प्राइम टाइम इंट्रो : नोटबंदी के बाद मेहनत की कमाई बचाने की लड़ाई

प्राइम टाइम इंट्रो : नोटबंदी के बाद मेहनत की कमाई बचाने की लड़ाई

अपनी मेहनत की कमाई के पुराने नोट बदलवाने ये बुजुर्ग झुंझुनू से दिल्‍ली आए हैं

दिल्ली स्थित भारतीय रिजर्व बैंक के बाहर जमा लोगों की दास्तान नोटबंदी की सियासी कामयाबी के सामने कुछ भी नहीं है. फिर भी जब ऐतिहासिक कामयाबी की किताब लिखी जाएगी तो उम्मीद है ये लोग फुटनोट्स में दर्ज किये जायेंगे. फुटनोट्स मतलब किताब के पन्नों के सबसे नीचे लिखी छोटी छोटी जानकारियां. रिजर्व बैंक के बाहर जमा लोगों को पता है कि पुराने नोट बदलने की समय सीमा कब की ख़त्म हो गई है. फिर भी हर रोज़ यहां कई लोग जमा हो जाते हैं. रिजर्व बैंक की तरफ ऐसे ताकते हैं जैसे भगवान की तरफ देख रहे हों. अब प्रभु की कृपा होगी और तब उनके 500 और 1000 के रद्दी हो चुके नोट सोना बन जाएंगे. उत्तर प्रदेश की शानदार कामयाबी के पहले ही ये लोग मीडिया के कवरेज से बेदखल कर दिये गए हैं. ज़रूरी है कि इन्हें भी पराजित घोषित कर दिया जाए मगर ये लोग हैं कि हार मानने का नाम ही नहीं ले रहे.

बहुतों को पता है कि 31 मार्च तक सिर्फ एनआरआई के नोट बदले जाएंगे. एनआरआई या विदेशों में रहने वाले लोगों को भी परेशानियां हो रही हैं. उनमें से भी कइयों के अलग अलग कारणों से नोट नहीं बदले जा रहे हैं. मगर हम और आप सरकार से अंत अंत तक उम्मीद लगाए रहते हैं कि क्या पता उसे रहम आ जाए. क्या पता उसका दिल पसीज जाए और बाहर खड़े सभी लोगों को भीतर बुला ले और कह दे कि आपके नोट बदले जा रहे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के बाहर ये लोग जनवरी में आते रहे, फरवरी में आते रहे और मार्च में आते रहे. सबने रिजर्व बैंक को आख़िरी मौका दिया कि क्या पता जो धारक को अदा करने का वचन देता है वो अपने वचन पर कायम रहे. उनकी कमाई बर्बाद होने से बच जाए.

राजस्थान के मास्टर जी क्या गलती है. हर किसी का धन काला धन नहीं है. मेहनत की कमाई का रंग भी बदनाम हो गया. जिनके पास घोटाले के पैसे थे, वो आज भी कर्नाटक और मुंबई में धरे जा रहे हैं, जिनके पास पसीने की कमाई है वो रिजर्व बैंक के आगे खड़े होकर गिड़गिड़ा रहे हैं. इस उम्मीद में कि सरकार का दिल बड़ा है. वो रहम करेगी. 23 मार्च को जब राज्यसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजनीतिक दलों के चंदे के लिए छूट की सीमा बढ़ा दी, ये इंतज़ाम कर दिया कि अब कोई कारपोरेट चंदा देगा तो अपने बहीखाते में नहीं बतायेगा कि किसे चंदा दिया है. उस वक्त कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा कि उनकी पार्टी को चंदा नहीं मिल रहा है. तब वित्त मंत्री ने कहा था कि सरकार ने जो किया है उसके लिए बड़ा दिल चाहिए.

