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This Article is From Aug 10, 2016

बिहार में शराबबंदी के मसले पर नजरिया साफ करना चाहता हूं : सीएम नीतीश कुमार

Nitish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 10, 2016 15:16 pm IST
    • Published On अगस्त 10, 2016 15:15 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 10, 2016 15:16 pm IST
मेरा सार्वजनिक रिकॉर्ड पारदर्शी रहा है. जब किसी मसले पर मैं लोगों को वचन देता हूं तो उसको पूरा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्‍ठ देता हूं. मैंने पिछले साल एक सार्वजनिक कार्यक्रम में घोषणा करते हुए कहा था कि यदि हम दोबारा सत्‍ता में आते हैं तो हम शराब पर पाबंदी लागू करेंगे.

इसको अमलीजामा पहनाना एक जटिल कार्य था. हालांकि शासन में कोई भी अन्‍य कार्य आसान नहीं होता. लेकिन शराब पर पाबंदी का मसला इस मामले में अलग था क्‍योंकि अतीत में कोई भी इस पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने में कामयाब नहीं हो सका. इस कारण किसी अन्‍य की तुलना में शराब लॉबी इस एक तथ्‍य से सर्वाधिक प्रसन्‍न होती रही है. मैं पब्लिक पॉलिसी के इस ट्रैक रिकॉर्ड को बदलने के लिए कटिबद्ध हूं.

राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की अधिकारवादी शख्सियत के रूप में किसी भी सूरत में कल्‍पना नहीं की जा सकती. इसके बावजूद शराब पर पाबंदी के मसले को उन्‍होंने  अपना प्राथमिक एजेंडा बनाया. उन्‍होंने 1931 में 'यंग इंडिया' में लिखा, ''यदि मुझे एक घंटे के लिए पूरे भारत का तानाशाह बना दिया जाए तो बिना मुआवजे के सभी शराब की दुकानों पर बंद करना मेरा सबसे पहला काम होगा.'' इस मसले पर उनके अन्‍य उद्धरण भी कमोबेश ऐसे ही तीखे हैं-मसलन, '' जो देश शराब के नशे का आदी है, उसका सितारा डूब गया है. इतिहास गवाह है कि इस आदत की वजह से बड़े-बड़े साम्राज्‍य नष्‍ट हो गए हैं.''    

संविधान में वर्णित राज्‍य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों में भी शराब पर पाबंदी के संबंध में राज्‍य को उद्यम करने को कहा गया है. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, ''मादक पदार्थों के बिजनेस या व्‍यापार का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. राज्‍य को अपनी नियामक शक्तियों के तहत मादक पदार्थों के किसी भी रूप के निर्माण, भंडारण, आयात, निर्यात, बिक्री और कब्‍जे पर पाबंदी लगाने का अधिकार है.'' इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है, ''नियंत्रण की शक्ति समाज के आत्‍म-रक्षा के अधिकार को बताती है और लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य, कल्‍याण और नैतिकता के लिए राज्‍य के अधिकार में यह निहित है.''  

जब पिछले साल मैंने शराब पर पाबंदी की घोषणा का विचार व्‍यक्‍त किया था तो यह एक प्रेरक उद्घोषणा थी. लेकिन उसके बाद आचार-विचार और अभ्‍यास के स्‍तर पर लंबे विमर्श, सघन समीक्षा और कुशल योजना, जन-जागरुकता अभियान और युक्तिसंगत कानून के द्वारा ही पूरे बिहार में शराब पर पाबंदी का फैसला किया गया. जो लागू किया गया वह कायापलट करने वाली है. इसे अमल में लाएंगे तभी यकीन होगा.

