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This Article is From Oct 05, 2018

आर्थिक हालात से घिरी सरकार

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    October 05, 2018 22:05 IST
    • Published On October 05, 2018 22:05 IST
    • Last Updated On October 05, 2018 22:05 IST
पिछले कुछ दिनों से रुपया लगातार लुढ़कता जा रहा है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है. दूसरी तरफ शेयर बाजार है जहां सेंसेक्स भी नीचे ही गिरता जा रहा है और तीसरी चीज है तेल की कीमतें. हालांकि केन्द्र और राज्य सरकारों ने जनता को राहत देने की कोशिश की है मगर वो भी नाकाफी है. अभी भी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 81 रुपये 50 पैसे है जबकि मुंबई में अभी भी पेट्रोल 86 रुपये 97 पैसे है. और इस सब के बीच रिर्जव बैंक ने मौद्रिक समीक्षा में कुछ भी घटाने से मना कर दिया है. अब आप सोच रहे होंगे कि एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत यदि 74 रुपए हो गई तो उन्हें क्या फर्क पड़ता है क्योंकि उनको लगता है कि वो कोई व्यापार तो कर नहीं रहे, कुछ बाहर से मंगा नहीं रहे हैं. लेकिन यह सच नहीं है. गिरते रुपए का आम आदमी पर असर पड़ता है. जैसे कि तेल हम बाहर से मंगाते हैं जिसके लिए हमें डॉलर में भुगतान करना पड़ता है जिससे काफी फर्क पड़ रहा है. और जब तेल के दाम पर फर्क पड़ता तो महंगाई बढ़ना लाजमी है. और जब 4 नवंबर को अमेरिका ईरान पर प्रतिबंध लगाएगा तो हालात और बदतर हो सकते हैं.

जहां तक शेयर बाजार के लुढ़कने की बात है तो छोटे निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. पिछले तीन दिनों में एक अनुमान के मुताबिक करीब 9.5 लाख करोड़ रुपया निवेशकों का डूब गया है. यही नहीं गिरावट की वजह यह भी है कि विदेशी निवेशकों, जो कि अधिकतर संस्थाएं होती हैं, ने करीब सवा लाख करोड़ रुपया शेयर बाजार से निकाल लिया है. भारतीय शेयर बाजार की गिरावट की एक बड़ी वजह है कि अमेरिका ने कर्ज लेने की दरें बढ़ा दी हैं जिससे एशिया के शेयर बाजारों में हाहाकार मच गया. शुरुआत तुर्की से हुई और उसकी चपेट से भारतीय शेयर बाजार भी अछूता नहीं रहा. तेल के लिए जहां अमेरिका बनाम ईरान एक बड़ी वजह है वहीं शेयर बाजार के लिए अमेरिका बनाम चीन के बीच व्यापार को लेकर चला एक तरह का युद्ध है.

इन सब के बीच सरकार का जवाब है कि वो ज्‍यादा कुछ करने की हालत में नहीं है. सरकार के आर्थिक फैसलों पर कई जानकार गाहे बगाहे सवाल उठाते रहे हैं और यह शुरू हुआ है नोटबंदी से, फिर जीएसटी पर भी सवाल उठे और अब यह कहा जा रहा है सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. इस साल के अंत तक तीन प्रमुख बीजेपी शासित राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं. वैसे तो कहा जाता है कि राज्यों के चुनाव में वहां के स्थानीय मुद्दे ही हावी रहते हैं मगर जो आर्थिक हालात हैं उसका भी असर जरूर पड़ता है. यही वजह है कि केन्द्र सरकार को तेल की कीमतें कम करनी पड़ीं क्योंकि सरकार को भी पता है कि इन राज्यों में हार जीत ही 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा तय करेगा.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...

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