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This Article is From Sep 18, 2018

एक अबूझ शख्स की कई अनसुलझी दास्तानें

Dr Vijay Agrawal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 18, 2018 17:26 pm IST
    • Published On सितंबर 18, 2018 17:26 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 18, 2018 17:26 pm IST
आइए, पहले जानते हैं कि बातें क्या हैं, और वह भी यह जाने बिना कि ये किसने कही हैं...

-  अमेरिका विकसित नहीं बल्कि विकासशील देश है.
- विश्व व्यापार संगठन की गलत नीतियों के कारण चीन आर्थिक महाशक्ति बनता जा रहा है.
- अमेरिका के सैन्य खर्च का ज़्यादातर हिस्सा दूसरे देशों की रक्षा में खर्च होता है, जिनमें कई देश ऐसे हैं, जो अमेरिका को पसंद नहीं करते.
- मैं नहीं जानता कि आप उस शख्स के खिलाफ महाभियोग कैसे लगा सकते हैं, जिसने इतना अच्छा काम किया हो.
- मैं बता रहा हूं कि यदि कभी भी मेरे खिलाफ महाभियोग लग गया, तो बाज़ार चरमरा जाएगा, और इसके बाद हर कोई बहुत गरीब हो जाएगा.


आपको यह समझने में कोई विशेष दिक्कत नहीं हो रही होगी कि दंभ से भरी इस तरह की अनैतिहासिक एवं अनर्गल बातें कौन कह सकता है. सूत्र (क्लू) के रूप में यहां इतना बताना ही पर्याप्त होगा कि निश्चित रूप से ऐसा व्यक्ति विश्व के किसी शक्तिशाली राष्ट्र से जुड़ा ही हो सकता है.

वे अमेरिकी अपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की लगभग पौने तीन साल की कार्यशैली से खुश हो सकते हैं, जो 'अमेरिकन फर्स्ट' के नारे पर विश्वास करते हुए अपने देश के लिए एक 'स्वर्णयुग' की कल्पना कर रहे हैं, लेकिन सच यह है कि अधिकांश अमेरिकी उनकी कार्यशैली से बेहद नाखुश हैं. यह अकारण नहीं है कि वहां अब तक जितने भी राष्ट्रपति हुए हैं, उनमें वह इतनी जल्दी अलोकप्रिय होने वाले प्रथम राष्ट्रपति हैं.

यदि कोई भी नेता अन्य देश में लोकप्रिय या अलोकप्रिय होता है, तो उसमें उस देश के अपने हितों और अहितों का तत्व सबसे प्रमुख होता है, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सामान्यतया अंतरराष्ट्रीय संबंधों के इस मूल से भी परे जा चुके हैं. इसका मुख्य कारण यह जान पड़ता है कि शायद उनका चित्त स्थिर नहीं है. एक मिनट पहले वह यदि कोई रुख लेते हैं, तो अगले ही पल वह ठीक उसका विपरीत रुख ले लेते हैं. इसके कारण वह अब केवल दुनिया के लिए ही नहीं, बल्कि अपने साथ काम करने वालों के लिए भी भरोसे के आदमी नहीं रह गए हैं.

उनके अपने निवास व्हाइट हाउस में उनकी सलाहकार रहीं ओमारोसा मेनीगाल्ड न्यूमन ने उनके बारे में एक बड़ी चटखारेदार बात लिखी है. सलाहकार होने के कारण उन्होंने ट्रंप को बहुत करीब से देखा है. ट्रंप ही उन्हें अपने सलाहकार के रूप में लेकर आए थे और उन्होंने ही कुछ समय बाद उन्हें व्हाइट हाउस से बाहर का रास्ता दिखा दिया. ऐसा उन्होंने न्यूमन के साथ ही नहीं किया है, बहुत से अन्य लोगों के साथ भी किया है. उनके साथ काम करने वालों को यह भरोसा नहीं है कि ऐसा उनके साथ नहीं हो सकता.

न्यूमन ट्रंप को एक ऐसा आत्मकेंद्रित व्यक्ति बताती हैं, जिसका स्वयं पर ज़रा भी नियंत्रण नहीं है. वह लिखती हैं कि "अपने से बाहर कुछ न सोच पाने वाला यह इंसान ऐसे मानसिक पतन का शिकार है, जो घृणा से प्यार करता है, निन्दा और अपमान उसे ऊर्जा देते हैं, तथा भ्रम और अराजकता की स्थिति में जिसे खुशी मिलती है..."

भले ही इसके जवाब में ट्रंप न्यूमन को 'नौटंकीबाज़' तथा उसकी बातों को 'घटिया बातें' बताएं, लेकिन कुछ समय पहले ब्रिटेन की महारानी एवं कनाडा तथा जर्मनी के सरकारों के प्रमुखों के साथ उन्होंने जिस तरह का अपमानजनक व्यवहार किया है, तथा उनके अन्य निर्णयों को देखते हुए न्यूमन की बातों को झुठलाना कठिन ही नहीं, असंभव है. यही कारण है कि आज ट्रंप केवल दुनिया के लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने देश के लिए भी इतने अविश्वसनीय लगने लगे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह जान पड़ती है कि उन्होंने न तो इतिहास पढ़ रखा है कि वह दुनिया को जान सकें और न ही वे अमेरिका के पिछले सवा दो सौ साल के छोटे-से इतिहास से ही परिचित हैं कि वह अमेरिका को समझ सकें. अन्यथा वह कभी अमेरिका के 'फ्री माइंड, फ्री मार्केट' तथा 'फ्री जनता' के मूलभूत सिद्धांतों पर इतनी बुरी तरह आक्रमण नहीं करते. उन्हें मालूम होता कि अमेरिका के निर्माण में अमेरिका से अधिक अमेरिका से बाहर के लोगों का योगदान रहा है. आज अमेरिका जिस संपत्ति के टीले पर बैठा हुआ है, वह मूलतः प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के विनाश से इकट्ठी की गई दौलत है.

भले ही ट्रंप आज दुनिया के धनी उद्योगपतियों में से एक हैं, लेकिन लगता तो यही है कि उन्हें अर्थशास्त्र की भी जानकारी नहीं है. यदि होती, तो वह कभी अमेरिका जैसे देश को विकासशील बताने जैसी मूर्खतापूर्ण बातें नहीं करते. वह अमेरिका को 'डेवलपिंग नेशन' बता रहे हैं, तो उन्हें चाहिए कि वह फिर अफ्रीका के पिछड़े और एशिया के विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को कोई नाम दें.

कुल मिलाकर लगता यही है कि डोनाल्ड ट्रंप कुछ भी कह सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं. इसलिए दुनिया को चाहिए कि वह भविष्य की समस्त संभावनाओं और आशंकाओं को ध्यान में रखकर भविष्य के स्वरूप पर विचार करे.

डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

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