले चलेंगे.

तो कई चीज़ें ट्रेंड करती हुई दिखेंगी. इस सूची में आप पिछले 21 घंटे में किन चीज़ों पर ट्रेंड हुआ है उसे देख सकते हैं. किस मसले पर कितना ट्वीट हुआ है उसे आप देख सकते हैं. भारत के हिसाब से और दुनिया भर के हिसाब से. कई बार लगता है कि कोई मुद्दा ट्रेंड करने लगता है तो सरकार पर बनता है लेकिन क्या हम सही सही जानते हैं कि एक महीने में कितने मसले पर ट्रेंड हुआ और उसके नतीजे क्या निकले. सबसे दुख की बात तब होती है जब मीडिया का ध्यान खींचने के लिए लोगों को ट्रेंड कराना पड़ता है ताकि मीडिया उनकी और देखे और सरकार तक बात पहुंचाएं. कई बार सरकार और मीडिया दोनों नहीं सुनते हैं तब भी लोग ट्रेंड कराकर आज़मा लेते हैं. जैसे 17 सिंतबर को जब आप ट्रेंड की सूची में जाएंगे तो अजीब अजीब चीज़ें ट्रेंड कर रही होती हैं इसी में आपको कभी तीसरे और चौथे नंबर पर यूपी की एक सरकारी परीक्षा ट्रेंड करती दिखी. 69000 शिक्षकों की बहाली का रिज़ल्ट आठ महीने से अटका हुआ है इसे लेकर यूपी के अलग अलग ज़िले के नौजवान ट्रेंड करा रहे हैं. उन्होंने साढ़े तीन लाख ट्वीट हो चुके हैं. इस परीक्षा के छात्र ट्वीट कर रहे हैं कि देश बगैर योग्य शिक्षकों के तरक्की नहीं कर सकता है. शिवानी गांधी ने ट्वीट किया है कि आप हमें नियुक्ति दें, हम आपको वोट देंगे. छात्र प्रधानमंत्री को भी टैग करते हैं. ममुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी टैग करते हैं. उसके साथ कई न्यूज़ चैनलों को भी टैग करते हैं ताकि उनकी नज़र पड़ जाए. राहुल गुप्तान ने ट्वीट किया है कि साढ़े चार लाख लोग 9 महीने से अपने रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहे हैं. सर महाधिवक्ता जी को कोर्ट में भेजने की कृपा करें और उचित पैरवी कर हमें न्याय दिलाएं. आशीष दूबे ने ट्वीट किया है कि जब तक नियुक्ति नहीं देंगे, तब तक नहीं छोड़ेंगे. यूं ही रोज़ ट्वीट पर ट्वीट करते रहेंगे, और एक दिन अपना हक और सम्मान लेकर रहेंगे. इन छात्रों को प्रधानमंत्री के लिए उनके जन्मदिन पर बधाई पत्र बनाया है और उसे अपनी मांग पत्र का रूप दे दिया है.

उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षकों की 69000 बहाली निकली थी. इसकी परीक्षा में अंकों को लेकर विवाद हुआ और मामला अदालत तक पहुंचा. हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश के बाद मामला डबल बेंच पहुंचा लेकिन वहां सात तारीखें लग चुकीं और सरकार की तरफ से कोई वकील नहीं पहुंचा. 19 तारीख को सुनवाई है. परीक्षार्थियों का दावा है कि इस परीक्षा में साढ़े चार लाख छात्र शामिल हैं. आठ महीने से रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहे हैं. यही नहीं इसके पहले 68000 बहाली निकली थी उसमें भी सारी सीटें नहीं भरी गई हैं. उनके परीक्षार्थी भी परेशान हैं. आप जानते हैं कि यूपी और बिहार के सरकारी स्कूलों में आठवीं क्लास तक की कक्षा के लिए शिक्षकों के करीब चार लाख पद खाली हैं. सोचिए समय पर भर्तियां पूरी नहीं होती होगी तो पढ़ाई पर कितना बुरा असर पड़ता होगा. भर्ती प्रक्रिया इतनी लंबी चलती है कि नौजवानों की उम्र बीत जाती है. स्थानीय अखबार इनके प्रदर्शनों को कवर करते हैं लेकिन कभी भी इनका प्रदर्शन राज्य भर का मुद्दा नहीं बन पाता है. फिर इनकी उम्मीद होती है कि नेशनल मीडिया मुद्दे को उठा ले लेकिन उनका नेशनल सिलेबस कुछ और होता है. तब इससे तंग आकर ये छात्र ट्वीटर की तरफ मुड़े हैं कि अगर वहां ट्रेंड कराया जाए तो सरकार और समाज का ध्यान जाएगा.

