विज्ञापन
This Article is From May 20, 2021

टीका अभ‍ियान कैसे पड़ा फीका?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 20, 2021 00:33 am IST
    • Published On मई 20, 2021 00:33 am IST
    • Last Updated On मई 20, 2021 00:33 am IST

सवाल चाहें जितने हों, जवाब जवाब की तरह नहीं मिलेगा. हमारे सहयोगी परिमल के सवाल का इतना ही जवाब मिला जो कि जवाब था भी नहीं. अलग-अलग समय पर सरकार के जवाबों को आप पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि जवाब देने का मतलब आपको घुमाते रहना है. फरवरी महीने में केंद्रीय बजट में मोदी सरकार कहती है कि टीके की खरीद के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. मोटी हेडलाइन छप जाती है. 10 मई को वित्त मंत्रालय की तरफ से एक प्रेस रिलीज़ जारी होती है. उसमें कहा जाता है कि बजट में 35000 करोड़ का प्रावधान राज्यों को देने के लिए किया गया था. राज्यों को हस्तांतरण शीषर्क के नीचे 35000 करोड़ की राशि दिखाई गई है. इसी से केंद्र टीका खरीद रहा है और राज्यों को दे रहा है. टीकाकरण के लिए राज्यों को दी गई राशि वास्तव में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संचालित की जाती है. इस प्रेस रिलीज़ की आखिरी पंक्ति यह है कि ‘राज्यों को हस्तातंरण' शीर्षक वाली मांग के उपयोग का अर्थ यह नहीं है कि केंद्र द्वारा व्यय नहीं किया जा सकता है. जब स्टेट को ही खरीदना था तो उनके लिए 35000 करोड़ से केंद्र क्यों खरीद रहा है. केंद्र 150 रुपये में टीका खरीद कर राज्यों को दे. क्यों राज्यों को अधिक कीमत पर उसी कंपनी से टीका लेना पड़ रहा है. क्या केंद्र अपने टीके खरीदने के लिए अलग से फंड नहीं रख सकता था, राज्यों को दिए जाने वाले फंड से राज्य टीका खरीदते. अब जब यह पैसा राज्यों को नहीं मिलेगा तो उनके पास टीका खरीदने का पैसा कहां से आएगा. जीएसटी का बकाया अलग से है. बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा है कि दो तिमाही से जीएसटी की बैठक नहीं हुई है. राज्यों की आर्थिक स्थिति भी खस्ता है. 16 मार्च को कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा के सवाल के जवाब में स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे राज्यसभा में कहते है कि सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे स्वतंत्र रूप से टीका बनाने वाली कंपनियों से टीके की खरीद के लिए कोई करार न करें.

इसका मतलब है कि इस 16 मार्च तक राज्य सरकारों को खुद से टीका खरीदने की अनुमति नहीं थी. 19 अप्रैल को मोदी सरकार राज्य सरकारों को वैक्सीन की अतिरिक्त खुराक सीधे वैक्सीन निर्माताओं से खरीदने की अनुमति देती है. राज्यों ने विरोध किया लेकिन जब उन पर थोप दिया गया तो ग्लोबल टेंडर निकालने लगे. ग्लोबल टेंडर तो केंद्र सरकार को पहले निकालना चाहिए था. BMC ने 12 मई को 1 करोड़ टीके की डोज़ के लिए ग्लोबल टेंडर निकाला था. 18 मई की डेडलाइन थी पर कोई आया नहीं. अब एक हफ़्ता और डेडलाइन बढ़ाई गई है.

जो सरकार 19 अप्रैल से पहले तक कह रही थी कि कोई राज्य अपने से टीका नहीं खरीद सकता वह सरकार 9 मई को सुप्रीम कोर्ट में कहती है कि राज्य टीका कंपनियों से टीका खरीदने लगे हैं, केंद्र सरकार टीका कंपनियों से सलाह-मशविरा कर तय करती है कि कौन सा राज्य कितना टीका खरीदेगा. ताकि कोई राज्य अधिक और कोई कम न खरीद ले. केंद्र हर राज्य को लिख कर देता है कि आप मई के महीने में इतना टीका खरीद सकते हैं.

