सरकार के प्रबंधक कहते हैं ये तथ्य है कि हमारे पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है। वो ये भी मानते हैं कि विपक्ष एकजुट है और सरकार को घेरने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दे रहा है। वरना ऐसे विधेयक जिनसे सीधे-सीधे राज्यों को फायदा हो रहा हो, राज्यसभा में नहीं रोके जाते। बहरहाल, सरकार इसी गतिरोध को खत्म करने का रास्ता निकाल रही है।
सरकार ने विपक्ष के साथ लंबी बातचीत की। ये सहमति बनी कि दो बिल- कोल खदान नीलामी तथा खान एवं खदान (विकास एवं नियमन) सेलेक्ट कमेटी में भेजे जाएंगे मगर इस शर्त पर कि एक हफ्ते के भीतर उनकी रिपोर्ट आ जाए। वहीं विपक्ष मोटर व्हीकल तथा बीमा बिल को पास कराने में सरकार की मदद करेगा। बुधवार को राज्यसभा में ऐसा ही हुआ। दो बिल सेलेक्ट कमेटी को भेज दिए गए, मोटर व्हीकल बिल पारित हो गया और बीमा बिल गुरुवार को राज्यसभा में आएगा।
बीमा बिल पर कांग्रेस नरम पड़ी है। उसका कहना है कि ये उसी का बिल है। इस बिल की सेलेक्ट कमेटी और स्टैंडिग कमेटी में पड़ताल हो चुकी है। कांग्रेस को ये अंदाजा है कि अगर वो खुल कर इस बिल पर सरकार का साथ देती है तो अभी तक बड़ी मुश्किल से बना कर रखी गई विपक्षी एकता पर आंच आ सकती है क्योंकि लेफ्ट पार्टियां और तृणमूल कांग्रेस बीमा बिल के सख्त खिलाफ हैं।
लेकिन कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि विपक्षी एकता मुद्दों पर आधारित है। बीमा बिल का विरोध करने वाली पार्टियां ये दलील दे रही हैं कि चूंकि अब ये एक नया बिल है लिहाजा इसे सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाना चाहिए। हालांकि कांग्रेस और सरकार दोनों इस दलील से सहमत नहीं हैं।
वहीं सरकार चुपचाप ढंग से विपक्षी दलों में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। सरकार के प्रबंधकों का दावा है कि अगर राज्यसभा में खान एवं खदान (विकास एवं नियमन) बिल पर वोटिंग हुई होती तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उसका साथ दे सकती थीं क्योंकि ये बिल राज्यों के पक्ष में है। इसी तरह तृणमूल कांग्रेस भी इसमें कुछ संशोधनों की मांग कर रही थी। वहीं बीजू जनता दल और एआईएडीएमके जैसे दल मुद्दों के आधार पर सरकार का समर्थन करते दिख रहे हैं। बीमा बिल को पास कराने के लिए सरकार इसी रणनीति पर काम कर रही है।
लेकिन सरकार की असली दिक्कत भूमि अधिग्रहण बिल पर है। सरकार का कहना है कि इसे राज्यसभा में अगले हफ्ते लाया जाएगा और उससे पहले वो सभी राजनीतिक दलों से अनौपचारिक तौर पर विचार-विमर्श करना चाह रही है। ये बात तय है कि कांग्रेस किसी भी सूरत में इसका समर्थन नहीं करेगी और वो चाहती है कि इसे सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाए। विपक्षी दलों को मनाने के लिए सरकार कुछ नए संशोधन लाने से भी इनकार नहीं कर रही है। संभावना ये भी है कि अगर विपक्षी दलों में सेंध लगाने में सरकार कामयाब नहीं होती है तो इसे 20 मार्च को खत्म हो रहे बजट सत्र के पहले हिस्से में राज्यसभा में लाया ही न जाए।
सरकार की ये रणनीति भी है कि अगर कोल खदान नीलामी और खान एवं खदान (विकास एवं नियमन), भूमि अधिग्रहण बिल 20 मार्च से पहले पास न हो पाएं तो उसी दिन सत्रावसान कर दिया जाए। ऐसा करने से सरकार इन तमाम विधेयकों पर फिर से अध्यादेश जारी कर सकती है क्योंकि ये सारे अध्यादेश पांच अप्रैल को खत्म हो रहे हैं।
20 अप्रैल से आठ मई तक होने वाले बजट सत्र के दूसरे हिस्से को एक नए सत्र के रूप में शुरू किया जा सकता है। सरकार का कहना है कि ये सिर्फ एक तकनीकी मामला है जिसका विपक्ष विरोध नहीं कर सकता है क्योंकि सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार है। सरकार के मुताबिक नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद खुद सदन में ये कह चुके हैं कि सरकार ऐसा कर सकती है।
बहरहाल, सरकार राज्यसभा में इन्हीं रणनीतियों पर काम कर रही है। उसे भरोसा है कि महत्वपूर्ण बिलों पर विपक्ष उसका साथ देगा। उधर, अभी तक एक जुट विपक्ष सरकार को ज्यादा रियायत देने के मूड में नहीं दिख रहा है।