यह ख़बर 06 अप्रैल, 2014 को प्रकाशित हुई थी

चुनाव डायरी : पीछे छूटता विकास का मुद्दा

शामली में एक चुनावी सभा में अमित शाह

नई दिल्ली:

बीजेपी महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी अमित शाह के बयान से विवाद खड़ा हो गया है। मुजफ्फरनगर के शामली में उन्होंने एक सभा में कहा, "उत्तर प्रदेश खासतौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव सम्मान के लिए और अपमान के बदले के लिए है। इसमें उन लोगों को सबक सिखाया जाएगा, जिन्होंने अन्याय किया।"

अमित शाह यहीं नहीं रुके। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के अगले ही दिन यूपी की 'मुल्ला मुलायम' की सरकार गिर जाएगी। कांग्रेस ने अमित शाह के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत की है। चुनाव आयोग ने उनके भाषण की सीडी मंगा कर उसकी जांच शुरू कर दी है। बीजेपी ने शाह के बयान का बचाव किया है।

शाह का बयान ऐसे वक्त आया है, जब पिछले एक हफ्ते में लोकसभा चुनाव का एजेंडा विकास और यूपीए सरकार के प्रदर्शन से हटकर सांप्रदायिकता बनाम धर्म निरपेक्षता के मुद्दे पर जाता दिख रहा है।

इसकी शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की जामा मस्जिद के शाही इमाम से मुलाकात से हुई, जिसमें उन्होंने बुखारी से सेक्यूलर वोट न बंटने देने की अपील की। इसके बाद शुक्रवार को बुखारी ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुसलमानों से कांग्रेस को वोट देने की अपील जारी की।

इसी बीच, बिहार और उत्तर प्रदेश की अपनी चुनावी सभाओं में नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार पर मांस निर्यात को बढ़ावा देकर 'गुलाबी क्रांति' करने का आरोप लगाया और गौ-हत्या का मामला भी उठा दिया। सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में अभी तक मोदी की 'विकास पुरुष' की छवि पेश करने वाली बीजेपी ने हिंदुत्व से जुड़े कट्टर मुद्दों को उठाना क्यों शुरू कर दिया है?

गौरतलब है कि मोदी ने उत्तर प्रदेश में अभी तक अपनी किसी भी रैली में राम मंदिर, धारा 370 या समान नागरिक संहिता का मुद्दा नहीं उठाया। वह विकास की बात करते हैं या फिर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के आपस में मिले होने की बात कहकर 'सबका' सफाया करने की अपील करते हैं।

क्या बीजेपी को लगने लगा है कि मुजफ्फरनगर जैसे दसियों दंगों से प्रभावित उत्तर प्रदेश में बिना हिंदुत्व का कार्ड खेले उसे वह चुनावी कामयाबी नहीं मिल सकती, जिसके जरिये वह लखनऊ से दिल्ली का रास्ता तय करना चाहती है।

दूसरी तरफ, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल सबके निशाने पर नरेंद्र मोदी हैं। इन पार्टियों में मुसलमान वोट अपने साथ लेने की होड़ लगी है, इसीलिए सब मोदी से लड़ते दिखना चाहते हैं। इन्हें लगता है कि गुजरात दंगों और मोदी की कथित सांप्रदायिक छवि को जितना ज्यादा उछाला जाएगा, मुस्लिम मतों का उतना ही अधिक ध्रुवीकरण उनके पक्ष में होगा।

मोदी की बोटी-बोटी करने का सहारनपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी इमरान मसूद का बयान और राहुल गांधी का मसूद की पत्नी के साथ मंच पर आना ये संयोग भर नहीं दिखता। बीएसपी और एसपी दोनों ही पार्टियों को मुस्लिम वोट चाहिए, ताकि वे जाति के अपने बेस वोट में इन्हें मिलाकर जीतने की स्थिति में आ सकें। समाजवादी पार्टी का 'माय' यानी मुसलिम-यादव वोट, तो बीएसपी का मुस्लिम-दलित वोट।

यह छिपी बात नहीं है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता रणनीतिक तौर पर मतदान करता है। उसकी प्राथमिकता उस उम्मीदवार को वोट देने की होती है, जो बीजेपी के उम्मीदवार को हराने की स्थिति में हो। जबकि बीजेपी की कोशिश इसी मुस्लिम ध्रुवीकरण के बदले में हिंदुओं का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में करने की होती है। बीजेपी नेता कहते हैं कि ऐसी लोकसभा सीटें जहां मुस्लिम मतदाता 40 फीसदी से अधिक हैं, उसके उम्मीदवार के जीतने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि उसे छोड़कर बाकी सभी दल मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारते हैं।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

ऐसे में विकास की बातें और दावे हवा होते दिख रहे हैं। सब पार्टियां अपने एजेंडे पर आती दिख रही हैं और ये एजेंडा दिखता है, हिंदू-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण में। चुनाव में इससे भले ही सियासी दलों को फायदा हो, मगर ये एजेंडा समाज पर गहरे जख्म छोड़ जाता है और इस बार भी ऐसा ही होता दिख रहा है।