शायद इसलिए रिजर्व बैंक के बाहर जमा लोगों को सरकार से उम्मीद है. उन्हें पता है कि सरकार ने अंतिम फैसला ले लिया है फिर भी अंतिम वक्त तक उम्मीद क्यों छोड़े कोई. मीडिया ने भी इन लोगों को भुला दिया और यूपी हारने के बाद विपक्ष ने नोटबंदी के किसी भी मसले से तौबा ही कर लिया है. किसी भी बड़ी कामयाबी के जश्न और हताशा के बीच इन लोगों की कहानियां भी पुराने नोटों के साथ दफन हो रही हैं. हमने सोचा दफ़न होने से पहले कफ़न उठाकर देख लेते हैं, जो लोग अपने पुराने नोट को हाथ में लेकर रो रहे थे, वो कौन हैं.

90 साल की उम्र में किसी को भूलने की सज़ा कैसे दी जा सकती है. हरियाणा के मेवात की एक बूढ़ी महिला को अचानक याद आया कि 23000 कहीं रखे गए हैं. पुन्हाना गांव के सरपंच ने अंग्रेज़ी में एक हलफनामा टाइप करके दिया है कि श्रीमति जुमरत ओथा गांव की निवासी हैं. 90 साल की वृद्ध महिला हैं. ये प्रमाणित किया जाता है कि 24 मार्च को घर की सफाई करते वक्त उन्हें पुराने करेंसी के 23,000 रुपये मिले. ये भी प्रमाणित किया जाता है कि उक्त महिला काफी ग़रीब है. इनका और इनके परिवार का चरित्र काफी अच्छा है. इसलिए आपसे गुज़ारिश है कि उनके पुराने नोट बदल जाएं. सरपंच का नाम नोमान अहमद लिखा है. किसी ने सोचा होगा कि रिजर्व बैंक को अंग्रेज़ी ही आती होगी तो अंग्रेज़ी में प्रमाण पत्र दे दिया. सरकार और उसकी संस्थाओं से लोगों की उम्मीद की सीमा आप नहीं समझ सकते. सरकार के मना करने पर भी लोगों को आस रहती है कि वो एक बार हां कह देगी.

8 नवंबर को प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान किया था. कहा था कि 31 मार्च तक पुराने नोट बदले जा सकेंगे. 28 दिसंबर को सरकार अध्यादेश लाती है कि 31 मार्च की जगह 31 दिसंबर के बाद पुराने नोट नहीं बदले जा सकेंगे. उस दौरान कई बार घोषणाओं को बदला गया. अध्यादेश में कहा गया कि 31 दिसंबर के बाद से 500 और एक हज़ार के सारे पुराने नोट भारतीय रिजर्व बैंक की जवाबदेही नहीं रहेंगे. एक नियत समय में रिजर्व बैंक के पांच मुख्यालयों में कुछ शर्तों के साथ जमा करने की छूट दी गई. भारतीय या एनआरआई 9 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच बाहर थे तो वे पुराने नोट बदल सकते हैं. मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और नागपुर के भारतीय रिजर्व बैंक के दफ्तर में पुराने नोट बदले जान थे. एनआरआई को 30 जून तक नोट बदलने की सुविधा दी गई है. रिसर्च या संग्रह के लिए दस से पचीस पुराने नोट ही रखने की इजाज़त दी गई. उससे ज्यादा रखने पर दस हज़ार का जुर्माना लगेगा या उस पैसे का पांच गुना जुर्माना लगेगा.

सरकार के अध्यादेश के बाद कई तरह की याचिकाएं लेकर लोग अदालत पहुंच गए. अभी तक फैसला नहीं आया है. सुनवाई ही हो रही है. 7 मार्च और 21 मार्च को सुनवाई हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार को दो हफ्ते का समय दिया कि वे अपना जवाब दाखिल करें. नोट बदलने के नियम सरकार के हिसाब से सरल होंगे मगर आम आदमी जब बैंक के मैनेजर के सामने खड़ा होता है तो वो उन्हें माई बाप समझने लगता है. उसके लिए सारी सूचनाओं को समझना इतना आसान नहीं होता है.


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