राज्यों को दिया गया पैसा केंद्र देने से पहले रोक ले, राज्यों से कहे कि आप खुद खरीदें, लेकिन कितना खरीदेंगे यह तय केंद्र सरकार करेगी. दो कंपनियों से खरीद के मामले में पहले केंद्र सरकार ही तय कर रही थी अब भी केंद्र सरकार कर रही है. केंद्र सरकार कहती है कि भारत की दोनों कंपनियों से 50 प्रतिशत टीका वह खरीदेगी. 25 प्रतिशत राज्य खरीदेंगे और 25 प्रतिशत प्राइवेट पार्टी. प्राइवेट पार्टी को राज्यों के बराबर लाकर रख दिया गया है ताकि वे अधिक दाम में टीके लगा सकें और ज्यादा मुनाफा कमा सकें. अब देखते हैं कि प्रधानमंत्री टीके को लेकर राज्यों से क्या कह रहे थे. 8 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी मुख्यमंत्रियों से कहते हैं कि हम एकदम से टेस्टिंग भूल कर वैक्सीन पर चले गए हैं. और उसी दिन टीका उत्साव की घोषणा भी करते हैं. क्रोनोलोजी के साथ आपको कंट्राडिक्शन भी समझना होगा. बल्कि हिन्दी छोड़कर इंग्लिश बोलना होगा.

प्रधानमंत्री ने कहा था, “हमारा क्‍या हुआ है, हम एकदम testing भूल करके वैक्‍सीन पर चले गए. वैक्‍सीन जैसे-जैसे product होगी, जैसे-जैसे पहुंचेगी...पहुंचेगी. हमने लड़ाई जीती थी बिना वैक्‍सीन के. वैक्‍सीन आएगी कि नहीं आएगी...वो भी भरोसा नहीं था...तब हम लड़ाई जीते हैं. तो आज हमें इस प्रकार से भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है. लोगों को भयभीत होने नहीं देना है.”

क्या प्रधानमंत्री यह नहीं कह रहे कि वैक्सीन के बिना ही हम लड़ाई जीत लेंगे. प्रधानमंत्री जिस टेस्टिंग की बात कर रहे हैं उसकी हालत दूसरी लहर में क्या थी, आप जानते हैं. गांवों में टेस्टिंग की क्या हालत है कितनी बार बताएं. प्रधानमंत्री अप्रैल में कह रहे हैं जब हर तरफ लोग मर रहे थे. लोग टीका टीका कर रहे थे. तब कह रहे हैं प्रधानमंत्री कि हम टेस्टिंग को भूल कर वैक्सीन पर चले गए. अब 18 मई को प्रधानमंत्री कहते हैं कि बहुत बड़े स्तर पर टीके की सप्लाई को बढ़ाने का काम चल रहा है.

“टीकाकरण कोविड से लड़ाई का एक सशक्त माध्यम है. इसलिए इससे जुड़े हर भ्रम को हमें मिलकर के उसको निरस्त करना है. कोरोना के टीके की सप्लाई को बहुत बड़े स्तर पर बढ़ाने के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं.”

टीका की सप्लाई बढ़ाने के लिए जो बड़े पैमाने पर काम हो रहा है उसे तो पहले किया जाना था. तब शायद छोटे पैमाने पर ही काम करने से हो जाता. कितना काम हो रहा है बता रहा हूं. 2 अक्तूबर को विश्व व्यापार संगठन WTO में भारत और दक्षिण अफ्रीका 2 अक्टूबर 2020 को अपील करते है कि टीका बनाने वाली कंपनियां पेटेंट का अपना अधिकार छोड़ दें. जबकि अपने देश में मोदी सरकार जिसके पास भारत बायोटेक का साझा पेटेंट है, खुद भारत की ही दूसरी कंपनियों को अधिकार नहीं देती है. सात महीने का कीमती वक्त चला गया. अब एक और कमाल की बात बताता हूं. बायोटेक का पेटेंट भारत सरकार साझा करती है तो प्रधानमंत्री इस स्तर पर फैसला ले सकते थे कि दूसरी कंपनी बनाएगी. जो काम प्रधानमंत्री का है उसका सुझाव परिवहन मंत्री दे रहे हैं.

