वर्ष 1970 से 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है. पृथ्वी ही हमारा एकमात्र घर है - ज्ञात जीवन के सभी रूप केवल पृथ्वी पर मौजूद हैं. हम पृथ्वी के बाहर जीवन की तलाश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है. हमारी पृथ्वी जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण और जैव विविधता के नुकसान के गंभीर खतरों का सामना कर रही है, जिससे मानव जाति सहित पृथ्वी पर सभी जीवन के अस्तित्व को खतरा है. पृथ्वी पर जीवन इस तरह विकसित हुआ है कि यह पूरी तरह से संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है. पृथ्वी नामक इस विशाल पारिस्थितिकी तंत्र को कई छोटे-छोटे तंत्रों में विभाजित किया जा सकता है. यह परितंत्र विभिन्न जीवन रूपों के बीच विशेष संबंधों से बनते हैं. ऐसा ही एक महत्वपूर्ण संबंध है अंजीर के पेड़ और भारतीय ग्रे हॉर्नबिल के बीच. इस पृथ्वी दिवस पर, आइए हम शहरी वनों के पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में ग्रे हॉर्नबिल द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को समझें.
भारत में पाए जाने वाली आठ अन्य हॉर्नबिल प्रजातियों के विपरीत, भारतीय ग्रे हॉर्नबिल उतना चमकीले रंग का नहीं है. लेकिन, इसमें देहाती आकर्षण है. पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से वितरित, इसका पूरा शरीर भूरे रंग का होता हैं, और पेट हल्का भूरा या सुस्त सफ़ेद होता है. इसकी काली और पीली चोंच होती है, जिसके ऊपर एक टोप होता है, जो सींग के वक्रता के बिंदु तक फैला होता है. नर और मादा पक्षी बहुत समान दिखते हैं, लेकिन मादा थोड़ी छोटी होती है और उसकी टोप कम प्रमुख होती है. भारतीय ग्रे हॉर्नबिल भारत की सभी हॉर्नबिल प्रजातियों में दूसरा सबसे छोटा है, लगभग 60 सेंटीमीटर का. लेकिन शहर के बीच में पाए जाने वाले पक्षियों में यह काफी बड़ा है.
भारतीय ग्रे हॉर्नबिल शुष्क मैदानों, पर्णपाती जंगलों, तलहटी और खुले आवासों को तरजीह देता है. इसके आवास में सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष प्रजातियों में से एक अंजीर है. इनका पसंदीदा भोजन पके मांसल अंजीर हैं. भारतीय ग्रे हॉर्नबिल फल-प्रेमी हैं, अंजीर, जामुन, बेर और नीम के फलों पर दावत करते हैं. लेकिन वे विभिन्न प्रकार के कीड़ों, सरीसृपों और कृन्तकों को भी खाते हैं. इसके आकार को देखते हुए, कोई यह सोचेगा कि इसे देखना आसान होगा. लेकिन यह पेड़ की घनी डालियो के बीच आसानी से छिप सकता है. इसे खोजने के सबसे आसान तरीका इसकी 'कीक-कीक-कीक' की अचूक चीख.
अंजीर हॉर्नबिल की प्रजनन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भारतीय ग्रे हॉर्नबिल एकांगी होते हैं. इनके घोंसले का मौसम फरवरी से जून के बीच होता है. वे आम तौर पर अंजीर के घने पेड़ों पर छोटी गुहाओं में घोंसला बनाते हैं. हॉर्नबिल खुद गुहाओं को खोद नहीं सकते, इसलिए वे पेड़ों में मौजूदा छिद्रों पर निर्भर रहते हैं. उपयुक्त पेड़ों की अनुपलब्धता के कारण वे कृत्रिम घोंसले के बक्से या इमारतों में छेद का उपयोग घोंसले के रूप में करने के लिए मजबूर हो गए है. मादा हॉर्नबिल पेड़ के छेद में प्रवेश करती है और नर द्वारा आपूर्ति किए गए मिट्टी के छर्रों और अपने मलमूत्र से द्वार को बंद कर देती है, भोजन प्राप्त करने के लिए केवल एक छोटी-सी दरार खुला छोड़ती है. मादा द्वारा दो से चार अंडे दिए जाते हैं. नर हॉर्नबिल मादा और चूज़ों के लिए भोजन प्रदान करता है. जब चूज़े बड़े हो जाते हैं, तो मादा सीलिंग तोड़कर बाहर आती है. इस अवस्था में माता-पिता दोनों ही चूज़ों की देखभाल करते हैं.
ये पक्षी सही मायने में प्रकृति के हरित इंजीनियर हैं. वे दूर-दूर तक विभिन्न पेड़ों के बीजों को फैलाकर पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये पेड़ कई अन्य पक्षियों के घर हैं, जैसे - कॉपरस्मिथ बारबेट, बुलबुल, तोता, कोयल और आदि. जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ता है, शहरी स्थानों में पेड़ों के प्राकृतिक चक्र को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय ग्रे हॉर्नबिल जैसे फल-भक्षियों का अत्यधिक महत्व है. इनको मुख्य रूप से निवास स्थान के नुकसान और बड़े पेड़ों के कटने का खतरा है, जो भोजन और घोंसले दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. उनकी निरंतर उपस्थिति हमारे आसपास के पर्यावरण की गुणवत्ता या स्वास्थ्य को इंगित करती है. भारतीय ग्रे हॉर्नबिल निश्चित रूप से शहरी स्थानों और जंगलों का एक गुमनाम नायक है और हमारे बढ़ते शहरों में प्रकृति को बरकरार रखने में मदद करता है. तो इस पृथ्वी दिवस पर, आइए हम भारतीय ग्रे हॉर्नबिल का जश्न मनाएं और उनके आवासों को बचाने का संकल्प लें ताकि हमारे शहरी स्थान हरेभरे और स्वस्थ रहें.
हितार्थ रावल भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, भोपाल से वानिकी प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा हैं. वह वर्तमान में केयर इंडिया में काम कर रहे हैं, जो विकास क्षेत्र में एक प्रमुख गैर-सरकारी संगठन है. वह वन्यजीव संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए वन्यजीवों के बारे में कहानियां सुनाना पसंद करते हैं. यह लेख नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF) द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की पहल है. यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में जानने में रुचि रखते हैं, तो bit.ly/infoTheFlock से संपर्क करें.
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