नुक्‍कड़ नाटकों, स्‍लोगन और पोस्‍टरों के माध्‍यम की शक्‍ल में व्‍यापक जन-जागरुकता कार्यक्रम शुरू किया गया. सरकारी स्‍कूलों में पढ़ने वाले बच्‍चों के एक करोड़ 19 लाख से अधिक अभिभावकों ने यह संकल्‍प लेते हुए हस्‍ताक्षर किए कि वे अल्‍कोहल का सेवन नहीं करेंगे और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करेंगे. प्रत्‍येक पंचायत में एक ''ग्राम सेवक दल'' घर-घर जाकर लोगों के समक्ष शराब पर पाबंदी के संबंध की अपील पढ़कर सुना रहे हैं और इसके आगे जागरुकता अभियान के प्रसार के लिए सहभागिता का आग्रह कर रहे हैं. पांच लाख स्‍वयं-सेवी समूहों और 20 हजार गांव संगठनों की सहभागिता से ये ग्राम संवाद कार्यक्रम 48 हजार से भी ज्‍यादा घरों में आयोजित किए गए हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं, टोला सेवकों, शैक्षणिक वालंटियरों, स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों और अनेक जन समूहों ने सार्वजनिक स्‍थलों पर शराब पर पाबंदी के समर्थन में स्‍लोगन लिखे हैं. इन स्‍लोगनों को नौ लाख जगहों पर देखा जा सकता है. जिला स्‍तर पर स्‍थानीय कलाकारों के सहयोग से इस आशय से संबंधित सांस्‍कृतिक कार्यक्रम और नुक्‍कड़ नाटक आयोजित किए गए हैं. गीतों, नाटकों और सामुदायिक परिचर्चाओं के माध्‍यम से राज्‍य के 25 हजार से भी अधिक स्‍थानों को कवर किया गया है.   

महिला स्‍वयं-सेवी समूह जीविका के आमंत्रण पर मैंने उनकी सभी नौ डिवीजनल हेडक्‍वार्टर में आयोजित प्रत्‍येक सभाओं में शिरकत की है. कुल मिलाकर तकरीबन एक लाख स्‍वयं-सेवी समूह सदस्‍यों ने इन कार्यक्रमों में शिरकत की है. उनके निजी अनुभव के प्रसंगों और प्रयासों ने प्रशासनिक निर्णय के नए आयाम को उद्घाटित किया है. इसके माध्‍यम से बिहार में गहरी पैठ जमा रहे सामाजिक रुपांतरण के अंकुरित होते हुए बीजों को देखा जा सकता है जैसा कि इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला. इससे मैं एक बार फिर आश्‍वस्‍त हुआ कि किसी भी कीमत पर अब इससे पीछे लौटने की कोई वजह नहीं है. सामाजिक-आर्थिक लाभों और नतीजों को देखने के बाद मैं बिहार में शराब पर पूर्ण पाबंदी के क्रियान्‍वयन को पूरी तरह से अमलीजामा पहनाने को लेकर पहले से अधिक कटिबद्ध है.

हालांकि इससे संबंधित निहित स्‍वार्थों वाली शक्तियां भी ताकतवर हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिन राज्‍यों में शराब पर पाबंदी लागू हैं, वास्‍तव में वहां पर प्रतिबंध प्रतीकात्‍मक अथवा आंशिक हैं. अनगिनत आलेखों में पहले ही यह कहा जा रहा है कि बिहार में शराब पर पाबंदी का कार्यक्रम चल नहीं पाएगा. पिछले कुछ महीनों में इससे संबंधित जो एक-एक शब्‍द लिखे गए हैं, उनके बारे में मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि अनगिनत ऐसे परिवार-महिलाएं एवं बच्‍चे हैं जो बिहार और देश के बाकी हिस्‍सों में इस पर प्रतिबंध की बात पर बेहद प्रसन्‍न होते हैं. मैंने खुलकर उत्‍तर प्रदेश और झारखंड के नेतृत्‍व से शराबबंदी लागू करने को कहा है. हालांकि इस बात से लोग तो प्रसन्‍न होते हैं लेकिन नेता दूसरी तरफ देखने लगते हैं. भले ही वे शक्तिशाली हों लेकिन वे लोगों की इच्‍छाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते. मैं उन लोगों की भावनाओं के अनुरूप लगातार आवाज उठाता रहूंगा.  