ट्वि‍टर पर इन नौजवानों ने खुद को झोंक दिया है. इसका असर इतना तो हुआ कि कुछ वेबसाइट ने इनके ट्रेंड होने पर खबर बनाई. ट्वीट भी किया. फिर भी व्यापक रूप से यह सवाल तो बनता है कि क्या मीडिया ने 69000 शिक्षकों की बहाली में हो रही देरी को प्रमुखता से जगह दी है? क्या सरकार ने कोई प्रतिक्रिया दी, कुछ आश्वासन दिया? छात्रों का कहना है कि ट्रेंड होने के बाद भी निराशा हाथ लगी है मगर वे हार नहीं मानने वाले हैं. ऐसा नहीं है कि ये छात्र ज़मीन पर प्रदर्शन नहीं करते हैं. हाल ही में 11 और 12 सितंबर को लखनऊ में 36 घंटे का धरना प्रदर्शन किया था. उसके पहले भी कई मौकों पर प्रदर्शन कर चुके हैं. जब वहां कुछ नहीं हुआ तो ट्वीटर की दुनिया में आ गए.

ट्विटर पर एक और ट्रेंड कर रहा है. 17 सितंबर को यह पहले नंबर पर भी पहुंच गया. स्टाफ सलेक्शन कमीशन की परीक्षा सीजीएल 2017. इस परीक्षा में धांधली की खबर के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. सुप्रीम कोर्ट से रोक हट जाने के कई महीने बीत गई है लेकिन सीजीएल 2017 का रिजल्ट नहीं आया है. एसएससी की तरफ से आश्वासन दिया गया है मगर छात्रों को देरी बर्दाश्त नहीं हो रही है. उनका कहना है कि 2017 की परीक्षा थी, 2019 बीतने जा रहा है. वे कब तक इंतज़ार करें. भैयाजी हैंडल ने ट्वीट किया है कि हज़ारों उम्मीदवार रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहे हैं. कई लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी इस परीक्षा के लिए. 838 दिन हो गए हैं मगर रिज़ल्ट नहीं आया है. 2017 की परीक्षा का रिज़ल्ट जारी करें. रवि ने ट्वीट किया है कि हमारी दुर्दशा समझने का प्रयास करें. ढाई साल हो गए हैं. हम आपने विनती करते हैं कि इस मामले को देखें. रवि ने इसे प्रियंका गांधी और प्रधानमंत्री दोनों को टैग किया है ताकि विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों का ध्यान चला जाए. पारूल सिंह यादव ने ट्वीट किया है कि हमने अच्छी नौकरी पाने के लिए अपना सब कुछ दिया लेकिन हमारे सपने चकनाचूर हो गए. एसएससी ने सपनों को चकनाचूर कर दिया. पारुल ने प्रधानमंत्री, अमित शाह, एनडीटीवी और एबीपी न्यूज़ और इंडियन एक्सप्रेस को टैग किया है. अंकित मलिक ने अपने हैंडल से ट्वीट किया है कि 2017 में परीक्षा दी थी, 2019 आ गया और रिज़ल्ट नहीं आया. रिज़ल्ट के बारे में पूछने पर केंदयी मंत्री जितेंद्र सिंह ने ब्लॉक कर दिया. अंकित ने इस ट्वीट को एनडीटीवी, लल्लनटाप और एबीबीपी न्यूज़ को टैग किया है. सीजीएल 2017 के परीक्षार्थी मुझे व्हाट्सएप करते रहे कि अभी हम नंबर दो पर ट्रेंड कर रहे थे तो अब हम पहले नंबर पर ट्रेंड कर रहे हैं. यानी आज दिन भर ये छात्र यही करते रहे ताकि किसी का ध्यान आ जाए और इनका रिज़ल्ट जारी हो जाए.

नौजवानों ने ट्रेंड को प्रदर्शन का रूप तो दे दिया लेकिन बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी. छोटी कामयाबी हाथ लगी है. पहले भी जब एक बार ट्रेंड कराया तो एसएससी ने जवाब दिया कि नवंबर तक रिजल्ट आ जाएगा. देरी के कारण भी बताए गए. छात्रों के कई मेसेज मुझे आए कि ट्रेंड करा कर देख लिया फिर भी कुछ नहीं हुआ. नेशनल चैनलों के डिबेट में अपने मुद्दे को नहीं पहुंचा सके. प्रधानमंत्री के जन्मदिन के बहाने उन्होंने ट्रेंड कराया ताकि सबका ध्यान जाएगा. दरअसल यही सबको समझना है.

