अरुणाचल प्रदेश की सीमा से बड़ी ख़बर आ रही है. NDTV के हमारे सहयोगी विष्णु सोम ने आपको इस साल जनवरी में एक रिपोर्ट दिखाई थी कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सीमा के अंदर करीब सौ घरों एक गांव बसा लिया है. हाल ही में अमरीकी रक्षा एजेंसी पेंटागन ने अमरीकी कांग्रेस को बताया कि चीन ने भारतीय इलाके में ऐसा किया है तब भारत को भी प्रतिक्रिया देनी पड़ी थी. उस प्रतिक्रिया में एक किस्म से इस बात पर मुहर लगाई गई थी कि चीन वर्षों से इस तरह का अतिक्रमण करता रहा है लेकिन भारत ने कभी स्वीकार नहीं किया है. हमारे सहयोगी विष्णु सोम की नई रिपोर्ट और चिन्ता में डालने वाली है. विष्णु सोम की इस रिपोर्ट के अनुसार चीन ने अरुणाचल प्रदेश में ही एक अलग जगह पर साठ घर बनाए हैं यानी एक और गांव बसा लिया है. ठीक दो साल पहले, इसी नवंबर महीने में यानी नवंबर 2019 में अरुणाचल प्रदेश से बीजेपी सांसद तापिर गाओ ने एक बात कही थी कि मैं इस देश के मीडिया घरानों से कहना चाहता हूं कि चीन ने भारत के इलाके का अतिक्रमण किया है. उसका कोई कवरेज नहीं हो रहा है. 2017 में हुए डोकलाम विवाद के संदर्भ में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि अगर दूसरा डोकलाम हुआ तो अरुणाचल प्रदेश में होगा. विष्णु ने दिखाया है कि 2019 तक इन दोनों जगहों पर कोई निर्माण नहीं हुआ था. इसका मतलब यह निर्माण पिछले एक साल में हुआ है. यह निर्माण वास्तविक नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा के बीच किया गया है.
विष्णु सोम ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री से स्पष्टीकरण मांगा जिसका इंतज़ार ही किया जा रहा है. यह हल्की बात नहीं है कि भारतीय सीमा के भीतर चीन गांव बसा रहा है. इस विवाद का सामना हम फुलझड़ियों के बहिष्कार और एप डिलिट कर नहीं कर सकते हैं. पिछले साल अप्रैल मई के महीने में चीन पूर्वी लद्दाख के इलाके में सक्रिय हो गया. पहले समस्या से इंकार किया गया फिर कई दौर की बातचीत चली. कुछ गतिरोध दूर हुआ है लेकिन गतिरोध कहीं और भी पैदा हो गया है. गलवान विवाद को लेकर आज तक बातचीत जारी है. तब राहुल गांधी ने लगातार चीन को लेकर आवाज़ उठाई थी. राहुल गांधी बीच बीच में चीन को लेकर ट्वीट करते रहते हैं लेकिन उनकी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया जाता है. पिछले साल विपक्ष के दबाव के बाद ऑल पार्टी मीटिंग बुलानी पड़ी और प्रधानमंत्री ने कहा था कि न वहां कोई हमारी सीमा में घुस आया है न ही घुसा हुआ है.
प्रधानमंत्री ने चीन का नाम तक नहीं लिया था. बाद में देश ने पूर्वी लद्दाख के इलाके में प्रधानमंत्री के बयान से काफी कुछ अलग देखा था. कितनी लंबी बातचीत चली और आज तक चल रही है. इस बीच चीन भारतीय सीमा के दूसरे छोर पर निर्माण कार्य में लगा है. अरुणाचल प्रदेश में दो दो जगहों पर कंक्रीट निर्माण बसा लेने की घटना को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.
अगस्त 2019 में धारा 370 हटाई गई थी तब संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अक्साई चीन भी लेकर रहेंगे और उसके लिए जान देंगे मगर चीन भारत की सीमाओं के दोनो छोर पर दबदबा बना रहा है, अमित शाह अपनी तरफ से कुछ नहीं बोल रहे हैं.
इस समय सीमाओं की स्पष्टता और अस्पष्टता को लेकर चीन के दबदबे को स्वीकार या अस्वीकार किया जा रहा है लेकिन इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है कि चीन पर्यटन के विकास के लिए सौ सौ घरों की बस्ती नहीं बसा रहा होगा.
