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This Article is From Apr 27, 2019

क्या अक्षय कुमार का प्रधानमंत्री मोदी का इंटरव्यू पेड न्यूज़ नहीं है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 02, 2019 16:26 pm IST
    • Published On अप्रैल 27, 2019 19:55 pm IST
    • Last Updated On मई 02, 2019 16:26 pm IST

अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लिया. लेकिन इंटरव्यू के लिए कैमरा किसका था? तकनीकि सहयोग किसका था? क्या इंटरव्यू के अंत में किसी प्रोडक्शन कंपनी का क्रेडिट रोल आपने देखा? इन सवालों पर बात नहीं हो रही है. क्योंकि इन पर बात होगी जो जवाबदेही तय होगी. सोचिए ग़ैर राजनीति के नाम पर आप दर्शकों के भरोसे के साथ इतनी बड़ी राजनीति हो गई.

क्विंट वेबसाइट ने सूत्रों के आधार पर लिखा है कि अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी के गैर- राजनीतिक इंटरव्यू की तैयारी ज़ी न्यूज़ की संपादीयक टीम ने कराई. ज़ी की टीम ने शूट किया और पोस्ट प्रोडक्शन किया यानी एडिटिंग की.

जब सामग्री तैयार हो गई तो न्यूज़ एजेंसी ANI ने जारी कर दिया जिसे सारे चैनलों पर दिखाया गया. क्विंट की स्टोरी में ज़ी और ANI का पक्ष नहीं है.

यह सीधा सीधा पोलिटिकल प्रोपेगैंडा है. ज़ी न्यूज़ के तैयार कंटेंट को ANI से जारी करवा कर सारे चैनलों पर चलवाया गया. क्या सारे चैनलों को नहीं बताना था कि यह कटेंट किसका है? क्या एएनआई का है जो इसे जारी कर रहा है?

अगर आप मीडिया के इतिहास से वाक़िफ़ हैं तो इन बातों से सतर्क हो जाना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी के घोर समर्थक हैं. तब तो आपको और भी सतर्क होना चाहिए. क्या आप मोदी का सपोर्ट इसलिए करते हैं कि मीडिया आपकी आंखों में धूल झोंके. सपोर्ट आप करते हैं, मीडिया क्यों खेल करता है.

इस देश में दूरदर्शन की काबिल टीम है. उसने क्यों नहीं शूट किया और एडिट किया? प्रधानमंत्री को सरकारी संस्थानों में भरोसा नहीं है? वैसे एक पेशेवर के नाते बताना चाहूंगा कि अक्षय कुमार का बाल नरेंद्र का वीडियो वर्जन बहुत ही ख़राब शूट हुआ था. प्रधानमंत्री जहां बैठे हैं, उनके पीछे शीशे में टेक्निकल स्टाफ की छाया आ रही थी. बीच में कभी किसी का सर तो कभी किसी का हाथ आ जाता था. इससे अच्छा तो दूरदर्शन के कैमरामैन शूट कर देते.

कोई पूछने वाला नहीं है. विपक्ष में नैतिक बल नहीं है. डरपोक और कामचोर विपक्ष है. इस इंटरव्यू से संबंधित मूल सवाल उठने चाहिए थे.

क्या वाकई इसे ज़ी न्यूज़ की टीम ने शूट किया और इसकी एडिटिंग की? तो फिर यह ज़ी का प्रोग्राम हुआ. फिर यह बात क्यों नहीं ज़ाहिर की गई. क्या अंधेरे में रखकर सारे चैनलों को ज़ी न्यूज़ के बनाए कटेंट को दिखाने के लिए मजबूर किया गया? क्या अब आगे भी सबको ज़ी न्यूज़ ही कटेंट सप्लाई करेगा?

क्या यह इंटरव्यू पेड न्यूज़ के दायरे में नहीं आता है? ज़ी न्यूज़ के कई बिजनेस हैं. वह क्यों सारे चैनलों के लिए फ्री में कटेंट तैयार करेगा? क्या चुनाव बाद इसका लाभ मिलेगा?

अक्षय कुमार अपनी टीम लेकर आते तो कोई बात नहीं थी. क्विंट की साइट पर ज़ी न्यूज़ की टीम की तस्वीर है. एक प्राइवेट चैनल के साथ मिलकर शूटिंग प्लान किया गया और एक दूसरी एजेंसी से सारे चैनलों के लिए जारी किया गया मेरे हिसाब से यह अपराध है. नैतिक अपराध है.

भारत के प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि यह इंटरव्यू किसका था. ज़ी न्यूज़ का या एएनआई का. क्या सारे चैनलों ने एएनआई से पूछा कि इसे किसने शूट किया है? क्या ज़ी न्यूज़ प्रोपेगैंडा शूट कर, एडिट कर, सारे चैनलों को बांटेगा और सारे चैनल इसे चलाएंगे? क्या चैनलों में इतने भोले लोग काम करते हैं?

चुनाव आयोग स्वायत्त और निर्भिक संस्था की तरह काम नहीं कर रहा है. इस आयोग से उम्मीद बेकार है. वर्ना पेड न्यूज़ का यह मामला बनता है. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और संपादकों का समूह चुप है. निंदा ही करता है. ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन का संगठन (NBSA) है. उससे शिकायत कीजिए. वहां भी कुछ नहीं होगा.

भारत की बड़ी समाचार एजेंसी एएनआई (ANI) का थॉम्पसन रॉयटर से करार है. सेना के अलग-अलग अंगों से रिटायर हुए अफसरों ने रॉयटर को पत्र लिखा है. बताया है कि उनकी भारतीय सहयोगी ANI ने सेना के राजनीतिकरण के खिलाफ़ बोलने की उनकी मंशा को बदनाम करने का प्रयास किया है. उन्होंने लिखा है कि हम मानते हैं कि ANI ने भारत की सत्ताधारी पार्टी की तरफ से उनके बयानों को गलत संदर्भ में पेश किया है. ANI ने इन आरोपों को आधारहीन बताया है.

12 अप्रैल को 150 से अधिक सेना के अफसरों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा था. कहा था कि लोकसभा के चुनाव में सेना का राजनीतिकरण हो रहा है. उस दिन ANI ने कहा कि इस पर हस्ताक्षर करने वाले दो पूर्व अफसर पूर्व सेना ध्यक्ष जनरल सुनीथ फ्रांसिस रोड्रिग्स और पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एनसी सूरी ने दस्तख़त से इंकार किया है और कहा है कि उनकी सहमति नहीं ली गई. यह ख़बर हर छपी है और दिखाई गई.

थाम्पसन से पूछा गया है कि वह अपने साझीदार के संपादकीय आचरणों का मूल्यांकन कैसे करेंगे. स्क्रोल पर इस न्यूज़ को विस्तार से पढ़ सकते हैं.

मीडिया में जो हो रहा है उसे आप भाजपा समर्थक या विरोधी के नाते खारिज मत कीजिए. मीडिया मोदी को चुनाव जीतवाने में ही मदद नहीं कर रहा बल्कि चुनाव के बाद आपकी हार का इंतज़ाम कर रहा है. मीडिया और अपने राजनीतिक समर्थन को अलग रखिए. आपकी आंखों के सामने जो बर्बाद हो रहा है, उस चमन को आखिरी बार ठीक से देख लो यारों. यह इतना भी मुश्किल सवाल नहीं कि आप पूछ न सकें. आपका यह डर भारत की जनता की हार है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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