नितिन गडकरी ने कहा, “किसी बात की सप्लाई कम होती है और डिमांड ज़्यादा होती है तो प्रॉब्लम क्रीएट होता है. तो ये वैक्सीन वाली कम्पनी एक के बजाय 10 को दें और रॉयल्टी भी लें. कोई सेवाभावी कर के ना करें. और जैसे मैंने ये दवाई न होने वाली तैयार कर लीं. तो वैक्सीन का प्रोडक्शन अगर 10 जगह खुल जाए. जैसे Haffkine को importance मिला है. तो मनसुख भाई मेरा अनुरोध है कि आप हर राज्य में दो-दो तीन तीन laboratory already है. मेरी जानकारी है कि उनकी क्षमता भी है और infrastructure भी है. फ़ॉर्म्युला देकर उनके साथ coordination कर के अगर ये संख्या बढ़ाएंगे तो पहले उनको कहिए कि देश में दीजिए और बाद में ज़्यादा होगा तो export करिए. मुझे लगता है कि ये तुरंत 15-20 दिन में हो सकता है. ये तो मेरे अंदर का विषय नहीं है आप NSI (?) दिल्ली में है. तो ये जो वैक्सीन का प्रॉब्लम है उसको सुलझाने में आपको उचित लगे तो ज़रूर विचार करिए.”

लगता है सरकार आपस में बात नहीं कर रही है तभी गडकरी को बाहर सुझाव देना पड़ रहा है. बाद में गडकरी ने एक बयान जारी कर अपने इस बयान पर सफाई दी जिससे यह साफ हो गया है वाकई सरकार के मंत्रियों को पता नहीं है कि सरकार क्या कर रही है. नितिन गडकरी कहते हैं कि "18 मई को मैं स्वदेशी जागरण के द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में मैंने टीका उत्पादन बढ़ाने का सुझाव दिया था. मुझे पता नहीं था कि मुझसे पहले रसायन व उर्वरक मंत्री मंसुख मंडाविया ने बताया था कि सरकार उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार क्या कर रही है. सम्मेलन के बाद मुझे बताया गया कि सरकार ने 12 अलग कंपनियों की मदद कर रही है ताकि निकट भविष्य में टीके का उत्पादन बढ़ाया जा सके. मुझे पता नहीं था कि उनके मंत्रालय ने मेरे सुझाव से पहले ही काम शुरू कर दिया है."

स्वदेशी जागरण के सम्मेलन में वाइस चांसलर बुलाए गए हैं. ये अलग विषय है. उसे संबोधित कर रहे मंत्री नितिन गडकरी को ही पता नहीं है कि उनकी सरकार के एक मंत्रालय ने क्या कदम उठाए हैं. 18 अप्रैल को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में सुझाव दिया था कि मैं मानता हूं कि यह समय कानून के अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधानों को लागू किया जाए ताकि अधिक से अधिक कंपनियां वैक्सीन बना सकें. लोकतांत्रिक शिष्टाचार तो यही है कि पूर्व प्रधानमंत्री ने जब प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है तो प्रधानमंत्री ही जवाब देते अगर ईगो की समस्या नहीं है तो लेकिन प्रधानमंत्री का जवाब नहीं आया. अलबत्ता स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने मनमोहन सिंह के पत्र का जवाब देते हुए मज़ाक उड़ाया. क्रोनोलॉजी समझ रहे हैं न आप. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोदी सरकार के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कहते हैं कि लाइसेंस ओपन कर दूसरी कंपनियों को उत्पादन करने दिया जाए. मनमोहन सिंह का मज़ाक उड़ाने के बाद सरकार को उनके ही सुझाव पर फैसला लेना पड़ता है. 

13 मई के टाइम्स ऑफ इंडिया में नीति आयोग के सदस्य डॉ वी के पॉल का बयान है कि केंद्र सरकार और भारत बायोटेक दूसरी कंपनियों को आमंत्रित करने के लिए तैयार है ताकि उत्पादन बढ़ सके. लोग कहते हैं कि कोवैक्सीन के उत्पादन का काम दूसरी कंपनियों को दे दिया जाए. मैं यह बताते हुए खुश हूं कि भारत बायोटेक से जब हमने चर्चा की तो उन्होंने इसका स्वागत किया है. दूसरी कंपनियां बना सकती हैं. केंद्र उन कंपनियों को मदद करेगा.

ज़ाहिर है मई से पहले सरकार इस दिशा में नहीं सोच रही होगी. जब अप्रैल में मनमोहन सिंह ने पत्र लिखा तो मज़ाक उड़ाया गया. क्या आप जानते हैं कि भारत सरकार के पास टीका बनाने की तीन कंपनियां हैं. उनका नाम सुना है आपने. जब बिकने वाली होंगी तब सुनेंगे. Haffkine Biopharmaceutical Corporation Ltd, Indian Immunologicals Ltd (IIL) और Bharat Immunologicals and Biologicals Corporation Ltd (BIBCOL). 15 मई का सूचना और प्रसारण मंत्रालय PIB का प्रेस रिलीज़ है कि सरकार अपनी कंपनियों को टीका बनाने के लिए तैयार कर रही है. ये तैयारी क्या पहले नहीं होनी चाहिए थी?