वर्चुअल जगत में ट्रेंड एक तरह का प्रदर्शन या आंदोलन तो है लेकिन कहीं यह खानापूर्ति तो नहीं है? क्या इसका असर सड़क पर किए गए आंदोलन या प्रदर्शन की तरह होता है? फर्ज कीजिए कि सीजीएल 2017 और 69000 शिक्षक बहाली के नौजवान कोई पांच लाख ट्वीट करते हैं. क्या होता अगर इतने लोग वास्तविक रूप से किसी मैदान में जमा हो जाते? दूरी और प्रदर्शन की अनुमति को लेकर प्रशासन की खींचातानी के कारण सबके लिए एक जगह जमा होना संभव नहीं है. लेकिन ट्विटर पर 5 लाख लोग ट्वीट कर सकते हैं.

फिर भी उस संख्या की ताकत क्यों नज़र नहीं आई. आज अगर प्रधानमंत्री की सभा में पांच लाख लोग जमा होते तब मीडिया क्या करता, उसके कैमरे उस भीड़ को कितने तरह के एंगल से दिखाते. इस बात की गारंटी नहीं है कि पांच लाख लोग जमा हो जाते और अपनी तस्वीरें ट्रेंड करा देते तो मीडिया बहस कर ही लेता. दरअसल हमारे पास एक उत्तर नहीं है. इसके अनेक उत्तर हो सकते हैं. कुछ वर्ग विशेष से संबंधित मुद्दे ट्विटर पर ट्रेंड करते ही अंग्रेज़ी और हिन्दी चैनलों के डिबेट का हिस्सा बन जाते हैं मगर यूपी और बिहार के छात्रों को ट्रेंड से भी ये नसीब नहीं हुआ. एक लिहाज़ से देखें तो ट्वीट पर आज लाखों छात्र अपनी दो परीक्षाओं को लेकर ट्रेंड करा रहे थे, मगर टीवी पर प्रधानमंत्री का जन्मदिन मनाया जा रहा था, उस पर विस्तार से कार्यक्रम चल रहे थे.

यही नहीं सीजीएल 2017 की परीक्षा को ट्रेंड कराने वाले कई छात्रों ने हमें स्क्रीन शॉट भेजा कि मंत्री जीतेंद्र सिंह ने ब्लॉक कर दिया है. हमें भी हैरानी हुई. हमारे पास मंत्री का बयान नहीं है लेकिन छात्रों ने ब्लाक किए जाने के कई स्क्रीन शॉट भेजे हैं. उनका कहना है कि स्टाफ सलेक्शन कमीशन उनके ही मंत्रालय के तहत आता है. हमने प्रधानमंत्री के साथ उन्हें भी टैग किया था मगर हमें ब्लॉक कर दिया गया. मंत्री के द्वारा ब्लॉक किए जाने से छात्र और निराश हो गए. ऐसे ही एक समय जब सीजीएल 2017 की परीक्षा का मामला ट्रेंड कर रहा था तब कांग्रेस के शशि थरूर ने मंत्री जितेंद सिंह को टैग कर पूछा था जिसके जवाब में मंत्री ने कहा भी था कि जल्दी कार्रवाई होगी. छात्रों ने कहा कि उन्होंने कभी भी मंत्री के प्रति अशिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं किया, फिर भी ब्लॉक कर दिए गए. वैसे आज राजद सांसद मनोझ झा ने इन छात्रों के ट्वीट पर सरकार को संज्ञान लेने के लिए कहा है.

जितेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री हैं. उनका ट्विटर हैंडल सार्वजनिक दायरे में आता है. क्या एक मंत्री होकर ट्विटर को ब्लॉक कर सकते हैं? इसी जुलाई महीने की बात है. अमरीका की एक अदालत ने एक फैसला दिया कि अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ट्विटर पर किसी को ब्लाक नहीं कर सकते हैं. अदालत ने कहा कि वे राष्ट्रपति होंगे मगर किसी से असहमत होने के कारण सा नहीं कर सकते हैं. अदालत ने असंवैधानिक माना था. वहां के सरकारी वकील ने जब दलील दी कि राष्ट्रपति का ट्विटर अकाउंट उनका अपना है, निजी है और राष्ट्रपति बनने से बहुत पहले का है. मगर अदालत ने दलील नहीं मानी कहा कि राष्ट्रपति का ब्लॉक करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है. राष्ट्रपति ने सात लोगों को ब्लॉक कर दिया था. लेकिन भारत में अभी तक इसे लेकर राय नहीं बनी है कि क्या मंत्री, सांसद या विधायक जो सार्वजनिक पद पर हैं, अपने ट्विटर पर किसी को ब्लॉक कर सकते हैं.