आपने अभी अल्ताफ भट्ट की बेटी को सुना, अगर सुन सके होंगे तो. हिंसा प्रतिहिंसा के बीच फंसी हमारी समझ इस बच्ची की आवाज़ सुनने के लायक नहीं बची है. सुन भी लेगी तो यकीन नहीं करेगी. अल्ताफ बट्ट श्रीनगर के प्रतिष्ठित बिजनेस मैन बताए जाते हैं, हैदरपुरा की उस इमारत के मालिक थे जहां उनका एनकाउंटर हुआ. उस इमारत में उनका दफ्तर भी है और कुछ दुकानें भी. इस करोड़पति बिजनेसमैन के परिवार का आरोप है कि उन्हें दो बार इमारत में ले जाया गया और तीसरी बार एनकाउंटर कर दिया गया. अल्ताफ बट्ट आतकंवादी नहीं थे. अल्ताफ की बेटी को आख़िरी बार के लिए अपने पिता को देखने का मौक़ा भी नहीं मिला. इस विपदा में यह बच्ची दो दो मोर्चे पर लड़ने लगी. पिता के निर्दोष होने को लेकर और मार दिए गए बाप का चेहरा देखने को लेकर, जिसे पुलिस ने इस जगह से 100 किलोमीटर दूर दफना दिया क्योंकि कानून व व्यवस्था नाम की चीज़ भी देखनी होती है.
नज़ीर मसूदी बता रहे हैं कि अल्ताफ बट्ट के आतंकी होने को लेकर पुलिस के बयानों में शुरू से स्पष्टता नहीं रही. नज़ीर ने बताया कि किस तरह पुलिस के बयान प्रेस के सवालों के साथ बदलते गए. अखबारों में भी इंस्पेक्टर जनरल विजय कुमार का बयान छपा है जिसमें यह अंतर्विरोध दिखता है. आतंकवादी, हाइब्रिड आतंकवादी और आतंकियों का मददगार.
पुलिस के शुरूआती बयान यही है कि अल्ताफ और डॉ मुदासिर गुल का संबंध आतंकियों को मदद पहुंचाने से रहा है. घाटी में दो दिनों से इस बात को लेकर विवाद हो रहा था. जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने ट्वीट किया है कि एक निश्चित समय सीमा के भीतर जांच होगी और इसके आधार पर कार्रवाई भी की जाएगी. मनोज सिन्हा ने यह भी कहा है कि जम्मू कश्मीर प्रशासन निर्दोष नागरिकों के जीवन की रक्षा के संकल्प को दोहराता है और इस बात की कोशिश की जाएगी कि किसी के साथ नाइंसाफी न हो. इस आदेश के बाद परिवारों को मारे गए लोगों के शव दे दिए गए हैं ताकि सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जा सके. महबूबा मुफ्ती को नज़रबंद कर दिया गया है. उन्होंने कल इस एनकाउंटर के खिलाफ हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. आज उमर अब्दुल्ला ने भी धरना दिया है.
तमाम निराशाओं के बीच जांच ही सबसे बड़ी आशा है कि उससे सच बाहर आता है और इंसाफ़ मिलता है. हम हर बार इस तरह की जांच पर इस तरह की ज़िम्मेदारी डाल देते हैं. कई बार न सच बाहर आता है न इंसाफ़ मिलता है. अगर आप यह कहना चाहते हैं कि अल्ताफ बट्ट और डॉ मुदासिर गुल के परिवारों को सिस्टम पर भरोसा करना ही होगा, आपकी बात ठीक है. लेकिन यही बात आपको IPS परमबीर सिंह को भी समझानी होगी जो इस व्यवस्था में किए जा चुके अनगिनत छेद का सहारा लेकर किसी छेद में छुप गए हैं. सुप्रीम कोर्ट उनसे पूछ रहा है कि परमबीर सिंह आप कहां है, और परमबीर सिंह कह रहे हैं कि बिल में छिपे हैं. अगर सांस लेने की इजाज़त है तो वे बिल से बाहर आ सकते हैं. क्या एक सीनियर आईपीएस अफसर बिल में छिप सकता है? गंभीरता की पराकाष्ठा देखिए, सुप्रीम कोर्ट से कह रहे हैं कि बिल में छुपे हैं, अगर संरक्षण देंगे तो बाहर आ जाएंगे. क्या उन्हें अपने देश और उस महानगर की पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं, जिसके वे मुखिया रहे हैं.
