यदि अभी चार राज्यों एवं एक केन्द्र शासित प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों को नरेंद्र मोदी की सरकार के पिछले दो सालों के कामों पर दिया गया जनमत मान लिया जाये तो निश्चित रूप से निष्कर्ष उनके पक्ष में जायेंगे। यदि इस सरकार के कामों की तुलना पिछली सरकार के कामों से करके उत्तर तलाशा जायेगा, तो यह उत्तर भी 'सफल एवं संतोषजनक कार्यकाल' का ही होगा। लेकिन अब हम आते हैं उन बातों पर, जो वाकई हुए हैं, और उन बातों पर भी, जो नहीं हुए, लेकिन होने चाहिए थे।
ऐसा लगता था, मानो कि पिछली सरकार 'काजल की कोठरी' में ही रह रही थी। यह कम बड़ी बात नहीं है कि उसी राजनीतिक प्रणाली में काम करते हुए अभी तक इस सरकार ने अपने कुर्ते पर काजल की एक हल्की सी लकीर भी उभरने नहीं दी है। मोदी सरकार राजनीति में पारदर्शिता (राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के दायरे में लाना) लाने की कोशिश करती हुई भले ही दिखाई न दे रही हो, लेकिन सरकार के सर्वोच्च स्तर के आर्थिक निर्णयों को पारदर्शी बनाने में सफल रही है।
काले धन के उत्पादन की प्रक्रिया की गति धीमी पड़ी
इसी प्रकार न तो काला धन कम हुआ है और न ही विदेशों में रखा काला धन देश में लौट पाया है, लेकिन काले धन के उत्पादन की प्रक्रिया की गति जरूर धीमी पड़ी है। जिस दिन भ्रष्टाचार में यह कमी प्रशासनिक स्तर पर दिखाई देने लगेगी, उस दिन से देश के विकास के इतिहास का एक नया पन्ना खुल जायेगा।
मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया जैसी योजनाओं से जगी आशा
'मेक इन इंडिया' तथा 'स्टार्ट अप इंडिया' जैसी योजनायें भविष्य की आर्थिक स्थितियों के प्रति आशा पैदा करती हैं। इनसे युवाओं में एक जोश भी आया है। लेकिन दुर्भाग्य से ये योजनायें अभी तक रोजगार उपलब्ध करा पाने में समर्थ नहीं हो पाई हैं। फिर भी आधारभूत संरचना तथा ऊर्जा के क्षेत्र में जिस तेजी और तन्मयता से कामों की शुरुआत हुई है, उसमें रोजगार की संभावनायें देखी जा सकती हैं।
'स्वच्छता अभियान' को जन आंदोलन का रूप दिया
भले ही कुछ लोग मोदी सरकार के 'स्वच्छता अभियान' को पूववर्ती सरकार की 'निर्मल ग्राम योजना' की 'नई पैकेजिंग' कहें, लेकिन इस सरकार ने जिस प्रकार इस योजना को एक जन आंदोलन का रूप दिया है, वह उसकी कार्यप्रणाली की अपनी विशिष्टता है। इसे एक 'राजनीतिक निर्णय का लोकतांत्रिकीकरण' कहा जा सकता है, जो जरूरी भी है। जनधन योजना, मुद्रा बैंक, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तथा राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना के पीछे यही जनतांत्रिक सोच काम कर रही है।
पाकिस्तान रक्षात्मक रुख अपनाने को विवश हुआ
पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध भले ही बेहतर न हुये हों, लेकिन पीएम मोदी ने विदेश नीति की अपरम्परागत शैली से उसे अन्तरराष्ट्रीय मंच पर ‘रक्षा की मुद्रा’ अख्तियार करने के लिए तो मजबूर कर ही दिया है। चीन को साधना वैसे भी किसी के लिए आसान नहीं है। लेकिन अमेरीका, जर्मनी, फ्रांस, जापान तथा आस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ भारत की बढ़ी हुई नजदीकियों ने विश्व में उसकी छवि में इजाफा किया है। विदेशों में रह रहे आप्रवासी भारतीयों को भावनात्मक स्तर पर देश से जोड़ने के उनके प्रयास भी रंग ला रहे हैं। हां, नेपाल के मामले में फिलहाल असफलता जरूर दिखाई दे रही है।
..लेकिन इस मुद्दे पर मिलेंगे माइनस मार्क
जिस एक बात को लेकर मोदी जी की सरकार की माइनस मार्किंग की जा रही है, वह है 'सबका साथ सबका विकास' के वादे के अनुरूप सामाजिक बुनावट को मजबूत न बना पाना। कारण चाहे जो भी रहे हों, लेकिन देश की परम्परागत समरसता में कुछ खटास आई है। शायद असम चुनाव की सफलता उनकी पार्टी को इस मामले पर नये, अधिक तार्किक एवं व्यावहारिक स्तर पर सोचने के लिए प्रेरित करे।
डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...
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This Article is From May 25, 2016
नरेंद्र मोदी सरकार के दो साल की 'बैलेंसशीट'
Dr Vijay Agrawal
- ब्लॉग,
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Updated:मई 25, 2016 16:58 pm IST
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Published On मई 25, 2016 13:45 pm IST
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Last Updated On मई 25, 2016 16:58 pm IST
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