आपको आईटी सेल का एक व्हाट्सएप फारवर्ड मिल रहा होगा कि मोदी सरकार ने राज्यों को 17 मार्च को ही बता दिया था कि दूसरी लहर आने वाली है. लेकिन मार्च के महीने में तो डॉ हर्षवर्धन का बयान है कि महामारी खत्म होने वाली है. और तो और फिर केंद्र सरकार को बताना चाहिए कि उसने अपने ही अस्पतालों में दूसरी लहर को लेकर क्या तैयारी की थी? क्या राष्ट्रीय स्तर पर कोई चेतावनी जारी की गई थी? दूसरी लहर तो छोड़िए टीके के मामले में भी सरकार नाकामी के कई मोर्चों पर पकड़ी गई है.

प्रधानमंत्री कहते हैं, “मेरा आप सब से आग्रह है कि आप बिना संकोच आपको लगता है कि जो चीज आपने अच्छी की है, अच्छे ढ़ग से की है, वो मुझे जरूर भेजिये लिखकर के. मेरे तक पहुंचाइए. और में इसका अन्य जिलों में उपयोग केसे हो इसकी जरूर चिंता करुंगा.”

इससे क्या पता चलता है? यही न कि सरकार को ही नहीं मालूम है कि सरकार क्या कर रही है. Do you get my point. क्या डीएम बताएंगे कि टीके के उत्पादन के लिए लाइसेंस नीति में चेंज कर लेना चाहिए था? इतने लोगों के मर जाने और मार दिए जाने के बाद अब अनुभव पूछे जा रहे हैं. लेकिन तबाही तो ज़्यादातर जगहों में थी तब क्यों नहीं डीएम से बात हुई कि क्या कमी है, दूर करते हैं. प्रधानमंत्री पोज़िटिव ढूंढ रहे हैं जब घर घर में लोग अपनों को गंवा कर निगेटिव हो रहे हैं.

एक तस्वीर बिहार के बेगूसराय से हमारे सहयोगी संतोष ने भेजी है. 17 मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वर्चुअल मीटिंग के दौरान लॉकडाउन में गरीब लोगों के लिए बने सामुदायिक किचन का मुआयना कर रहे हैं. मुख्यमंत्री के लिए इसे रेस्त्रां की तरह सजा दिया गया. मेज़ कितनी अच्छी लग रही है. पानी का इंतज़ाम है. सीएम ने भी तारीफ कर दी. वर्चुअल मीटिंग के दिन लोगों को तमाम शिष्टाचार के साथ खिलाया जा रहा है. लेकिन अगले दिन यहां की तस्वीर बदल जाती है. हम समझते हैं कि गुब्बारे ज्यादा समय नहीं रह सकते लेकिन सीएम के सामने जहां एक मेज़ पर कम लोग खा रहे थे ताकि सामाजिक दूरी बनी रहे अब मेज़ें एक दूसरे से सटी हुई हैं और ज़्यादा लोग खा रहे हैं. यही नहीं बहुत सारी मेज़ें अब नज़र नहीं आ रही हैं. और रात की यह तस्वीर उसी दिन की है जब मुख्यमंत्री ने वर्चुअल दौरा किया था. आप देख सकते हैं किस तरह खाना बंट रहा है और भीड़ है. यह तस्वीर सरकारी व्यवस्था की पोल खोल रही है और यह भी बता रही है कि काम धंधा बंद होने के कारण जो तबाही आई है उसने लोगों की क्या हालत कर दी है. इस वक्त मुख्यमंत्री को वर्चुअल दौरा करना चाहिए था ताकि पता चलता कि कैसे लीपापोती हो रही है. क्या ऐसी लीपापोती वाली जानकारी सीएम और प्रधानमंत्री को चाहिए या लापरवाही वाली जिसे देख कर ठीक करने की तुरंत कार्रवाई हो सके. 