IPS परमबीर सिंह किस बिल में छिपे हैं, वह बिल भूगोल के किस खंड में है? भारत में है या विदेश में है? मुंबई पुलिस को क्या चूहेदानी लेकर शहर के तमाम बिलों पर नज़र रखनी होगी कि कहीं इस बिल में पूर्व कमिश्नर साहब तो नहीं छुपे हैं? इतनी बड़ी पुलिस फोर्स को कमांड करने वाले परमबीर सिंह अगर कोर्ट में कहें कि सांस लेने की इजाज़त हो तब वे बिल से बाहर आ सकते हैं, उस पुलिस की तौहीन है जिसकी मुंबई में अपनी साख है. सुप्रीम कोर्ट पूछ रहा है कि कहां हैं. मुंबई के एस्प्लानेड कोर्ट ने परमबीर सिंह को भगोड़ा घोषित कर दिया है. इस पर परमबीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से संरक्षण मांगा. जिसकी सुनवाई जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की बेंच में हुई. जस्टिस कौल ने पूछा कि आप कहां हैं, क्या विदेश में हैं, आप तो जांच में शामिल नहीं हो रहे हैं तब फिर अदालत कैसे संरक्षण दे सकती है. कोर्ट ने कहा कि जब तक जवाब नहीं मिलेगा कि आप कहां हैं तब तक कोर्ट कोई संरक्षण नहीं देगा. सुप्रीम कोर्ट को नहीं बता रहे हैं कि कहां है. क्या इस देश में किसी को पता नहीं कि एक सीनियर IPS अफसर कहां हैं?
अगर पुलिस के इतने सीनियर अफसर बिल में छुपेंगे तो फिर भारत में बिल के लिए अलग पुलिस बनानी पड़ेगी. बिल-पुलिस. ताकि बिलों में बिला चुके अफसरों को पुलिस खोज निकाले.
क्या बिना संरक्षण के इस लेवल का अफसर बिल में छुप सकता है? उस बिल से क्या कोई बिना वीज़ा पासपोर्ट के ही भारत से कहीं और चला जाता है या इस बिल से केवल भारत के भीतर ही आना जाना किया जा सकता है. क्या उस बिल में फ्रीज़ टीवी भी है? I am not joking. इसको asking बोलते हैं. परमबीर सिंह के नाम में कितनी वीरता है. क्या ऐसे वीर को बिल में छुपा होना चाहिए? does not sound nice to me. इस देश में न जाने कितने लोग पुलिस के फंसा देने के कारण मुकदमों और जेल में फंसे पड़े हैं. और पुलिस का ही इतना बड़ा अफसर फंसा दिए जाने के डर से बिल में घुसा है. Do you get my point? Please get it sometime.
किसी को फंसाने के खेल में नेताओं के साथ पुलिस भी रही है. अब दोनों एक दूसरे से फंसने लगे हैं. इसी कारण आए दिन राजनीति में भी टकराव बढ़ता जा रहा है. तेलंगाना के बीजेपी अध्यक्ष मुख्यमंत्री केसीआर के बारे में कहते हैं कि उनके भ्रष्टाचार की फाइल तैयार है. केस होगा और वे जेल में होंगे. मुख्यमंत्री केसीआर कहते हैं कि उन्हें जेल से नहीं डर नहीं लगता. ऐसी जेलें बहुत देख लीं.
इस कार्यक्रम में हम कश्मीर से चलकर महाराष्ट्र पहुंचे और वहां से तेलंगाना गए और अब मध्यप्रदेश चलते हैं. राजधानी भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल में आग लगने से 4 बच्चों की मौत के आंसू अभी सूखे भी नहीं थे कि अशोकनगर जिला अस्पताल में एक नवजात बच्चे का शव कुत्ता अपने मुंह में दबाकर घूमता रहा, सरकार अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त है लेकिन ऐसी तस्वीरें खुद बता रही हैं कि हालात क्या हैं.
प्रधानमंत्री ने क्रिप्टो करेंसी पर बोलना शुरू कर दिया है उधर लोगों के पास फीस देने की करेंसी नहीं है. तालाबंदी के कारण आमदनी इतनी कम हो गई है कि प्राइवेट स्कूलों से नाम कटा कर सरकारी स्कूलों में डालने के लिए मजबूर हो रहे हैं.
किसान आंदोलन के एक साल होने जा रहा है. इस एक साल के दौरान किसानों की बातें ही सही साबित हो रही हैं. अगर प्राइवेट प्लेयर खरीदने को इतने बेताब हैं तो फिर तेलंगाना के किसान सरकारी खरीद के लिए आंदोलन नहीं कर रहे होते और राज्य सरकार उस आंदोलन का हिस्सा नहीं बनती. इतनी सी बात समझ जाएंगे तो फिर किसानों की भी बात समझ लेंगे.