बिहार सामाजिक उपागमों के माध्‍यम से इस प्रतिबंध को लागू करने पर बल दे रहा है. सामाजिक रूप से मैंने लगातार स्‍वयं-सेवी समूहों और जन-प्रतिनिधियों से 'सामाजिक नेतृत्‍व' प्रदर्शित करने और राज्‍य एवं समाज के हाथों को मजबूत करने के लिए कहा है.

बिहार प्रतिषेध एवं एक्‍साइज बिल, 2016 इस दिशा में निर्णायक कदम है. सरल शब्‍दों में यह कानून का उल्‍लंघन करने वाले को अपनी गतिविधियों के लिए सीधे तौर पर जिम्‍मेदार ठहराता है. यह बिल कहता है, ''यदि किसी के भी घर में शराब पी जाती है या बरामद होती है तो जब तक यह साबित नहीं हो जाएगा कि यह अपराध किसी अन्‍य ने किया है, तब तक यह माना जाएगा कि इस अपराध के लिए घर के वयस्‍क सदस्‍य (पति-पत्‍नी और आश्रित बच्‍चों का परिवार. इसमें रिश्‍तेदार शामिल नहीं) को इस बाबत जानकारी थी.'' इसके साथ ही यह बिल घर के वयस्‍क पुरुष की तुलना में महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है क्‍योंकि कई मामलों में वे घर के अन्‍य सदस्‍य पर ठीकरा फोड़कर बचने की जुगत के इच्‍छुक हो सकते हैं. जो लोग इस प्रावधान की आलोचना कर रहे हैं तो उनसे यह आग्रह है कि कृपया वे यह बताएं कि यदि किसी के घर से शराब की बोतलें बरामद होती हैं और परिवार का कोई भी सदस्‍य इसकी जिम्‍मेदारी नहीं लेता तो किसे पकड़ा जाना चाहिए. उन्‍हें हमारा इस बात के लिए भी मार्गदर्शन करना चाहिए कि यदि घर पत्‍नी के नाम है तो ऐसी सूरत में किसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए. ऐसे में या तो पुलिस को वहां से खाली हाथ लौट आना चाहिए या यह अच्‍छी तरह जानते हुए कि लगभग सभी मामलों में पति ही पीते हैं, ऐसे में कानून की धज्जियां उड़ाते हुए पत्‍नी को गिरफ्तार कर लेना चाहिए. इसके अलावा जो आलोचना कर रहे हैं क्‍या वे यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि यदि कानून का वास्‍तव में उल्‍लंघन करने वाला वयस्‍क पुरुष सदस्‍य पकड़े जाने की स्थिति में अमानवीय और क्रूरता का परिचय देते हुए अपनी पत्‍नी और वयस्‍क बच्‍चों पर भी आरोप मढ़ देगा.  

हालांकि सच्‍चाई यह है कि ये प्रावधान पाबंदी लागू करने के प्रशासनिक अनुभव की प्रतिक्रिया के रूप में उपजे हैं. यदि इन समस्‍याओं का निराकरण नहीं किया गया तो यह एक ऐसे लचर लीकेज तंत्र को उत्‍पन्‍न करेंगे जो कच्‍ची शराब पीने से होने वाली त्रासदियों के लिए जिम्‍मेदार होंगे. इन संदर्भों में हम सीधे तौर पर जवाबदेही सुनिश्चित कर इस अवस्‍था को उपजने से ही रोकना चाहते हैं. हमने उन लोगों की सुरक्षा का भी बंदोबस्‍त किया है जिनका इसके बेजा इस्‍तेमाल से शोषण किया जा सकता है. इसके तहत बिल में यह प्रावधान किया गया है कि यदि सरकारी मशीनरी में से कोई इसका दुरुपयोग करता है तो उसके खिलाफ गंभीर दंड की व्‍यवस्‍था की गई है.