यही हाल टीका उत्सव का हुआ. 19 अप्रैल को मोदी सरकार टीके की नई गाइडलाइन निकालती है और यह भी कह देती है कि 1 मई से 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीके दिए जाएंगे. राज्यों को की तैयारी के लिए सिर्फ 11 दिन का समय दिया गया. तैयारी ही नहीं राज्यों को टीका खरीदने का समय भी कम दिया गया. केंद्र सरकार ने इस फैसले को सुगम और प्रभावी नीति बताया. नतीजा क्या हुआ टीके की कमी हो गई और जगह जगह टीका केंद्र बंद हो गए.

रवीश रंजन गौतमबुद्ध नगर के बिसरख गांव में गए जहां टीके का सेंटर बना था. वहां पर नोएडा, ग़ाज़ियाबाद और दिल्ली के लोग टीका लगाने पहुंच गए थे. क्या यह ऐसा इसलिए भी हुआ कि गांव के लोगों के पास इंटरनेट कम होता है, डिजिटल साक्षरता कम होगी, और इसका लाभ उठाकर दिल्ली वाले बुकिंग कर गांव में पहुंच जा रहे हैं. मुमकिन है टीके को लेकर गांव में जागरूकता कम होगी लेकिन यह शहरों की कौन सी जागरूकता है कि गांव के टीका केंद्र में दिल्ली वाले पहुंच जाएं. गांव का टीका केंद्र तो कायदे से गांव के लिए ही होना चाहिए था. शहर के लोग जागरुक हैं तो क्या गांवों का हक मार लेंगे? ये जागरुकता है या चतुराई है. बताता है कि हमारे समाज का किरदार कैसा है.

सरकारी दावों में टीके की भले कमी न हो लेकिन लोगों को पता है कि टीका नहीं मिल रहा है. विवेक पॉल लगातार टीके की नीतियों का विश्लेषण कर रहे हैं. 30 अप्रैल को उन्होंने लिखा है कि 45 साल और उससे ऊपर के लोगों की संख्या करीब 35.6 करोड़ होगी. इस समूह में 53.6 करोड़ टीके लगने बाक़ी हैं. अर्थशास्त्री रेणुका साने और अजय शाह ने अनुमान लगाया है कि 18-44 के बीच के लोगों की जनसंख्या 62.2 करोड़ होगी. इस समूह को 124.4 करोड़ टीकों की ज़रूरत होगी. इस हिसाब से अगर 18 साल से ऊपर के सभी को टीका देना होगा तो कुल 178 करोड़ डोज़ की ज़रूरत होगी. मई में सीरम इंस्टीट्यूट ने कहा था कि 7 करोड़ टीका बनाने की उम्मीद है और भारत बायोटेक ने कहा था कि 2 करोड़ टीका बनाने की उम्मीद रखते हैं. यह तो केवल 9 करोड़ ही हुआ. जुलाई तक उम्मीद है ये सप्लाई 16 करोड़ तक पहुंच जाएगी. स्पूतनिक या फ़ाइज़र की सप्लाई मिलने के बाद कुल सप्लाई 16 करोड़ से ज़्यादा हो जाएगी. मगर दो कम्पनियों की उत्पादन क्षमता की भी अपनी सीमा है. यह संख्या बता रही है कि अथॉरिटी को कभी लगा ही नहीं था कि दूसरी लहर आएगी. इसलिए आबादी के बड़े हिस्से को टीका देने की योजना ही नहीं थी. अगर हर महीने 20 करोड़ टीके मिलें, तो भी हर्ड इम्यूनिटी तक पहुंचने के लिए हमें कम से 5-6 महीने लग जाएंगे. सरकार द्वारा कोर्ट को दिए हलफ़नामे के मुताबिक़ अभी हमारी सप्लाई 8.5 करोड़ की है.

9 मई को सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने हलफमाना दिया है. इसमें सरकार ने कोवैक्सिन की उत्पादन क्षमता के बारे में लिखा है. बताया है कि भारत बायोटेक ने एक महीने में 90 लाख डोज़ बनाने की क्षमता को बढ़ा कर 2 करोड़ डोज़ प्रति माह किया है. जुलाई 2021 तक उम्मीद है कि प्रति माह 5.5 करोड़ डोज़ उत्पादन करने की क्षमता हो जाएगी. 9 मई के हलफनामे में ऐसी जानकारी कोर्ट को दी गई है. उसके तीन दिन बार 13 मई के फर्स्ट पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार सीरम इंस्टीट्यूट ने सरकार को बताया है कि अगस्त तक 10 करोड़ डोज़ बनने लगेंगे और भारत बायोटेक ने कहा है कि 7.8 करोड़ डोज़ बनने लग जाएंगे. यह खबर सूत्रों के हवाले से छपी है.

