यह ख़बर 19 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

मनीष कुमार की कलम से : क्या जीतन राम मांझी हैं बिहार में दलितों के नए नेता?

जीतन राम मांझी की फाइल फोटो

पटना:

पिछले पांच दिनों में बिहार में दलितों से जुड़ी दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं। एक बिहार कैबिनेट का वह फैसला है, जिसमें हर दलित और अनुसूचित जनजाति के लोगों को शहरी इलाकों में पांच डेसिमल जमीन देने का निर्णय है। इसके लिए शहर में 10 वर्ष से अधिक रहना जरूरी है। इसके साथ ही एक बात साफ करनी होगी कि आपके नाम से ग्रामीण इलाके में न कोई जमीन और न इंदिरा आवास हो।

मतलब आपको निर्धन, भूमिहीन शहरी दलित होना चाहिए और इस स्कीम का लाभ उठाकर आप भी शहर में जमीन के मालिक बन सकते हैं।

अभी तक बिहार सरकार ग्रामीण इलाकों में महादलित समुदाय के लोगों को ग्रामीण इलाके में या तो तीन डेसिमल जमीन या उसे खरीदने के लिए निर्धारित राशि देती रही है। यह स्कीम नीतीश कुमार के कार्यकाल में शुरू हुई, लेकिन मांझी की नई स्कीम का लाभ पासवान जाति के लोगों को भी मिलेगा।

दूसरी महत्वपूर्ण घटना है, रामविलास पासवान के लोक जनशक्ति पार्टी के वैशाली से सांसद रामा सिंह का अपने क्षेत्र में धर्म वापसी के मुद्दे पर एक कार्यक्रम में शामिल होना है। इस कार्यक्रम में गोरखपुर से बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ मौजूद थे। रामविलास पासवान ने घर वापसी के मुद्दे पर कहा है कि जबरन कुछ भी नहीं होना चाहिए और बीजेपी को विकास के मुद्दे पर केंद्रित रहना चाहिए। ये वही पासवान हैं, जो धर्म परिवर्तन को एक सच मानते थे और बीजेपी के साथ इस मुद्दे पर कई बार दो-दो हाथ करते रहे हैं।

1998 में लोकसभा में विश्वासमत पर वोटिंग के दौरान उनका अब भी जिक्र होता है, जब उन्होंने बीजेपी के नेताओं को यह चुनौती दी थी कि आखिर इस देश में धर्मपरिवर्तन करने के लिए लोग क्यों मजबूर हुए। उन्होंने इसके लिए हिन्दु वर्ण व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया था और आज वही पासवान अपनी गद्दी के चक्कर में बीजेपी के सामने घुटने टेके हुए हैं और उनकी पार्टी के सांसद घर वापसी कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं।

बहरहाल, मांझी का दावा है कि उन्होंने जो किया वह देश के किसी भी राज्य की कोई भी सरकार नहीं कर पाई। इस मुद्दे पर बिहार की अफसरशाही ने अपना विरोध जाहिर किया था, लेकिन मांझी ने यह तर्क देकर उन्हें चुप करा दिया कि अगर आप दलितों, आदिवासियों को रहने के लिए छत नहीं देंगे तो शहरों में नक्सली और डकैती जैसी घटनाओं को रोक पाने का इरादा पूरा नहीं किया जा सकता।

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इससे भी बड़ी बात है कि मांझी के एक फैसले से डॉक्टर अंबेडकर का दलित समुदायों को गांव से निकलकर शहरों में कुछ करने के उस नारे को अमली जामा पहनाने का प्रयास हुआ है, जिसके बारे में डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि दलित ग्रामीण इलाकों में जब तक रहेंगे, उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ेगा, लेकिन शहर में वे अपनी एक नई पहचान बना सकते हैं और ऐसे में मांझी के इस कदम को अगर उन्होंने गंभीरता से लागू कर दिया तो आने वाले दिनों में न केवल बिहार बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी दलित राजनीति में महत्वपूर्ण नाम जीतन राम मांझी का हो सकता है।