जब हमने एक अप्रैल, 2016 को देसी शराब पर पाबंदी लागू करते हुए कहा कि चरणबद्ध तरीके से पूर्ण शराबबंदी को क्रियान्वित किया जाएगा तो विपक्ष ने पूर्ण प्रतिबंध लगाने की वकालत करते हुए अगले चरण की तारीखें बताने को कहा. जब लोगों विशेष रूप से महिलाओं ने विदेशी शराब की दुकानों को खोले जाने की मुखालफत करते हुए प्रदर्शन करना शुरू किया तो इस तरह की खबरों के बाद हमने तत्‍काल रूप से समझा कि अब पूर्ण पाबंदी लागू करने का माहौल और मूड बन गया है. लिहाजा पांच अप्रैल, 2016 को शराब पर पूर्ण पाबंदी लागू कर दी गई. अब विपक्ष के वही लोग कह रहे हैं कि इसको बाद में लागू किया जाना चाहिए था और हमने जल्‍दबाजी में इसे लागू कर दिया.

इस नए बिल को तैयार करते हुए वक्‍त इसके कई प्रावधानों को इसी तरह के कानूनों बांबे प्रतिषेध एक्‍ट, गुजरात संशोधन, दिल्‍ली एक्‍साइज एक्‍ट, कर्नाटक एक्‍साइज एक्‍ट, भारत सरकार द्वारा पेश किए गए मॉडल एक्‍साइज एक्‍ट, मध्‍य प्रदेश प्रतिषेध बिल (ड्राफ्ट) और बिहार एक्‍साइज (संशोधन) एक्‍ट, 2016 से अधिकांश प्रावधानों को लिया गया है. जिनको कि बिहार राज्‍य असेंबली के दोनों सदनों ने सर्वसम्‍मति से पारित किया है. विस्‍तार से इनका अध्‍ययन करने के बाद इसकी खामियों की तरफ इशारा किया जा सकता है. आप बिना विकल्‍प बताए बस केवल कानून की आलोचना नहीं कर सकते. इसके लिए सदन की गैलरी में प्रदर्शन से भ ज्‍यादा कुछ करना होगा.    

इसके साथ ही जैसी की अपेक्षा थी कि निहित स्‍वार्थ वाली शक्तियां इस एक्‍ट के बारे में लोगों को दिग्‍भ्रमित करने का बड़े पैमाने पर अभियान चला रही हैं. ऐसा तब हो रहा है जब बिल के सभी दंडीय प्रावधान वहीं हैं जो इस साल बजट सत्र के दौरान सर्वसम्‍मति से दोनों सदनों में पारित हुए थे. इस सामाजिक पहल का राजनीतिकरण हो रहा है. कुछ लोग एक्‍ट के प्रावधानों का समग्र रूप से अध्‍ययन किए बिना इसके चुनिंदा प्रावधानों की आलोचना कर रहे हैं. वे शब्‍दों पर जोर देकर और इसमें निहित भावना की अनदेखी कर व्‍यापक फलक को नजरअंदाज कर रहे हैं. उनके लिए मैं यह कहना चाहूंगा, ''आप इसको एक साथ सही और गलत नहीं ठहरा सकते.'' यदि किसी ने बिहार में शराबबंदी के मसले पर गंभीरता के साथ निश्‍चय कर लिया है तो फिर 'किंतु' और 'परंतु' की कोई जगह नहीं रह जाती. इस संदर्भ में सख्‍त और बेहतर कानून के क्रियान्‍वयन और जागरूक लोगों के अभियान के सम्मिलन से आगे बढ़ने का रास्‍ता ही श्रेयस्‍कर है.   

ऐसे में मैं तथ्‍यों को सीधे तौर पर रखना चाहता हूं. जो लोग बिहार में इस कानून का उल्‍लंघन करेंगे तो जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए युक्तिसंगत उपाय अपनाए जाएंगे. इसके साथ ही मैं आपको इस बात के लिए भी आश्‍वस्‍त करना चाहता हूं कि कानून का निष्‍पक्ष तरीके से क्रियान्‍वयन किया जाएगा. इस संदर्भ में मैं बिहार में इस अभियान को सफल बनाने और अन्‍य राज्‍यों में ले जाने के लिए सर्वश्रेष्‍ठ विचारों को शामिल करने को तैयार हूं. शुरुआत में तो जब मार्च में यह बिल सदन में आया था तो बीजेपी ने भी कानून के संशोधनों का समर्थन किया था लेकिन उसके बाद वे इस मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपना रहे हैं.