एससएसी सीजीएल 2017 की परीक्षा में ही एक और मामला है. कार्यालय रक्षा लेखा महानियंत्रक के 3082 पद जो पहले स्वीकृत थे अब रिजेक्ट कर दिए गए हैं. इन छात्रों का कहना है कि इससे उनकी संभावना कम हो गई है. इन 3082 पदों के लिए भी रिज़ल्ट आना चाहिए. सरकारी परीक्षाओं का हाल बहुत बुरा है. कई महीनों से लगातार कवरेज के बाद भी परीक्षाओं की प्रक्रिया में कोई तेज़ी नहीं आई है. मध्य प्रदेश की शिक्षक परीक्षा के वर्ग 2 का रिज़ल्ट अभी तक नहीं आया है. 2015 में झारखंड में Assistant Engineer (Civil) 2015 की परीक्षा का विज्ञापन निकला था. अक्तूबर 2015 तक परीक्षा का फार्म भरना था. चार साल तक परीक्षा ही नहीं हुई. अब जाकर तारीख निकली है कि नवंबर के महीने में इसकी परीक्षा होगी. क्या वाकई सरकार को इंजीनियर की ज़रूरत थी या ऐसे ही भरमाने के लिए विज्ञापन निकाल दिया गया था. अब छात्र स्थानीय मीडिया के कवरेज़ से थक चुके हैं. वे नेशनल मीडिया की तरफ देखते हैं तो कभी जगह मिलती है और कहीं नहीं मिलती है. इसलिए उन्होंने ट्विटर का ट्रेंड पकड़ा है. रेलवे के ग्रुप डी के छात्र भी हर दिन ट्वीट करते रहते हैं कि फोटो के कारण उनका फार्म रिजेक्ट करना ठीक नहीं है, उन्हें भी मौका मिलना चाहिए ताकि वे परीक्षा दे सकें.

हवाई जहाज़ के पायलट की ट्रेनिंग सिमुलेटर पर होती है. एक आभासी दुनिया बनाई जाती है जहां पायलट वैसा ही अनुभव करता है जैसा वास्तविक आकाश में. फिर भी असली ट्रेनिंग तो आकाश में होती है जब वह हर चीज़ सामने से देखता है. क्या ट्विटर पर ट्रेंड कराना भी एक किस्म का सिमुलटर का अनुभव है, जहां आपको लगता है कि आप लोकतंत्र में भागीदारी कर रहे हैं लेकिन वहां किसी का ध्यान ही नहीं जाता है. कई ट्रेंड के बाद हमने देखा है कि लोग निराश हुए हैं वैसे ही जैसे असली सड़क पर होते हैं. फिर भी जो असर भागीदारी से होता है, सड़क पर उतरने से होता है, वो ट्रेंड कराने के सिमुलेशन से नहीं होता है. लोकतंत्र में मैदान और सड़क का कोई मुकाबला नहीं है. फिर भी आप क्या करेंगे जब मीडिया आपको तवज्जो न दे. कई बार लोग मीडिया में कवरेज का विकल्प ढूंढने के लिए भी ट्विटर और फेसबुक पर ट्रेंड कराने लगते हैं. क्योंकि वास्तविक रूप से प्रदर्शन करने की जगह राजधानियों और ज़िलों में गायब कर दी जा रही है. प्रदर्शन करने की शर्तें मुश्किल बना दी गई हैं.

अच्छा होता कि सीजीएल 2017 और 69000 शिक्षकों की परीक्षा देने वाले छात्रों को यह सब नहीं करना होता. परीक्षा की पारदर्शिता ऐसी होती कि कोई शक शुबहा नहीं होता. ये बात नॉन रेजिडेंट इंडियन को भी बताई जानी चाहिए कि भारत में अभी भी परीक्षाओं के रिज़ल्ट आने में दो से छह साल लग जाते हैं. अगरी बार जब ट्रेंड कराएं तो दुनिया भर में रहने वाले भारतीयों को भी टैग करें ताकि उन्हें सच्चाई पता चले.

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में एक डेमोक्रेटिक सूचकांक होना चाहिए था जहां हर दिन होने वाले प्रदर्शनों, उनकी मांग, लाठी चार्ज से लेकर कार्रवाई का रिकार्ड रखा जाता है जिससे एक जगह से पता चल जाता कि आज देश भर में कितने प्रदर्शन हुए और उनके साथ क्या हुआ. सिस्टम में लोकतांत्रिकता की कितनी कमी है लेकिन क्या समाज में है. आखिर समाज के भीतर हिंसा की वो कौन सी परत है जो किसी को जाति के कारण जला देती है. फिर भी हम दुनिया में खुद को उदार होने का सर्टिफिकेट भी बांट आते हैं. यूपी के हरदोई ज़िले में एक युवक को इसलिए जला दिया गया क्योंकि वह कथित रूप से ऊंची जाति की लड़की से प्यार करता था. क्या इसलिए किसी को जलाया जा सकता है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com