नोटबंदी के फैसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अगला रुख क्या होगा? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब किसी को मालूम नहीं, लेकिन सब लोग इस मुद्दे पर कयास लगा रहे हैं. जहां तक खुद बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष नीतीश कुमार का सवाल है, उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि 31 दिसम्बर के दिन अगर आप जवाब का इंतजार कर रहे हैं तो आपको निराश हाथ लगेगी. हां लेकिन नोटबंदी पर वे अपनी पार्टी के नेताओं से विचार विमर्श करेंगे और जरूरत पड़ी तो अर्थशास्त्रियों की भी राय लेंगे. लेकिन उससे पहले बिहार में गुरु गोविंदसिंह की 350 वीं जयंती पर प्रकाश उत्सव और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के फेस्टिवल का सफलतापूर्वक आयोजन करना उनकी पहली प्राथमिकता है. इसका मतलब साफ है कि इन दोनों महत्वपूर्ण आयोजनों का समापन 13 जनवरी तक हो पाएगा. इसके बाद ही नोटबंदी पर नीतीश कुमार के नए रुख का पता चल पाएगा.
हालांकि नीतीश कुमार ने फिलहाल अपनी राजनैतिक प्रतिद्वंदी पार्टी बीजेपी और सत्ता में सहयोगी नोटबंदी के घोर विरोधी राष्ट्रीय जनता दल व कांग्रेस को स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी दबाव में इस मुद्दे पर अपने कदम को लेकर पुनर्विचार नहीं करने वाले हैं, इसलिए नोटबंदी का सैद्धांतिक समर्थन जहां कायम है वहीं इसके क्रियान्वयन को लेकर सार्वजनिक मंचों से सवाल भी जारी हैं. सोमवार को नीतीश कुमार ने दो टूक शब्दों में केंद्र की कैशलेस अर्थव्यवस्था को भी इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह भारतीय संस्कृति और मिजाज के विपरीत है.
दरअसल नीतीश मात्रा मीडिया की खबरों के आधार पर इस मुद्दे पर अपने कदम पर फेरबदल नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें मालूम है कि लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बिहार के मजदूर वापस अपने गांव लौटने पर मजबूर हैं ..विकास के काम पर प्रतिकूल असर पड़ा है. लेकिन इसके बावजूद जनता में आक्रोश नहीं है.अगर गुस्सा भी हैं तो वे आंदोलित नहीं हैं. नोटबंदी के कारण बिहार में कहीं भी कानून-व्यवस्था की समस्या देखने को नहीं मिली. यह भी एक संयोग है कि नीतीश कुमार नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही बिहार के विभिन जिलों में अपनी निश्चय यात्रा के सिलसिले में घूम रहे हैं. उन्हें अब तक जनता में असंतोष और आक्रोश की कोई एक भी ऐसी घटना नहीं देखने मिली जिससे वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर हों. और अगर लोगों की परेशानी बढ़ी है और कामकाज ठप है तो यह नीतीश से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए चिंता का कारण है क्योंकि खामियाजा उन्हें उठाना पड़ेगा. फिलहाल जनता दल (यू) के नेताओं का आकलन यही है कि धीरे-धीरे लोगों की समस्या कम हो रही है और गरीब वंचित लोगों का तबका बड़े लोगों की परेशानी से खुश है.  
नीतीश कुमार के स्टैंड से उनके सहयोगियों में बेचैनी है. कांग्रेस नीतीश कुमार के स्वभाव से परिचित हो न हो लेकिन लालू यादव को मालूम है कि नीतीश कुमार पर दबाब डालकर उनका स्टैंड बदलवाना आसान नहीं है. हालांकि लालू यादव निश्चित रूप से नीतीश कुमार के नोटबंदी पर समर्थन के रुख के कारण कांग्रेस पार्टी से अपने सम्बन्ध मधुर करने में सफल रहे हैं और साथ ही मुस्लिम समुदाय में भी उनकी पैठ और मजबूत हुई है. नीतीश जानते हैं कि मुस्लिम समुदाय हर मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक रुख की अपेक्षा रखता है जिसे पूरा कर पाना संभव नहीं. नीतीश हर मुद्दे पर केवल एक वर्ग के लोगों को खुश रखने के लिए विरोध का झंडा उठाने से इसलिए भी परहेज करेंगे क्योंकि उन्हें इस जमीनी सच का भलीभांति अहसास है कि इसका एक काउंटर ध्रुवीकरण भी होता है जो भारतीय जनता पार्टी की सारी नाकामी और वादों को पूरा न करने की विफलता को ढंक सकता है.
नोटबंदी पर नीतीश के रुख में नरमी को उनके भविष्य के राजनीतिक मेलमिलाप से जोड़कर अटकलें लगाई जा रही हैं लेकिन राजनीति के जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार जब बीजेपी के साथ सरकार चला रहे थे तब भी कांग्रेस के साथ हर मुद्दे पर तलवारबाजी करने से परहेज करते थे. इसलिए जब बीजेपी जीएसटी का विरोध कर रही थी तब वे उसके समर्थन में थे. वहीं राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर उन्होंने प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था. लेकिन उसका मतलब यह नहीं था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से जनता दल (यू) के साथ उनका कोई तालमेल था. नीतीश जानते हैं कि राजनीति में विश्वसनीयता एक बड़ी  पूंजी होती है और उनके पास अपनी छवि के अलावा कामकाज और राजनैतिक मुद्दों पर स्टैंड लेने की ही पूंजी है.
नीतीश जो भी कदम उठाएं, उन्हें मालूम है कि केंद्र को बेनामी सम्पत्ति के खिलाफ कर्रवाई की उनकी मांग पर आज नहीं तो कल कदम उठाना पड़ेगा और इसका श्रेय उन्हें ही जाएगा. इसके अलावा बिहार में अपने 11 वर्षों के शासनकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक से एक कई कदम उठाए गए, जैसे भ्रष्ट अधिकारियों के घर जब्त कर उसमें स्कूल खोलना. हालांकि मार्केटिंग के अभाव में यह बातें बिहार में ही सीमित रह गईं. अब उन्हें लग रहा होगा कि अगर मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ गंभीर है तो बिहार मॉडल को देर सबेर अपनाना होगा और शायद यह नोटबंदी के मुद्दे पर उनके कदम का असल प्रमाण होगा.
                               
                                
                                
                            
                            This Article is From Dec 21, 2016
नोटबंदी : नीतीश कुमार का 30 दिसम्बर के बाद कैसा रुख होगा?
                                                                                                                                                                                                                        
                                                                मनीष कुमार
                                                            
                                                                                                                                                           
                                                
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                                                                            Published On दिसंबर 21, 2016 22:52 pm IST
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