(डॉ. विजय अग्रवाल जीवन प्रबंधन विशेषज्ञ हैं...)
'आंखों देखी' फिल्म के गज़ब के एक्टर संजय मिश्रा ने NDTV पर एक इंटरव्यू में बड़ी मजेदार बात बताई कि "एक का नाम 'पल' है, और दूसरी का 'लम्हा' है..." दरअसल, संजय मिश्रा की दो बेटियां हैं, और 'पल' तथा 'लम्हा' उनकी दोनों प्यारी बेटियों के नाम हैं... इसके बाद उन्होंने बहुत खूबसूरत अंदाज़ में इस बात को दार्शनिक रूप देकर आगे जोड़ा, "...और मैं इन दोनों को जीता हूं..."
दरअसल, हमारी अपनी-अपनी ज़िन्दगियां ऊपरी तौर पर चाहे जैसी भी हों, लेकिन असल में तो वे वैसी ही होती हैं, जैसी हम अपने-अपने पलों को गुजारते हैं। छोटे-छोटे लम्हों के ये नन्हे-नन्हे बिन्दु आपस में जुड़-जुड़कर हमारे जीवन की तस्वीर बनाते हैं, और समय-समय पर उसमें तब्दीलियां भी करते रहते हैं। तो आइए, आज हम इस पर बातें करते हैं कि इन लम्हों को कैसे गुज़ारा जाए कि हमारी जिंदगी खुशनुमा हो जाए, जश्नों का सिलसिला बन जाए।
समय के साथ हमारा जो रिश्ता बनता है, उसका एक ही आधार होता है - कर्म। जीवन का हमारा एक भी पल ऐसा नहीं होता, जिसमें हम कुछ कर नहीं रहे होते हैं, फिर चाहे हम सो ही क्यों न रहे हों। सोना भी एक काम ही है। कर्म के साथ हमारा संबंध तभी खत्म होता है, जब सांसों के साथ हमारा संबंध खत्म होता है, और इस अंतिम सांस का लम्हा ही हमारी इस जिंदगी का अंतिम लम्हा होता है... फिर सब कुछ खत्म, सब कुछ शांत...
तो ज़ाहिर है कि यदि हमें अपने पलों को बेहतर बनाना है, तो वह केवल कर्म के जरिये ही संभव है। समय तो दिखता नहीं, वह तो केवल गुज़रता है, ठीक वैसे ही, जैसे रपटे पर से पानी गुजरता है, और शरीर को छू-छूकर गुजरती है हवा। तो क्या ऐसे में आपको नहीं लगता कि यदि हम अपने कर्म को ठीक कर लें, तो उसके ऊपर से गुजरने वाले पल भी अपने-आप ठीक हो जाएंगे...?
तो यहां सवाल यह है कि हम अपने कर्मों को कैसे ठीक करें कि जिंदगी का हर लम्हा मक्खन-सा कोमल, रुई-सा हल्का और मोगरे-सा खुशबूदार बन जाए। यह कठिन नहीं है, ऐसा किया जा सकता है, ऐसा किया ही जाना चाहिए।
हमारे यहां तीन तरह के योग के बारे में बताया गया है - ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग। यहां हम इन तीनों योगों के सिद्धान्तों को कर्म पर लागू करेंगे। समय के साथ हमारी जो भी, जैसी भी रिश्तेदारी होती है, वह केवल इसी के द्वारा होती है। चूंकि हम सभी हर समय कुछ न कुछ कर ही रहे होते हैं, इसलिए आप इस टेक्नीक को रोजाना छोटे-छोटे फालतू के कामों से लेकर सैटेलाइट बनाने जैसे बड़े-बड़े कामों तक पर लागू कर सकते हैं।
यह सिद्धांत बहुत सरल है। ज्ञानयोग का अर्थ है कि हम जिस भी काम को कर रहे हैं, उसके बारे में हमें अच्छा-खासा और पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए, फिर चाहे वह झाड़ू लगाने का ही काम क्यों न हो। कर्मयोग का मतलब है कि जिस काम का ज्ञान हो गया है, हमें उसे करना भी चाहिए। यदि कोई दुनिया का बेस्ट डॉक्टर है, लेकिन वह लोगों का इलाज नहीं कर रहा है, तो उसका यह ज्ञान किसी काम का नहीं। तीसरा है भक्तियोग, यानी श्रद्धा के साथ सम्पूर्ण समर्पण की भावना। ज्ञान प्राप्ति के बाद हमें काम करना ही नहीं है, बल्कि समर्पण की सर्वोच्च भावना के साथ करना है। इसमें खुद को वैसे ही लगा देना है, जैसे भक्त खुद को भगवान में लगा देता है।
जब हम इस रूप में किसी भी काम मे लगते हैं, तो इन तीनों योगों के योग से जो चौथा योग बनता है, वह है समययोग, और इस योग के बनते ही हमारे पल सुनहरे हो जाते हैं, मूल्यवान हो जाते हैं। हम इन पलों में समा जाते हैं, डूब जाते हैं, और जीवन अद्भुत हो उठता हैं। ये पल हमें अपनी संतानों की तरह प्यारे लगने लगते हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
This Article is From Oct 06, 2015
डॉ विजय अग्रवाल : समय को सुनहरा बनाने का नुस्खा
Dr Vijay Agrawal
- ब्लॉग,
-
Updated:अक्टूबर 06, 2015 23:19 pm IST
-
Published On अक्टूबर 06, 2015 23:05 pm IST
-
Last Updated On अक्टूबर 06, 2015 23:19 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
जीवन प्रबंधन, ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, समययोग, Life Management, Time Management, Optimum Use Of Time, Precious Moments