दो दिन में टीके का टार्गेट कितना बदल जाता है. अगर आप ट्रैक करें कि उत्पादन को लेकर पूनावाला ने ही कितनी बार बयान बदला है तो आपको लगेगा जिस व्यक्ति का इंटरव्यू मीडिया में हीरो की तरह होता रहता है दरअसल वो ज़ीरो से खेलता है. हर इंटरव्यू में कुछ और ज़ीरो लगाकर कुछ भी संख्या बोल देता है.

अक्तूबर में पूनावाला ने कहा जनवरी 2021 तक सीरम में हर महीने कोविशील्ड के दस करोड़ डोज़ बनाने की क्षमता हासिल कर सकती है. नवंबर में जब प्रधानमंत्री सीरम जाते हैं तो पूनावाला का टारगेट बदल जाता है और कहते हैं कि मार्च तक आते आते हर महीने 10 करोड़ डोज़ बनने लगेंगे. तीन महीना तो यहीं बढ़ गया. मई में मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में कहती है कि सीरम ने अपनी क्षमता 5 करोड़ से बढ़ा कर 6.5 करोड़ कर ली है. जुलाई 21 में इसकी क्षमता और भी बढ़ने की उम्मीद है.

किस कंपनी में कितने डोज़ बन रहे हैं, इसकी सही संख्या जानना मुश्किल है. कंपिनयां ही बयान बदल रही हैं. कुछ भी बोल देना है और कुछ भी छप जाना है. बिना कापी देखे नंबर दिए जा रहे हैं. अभी तक तो इन कंपनियों ने जितना कहा था उस हिसाब से अपनी उत्पादन क्षमता नहीं बढ़ा सकी हैं. आगे देखेंगे लेकिन गुजरात भाजपा के पोस्टर को देखिए. बीजेपी कहती है कि इस वक्त भारत बायोटेक हर महीने कोवैक्सीन की एक करोड़ डोज़ का उत्पादन कर रही है. जबकि कोर्ट में सरकार ने कहा है कि दो करोड़ डोज़ कोवैक्सीन का उत्पादन होने लगा है. अब कोई कोर्ट के आंकड़े को सही माने या बीजेपी के प्रचार को सही माने? कोर्ट में सरकार ने कहा है कि भारत बायोटेक जुलाई 2021 तक साढ़े पांच करोड़ कोवैक्सीन के टीके बनाने लगेगी. लेकिन पोस्टर में लिखा है कि जुलाई अगस्त की छह से सात करोड़ डोज़ बनने लगेगी. इस पोस्टर के अनुसार क्या वाकई भारत बायोटेक सितंबर तक दस करोड़ डोज़ बनाने लग जाएगी.

देखते हैं कि कब तक होता है. टीके के उत्पादन की संख्या टीका उत्सव के एलान के बाद बढ़ाने की बात हो रही है. सरकार ने भोज में बुलाकर मंडी में सब्ज़ी की खरीदारी शुरू की है. इस टाइप की बात है. क्या दिसंबर तक 216 करोड़ टीके का डोज़ भारत हासिल कर लेगा? नीति आयोग के वी के पॉल कहते हैं कि इसे लेकर कोई शक नहीं होना चाहिए. शक कौन करेगा. सवाल किया जाता है तो जवाब नहीं मिलता है. आपने प्रधानमंत्री को बार बार कहते सुना होगा कि मानवता की सेवा के लिए टीका दुनिया के देशों में दे रहे हैं. आज उस मानवता का एक रूप बांबे हाई कोर्ट की बहस में दिखा. जनहित याचिका थी कि 75 साल से ज्यादा उम्र के और बेड पर पड़े और चलने में असमर्थ लोगों को घर जाकर टीका लगे. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि अगर केंद्र सरकार तैयार नहीं है तो हम BMC को इसकी इजाजत देने को तैयार हैं. मानवता की बात करने वाली केंद्र सरकार को इससे क्या एतराज़ है. गुरुग्राम में लोग कार में बैठ कर टीका ले सकते हैं तो बीमार और विकलांग लोगों को घर जाकर टीका क्यों नहीं दिया जा सकता है. नहीं दिया जा सकता है तो मानवता की परिभाषा क्यों नहीं बदली जा सकती है. बदल तो गई ही है. प्रयागराज के घाट पर.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com