कुछ लोग इसे मेरी सनक के रूप में देख रहे हैं और कह रहे हैं कि मेरे पास कोई और एजेंडा नहीं है. यह एक पक्षपातपूर्ण और भ्रामक विचार है. इस संबंध में अपनी बात रखने के लिए मैं कुछ तथ्‍यों को रख रहा हूं. पिछले नवंबर में सत्‍ता में आने के बाद से सरकार लगातार अपने विकासमूलक एजेंडे पर काम कर रही है. दिसंबर माह में 2015-20 के लिए सुशासन कार्यक्रम की विस्‍तृत संकल्‍पना तैयार कर कैबिनेट ने मंजूरी दी है. इस कड़ी में विकसित बिहार के सपने के साथ सात संकल्‍पों के प्रस्‍तावों के साथ जनवरी, 2016 में बिहार विकास मिशन का खाका खींचा गया है. इस दौरान सभी विभागों ने समयबद्ध तरीके से इन सात संकल्‍पों के क्रियान्‍वयन के लिए स्‍कीमों और कार्यक्रमों के डिजाइन को बेहद मेहनत से तैयार किया है. इनमें से अधिकांश स्‍कीमों पर राज्‍य सरकार की सहमति के बाद इन पर अमल शुरू हो चुका है. हमने सात संकल्‍पों में से एक का-राज्‍य सरकार की सभी नियुक्तियों में 35 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण देकर का क्रियान्‍वयन भी कर दिया है.    

बिहार के लोगों को सशक्‍त बनाने की नीति को जारी रखते हुए प्रशासनिक सुधारों की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में जन शिकायत निवारण एक्‍ट, 2015 संपूर्ण क्रांति दिवस के दिन लागू किया गया है. इसके साथ ही पांच जून को विश्‍व पर्यावरण दिवस के मौके पर डिजास्‍टर रिस्‍क रिडक्‍शन रोड मैप (2015-30) का ड्राफ्ट तैयार करने वाला देश का पहला राज्‍य हो गया है. युवाओं के लिए समेकित एक्‍शन प्‍लान की शुरुआत का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है. इसमें छात्रों के लिए क्रेडिट कार्ड, स्‍वयं सहायता एलाउंस और कौशल विकास जैसी स्‍कीमों को शामिल करते हुए इसे दो अक्‍टूबर से शुरू करने की योजना है. इसके लिए आधारभूत ढांचे, श्रम-शक्ति और तंत्र विकसित करने के लिहाज से सघन तैयारियां की जा रही है. सत्‍ता में आने के बाद के छह-आठ महीने की छोटी अवधि में लगभग सभी बड़े नीतिगत मसलों को सुलझा लिया गया है और सात संकल्‍पों को अमलीजामा पहनाने के लिए शुरुआत की जा चुकी है. यदि कोई इसको नजरअंदाज करता है तो यह खुद ही उसके पूर्वाग्रह से ग्रसित एजेंडे को दर्शाता है.

इसके साथ ही लेकिन मैं बिहार में सभी को यह आश्‍वस्‍त करना चाहता हूं कि कोई भी आधे-अधूरे कदम नहीं उठाए जाएंगे. मैं अपने किए वादों पर अमल करुंगा. मेरी सरकार उन लाखों लोगों की आकांक्षाओं और सपनों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है जिन्‍होंने कमजोर विकास की धारा को बदलने और आर्थिक संपन्‍नता, समृद्धि और भाई-चारे की दिशा में आगे बढ़ने के लिए हमें जनादेश दिया है. मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि लोग हमारे साथ हैं.


 
नीतीश कुमार बिहार के मुख्‍यमंत्री हैं...


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