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This Article is From Jan 26, 2015

आर के लक्ष्मण की याद में...

Ravish Kumar, Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    जनवरी 26, 2015 20:16 pm IST
    • Published On जनवरी 26, 2015 20:11 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 26, 2015 20:16 pm IST

कभी किसी के कमरे के बाहर से तो कभी किसी की बैठक में पीछे से झांकता वो आम आदमी कार्टून के छोटे से बक्से में भी कितना बड़ा था। जिसे रोज़ आर के लक्ष्मण हमारे लिए खींचा करते थे। कभी अपनी मुस्कान से तो कभी बेपरवाही से ऐसे देखना कि जैसे किसी ने देखा ही नहीं तो कभी ऐसे देखना कि सब देख लिया है। आर के लक्ष्मण अब हमारे बीच नहीं हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया उनके बिना कोना बनकर रह जाएगा। बिना लक्ष्मण के कोने से वो अखबार कैसे पूरा लगेगा सोच कर आंखें भर आती हैं।

पुणे के एक अस्पताल से लक्ष्मण के गुज़रने की खबर आई है। कई दिनों से बीमार चल रहे थे। आर के लक्ष्मण एक अंग्रेज़ी अखबार के पन्ने पर हर दिन हिन्दी का आम आदमी बन कर आते थे। आप इसे गैर-अंग्रेज़ी आम आदमी कह सकते हैं जो मराठी तो बोलता है, पंजाबी तो बोलता है मगर अंग्रेज़ी नहीं जानता। सत्ता उसके लिए उस अंग्रेज़ी की तरह है जो बोलते हुए यह समझती है कि कोई नहीं समझ रहा मगर लक्ष्मण का आम आदमी सब सुन कर सब समझ कर वहां से चल देता था।

लक्ष्मण के आम आदमी के देखने पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है। बल्कि लिखी ही गई होगी। सत्ता को बाहर से सामान्य और तटस्थ भाव से देखना लक्ष्मण ने सिखाया। इन दिनों हम सत्ता को सत्ता के जैसा होकर देखने लगे हैं। लक्ष्मण का आम आदमी सत्ता से दूरी बनाए रखने का संकेत था। इससे दूरी बरतनी चाहिए। इसके हर काम को एक आदमी की निगाह से देखा जाना चाहिए। इसलिए लक्ष्मण का आम आदमी झांक कर देखता था। झांकना एक ऐसी क्रिया है जिसके पता होने का अहसास उस जगह या व्यक्ति को नहीं होता जहां कोई निगाह बाहर से भीतर से आ रही होती है।

किसी से बच कर, बचाकर सबकुछ देख लेना ही झांकना है। लक्ष्मण का आम आदमी इस हैरत से झांकता था जैसे जो नहीं देखनी चाहिए थी वो भी उसने देख लिया है। जनता ने सब जान लिया है, बस सत्तानशीनों को ही खबर नहीं है। लक्ष्मण ने हमें इस लोकतंत्र में झांकना सिखाया है।

आर के लक्ष्मण हर दिन सत्ता के लिए एक नई लक्ष्मण रेखा खींचते थे। वे याद दिलाते थे कि आपने जो वादा किया है उसकी लक्ष्मण रेखा कहां खत्म होती है। कहीं आप उसके पार तो नहीं जा रहे हैं। एक ऐसी खामोश आवाज़ जो बोलने वाले नेताओं से भी ज्यादा बोलती थी। जो उनकी खामोश पलों की साज़िशों में भी बोल पड़ती थी। आम आदमी को राम या देवता तो सब कहते थे मगर अपने राम की ज़िंदगीभर किसी ने खिदमत की तो सिर्फ लक्ष्मण ने।

लक्ष्मण की वफ़ादारी और ज़िम्मेदारी सिर्फ वो आम आदमी ही रहा जो उनके राम थे। आपके कार्टून सिर्फ मील के पत्थर नहीं हैं। बल्कि सत्ता की ज़मीर के वो पत्थर हैं जिनसे टकराये बिना कोई नहीं बच सकता। लक्ष्मण साहब आपके कार्टून हमारे जज़्बात हैं। हम याद रखेंगे आपको।

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