कुडनकुलम परमाणु संयंत्र की फाइल तस्वीर
भारत और पाकिस्तान भले एक-दूसरे से बात न कर रहे हों लेकिन दुनिया की कूटनीति में ऐसा कुछ घटित हो रहा है जिसके कारण पाकिस्तान भारत के हर कदम पर बात कर रहा है। न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में प्रवेश को लेकर भारत की कूटनीतिक सक्रियता के कंधे पर पाकिस्तान भी सवार होना चाहता है। कोशिश भारत कर रहा है, लेकिन पाकिस्तान चाहता है कि जब भारत को मिलेगा तो इसी वजह से उसे भी मिलना चाहिए। मंगलवार को अमरीका ने एक बार फिर से न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत के प्रवेश को लेकर सभी सदस्य देशों से अपील की है। एनएसजी 48 देशों का समूह है जो सदस्य देशों से बाहर किसी को परमाणु टेक्नोलॉजी नहीं देता है। इसमें सदस्यता आम सहमति से मिलती है। एक सदस्य ने ना कह दिया तो मंज़ूरी नहीं मिलेगी। व्हाइट हाउस के प्रेस सेक्रेटरी जोश एर्नेस्ट ने संवाददाताओं से कहा है कि हम मानते हैं और यह कुछ समय से अमरीका की नीति रही है कि भारत सदस्यता के लिए तैयार है और अमरीका से सभी भागीदार सरकारों से अपील करती है कि वे भारत की दावेदारी का समर्थन करें।
2010 में जब अमरीकी राष्ट्रपति भारत आए थे तब भी कहा था कि वे एनएसजी में भारत की सदस्यता का समर्थन करेंगे। 2010 में ही फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोज़ी ने भारत यात्रा पर समर्थन की बात की थी। 2014 में भी बात हो रही है। चीन ने सोमवार को कहा है कि भारत अगर न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में शामिल होता है तो उसे चीन के हितों पर कोई असर नहीं पड़ता है। चीन की तरह भारत भी परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण की वकालत करता है और परमाणु हथियारों के पहले इस्तमाल न करने की संधि को लेकर प्रतिबद्ध भी है। इससे सिविल परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ा भी सकता है। ऐसा चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' में छपे एक लेख में कहा गया है। लेखक चाइना वेस्ट नार्मल यूनिवर्सिटी के सेंटर फार इंडियन स्टडीज़ के निदेशक है। Long Xingchun का कहना है कि भारत न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में शामिल होने का प्रयास कर रहा हैस मगर पाकिस्तान को रोकने की कोशिश भी कर रहा है। यह बताते हुए कि परमाणु अप्रसार में पाकिस्तान का रिकार्ड खराब है।
भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने प्रेस कांफ्रेंस में साफ-साफ कहा था कि भारत न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में किसी अन्य देश के प्रवेश का विरोध नहीं करेगा। भारत चाहता है कि आवेदनों पर विचार योग्यता के आधार पर हो। योग्यता के आधार वाली बात क्या वही है, जो चीन के विश्लेषक कह रहे हैं कि भारत मानता है कि परमाणु अप्रसार के मामले में पाकिस्तान का रिकार्ड ख़राब है। औपचारिक रूप से भारत की विदेश मंत्री ने यही कहा है कि भारत चीन का समर्थन लेने का प्रयास करेगा। चीन एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध नहीं कर रहा है। वो सिर्फ प्रक्रिया की बात कर रहा है। मैं आशावान हूं कि हम चीन को भी मना लेंगे। मैं 23 मुल्कों से संपर्क में हूं। एक दो ने कुछ सवाल उठाये थे लेकिन मुझे लगता है कि सहमति है। हम कोशिश कर रहे हैं कि इस साल के अंत तक भारत न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप का सदस्य बन जाए।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुन्यिंग के बयान से लगता है कि चीन ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। प्रवक्ता का कहना है कि 23 और 24 जून को दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की प्लेनरी सम्मेलन में भारत की सदस्यता का मसला एजेंडे में शामिल ही नहीं है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जिन सदस्यों ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, एनएसजी में उनके लिए दरवाज़े अभी भी खुले हैं। इस मसले पर चर्चा हो सकी है। चीन की प्रवक्ता ने एक ऐसी बात कह दी जिससे संभावनाएं खत्म तो नहीं होती हैं, मगर कूटनीति की दुनिया में इस तरह के तीर चलते रहते हैं। यह भी समझना चाहिए।
परमाणु अप्रसार के बहाने भारत को थोड़ी और मेहनत कराने की कोशिश लगती है। चीन के अलावा टर्की और दक्षिण अफ्रीका भी मानते हैं कि परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किये बिना भारत को एनएसजी की सदस्यता नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन चीन, टर्की और दक्षिण अफ्रीका ने 2008 में एनएसजी के 48 सदस्य देशों के साथ सिविल न्यूक्लियर कारोबार के समझौतों को मंज़ूरी दे दी थी। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए। चीन ने जिन अमरीका का हवाला दिया है उसने तो भारत की सदस्यता की अपील की है। जब पत्रकारों ने व्हाइट हाउस के प्रवक्ता से पूछा कि क्या अमरीका ने चीन से भारत के बारे में बात की है तो जवाब आया कि अन्य सदस्य देशों से बात की है। यह नहीं कहा कि चीन से बात हुई है। इस जवाब से यह ज़ाहिर होता है कि अमरीका भारत के लिए अन्य देशों से बात कर रहा है। क्या चीन पाकिस्तान के लिए अन्य देशों से बात कर रहा है या सार्वजनिक बयान देकर अपनी चाल चल रहा है। कूटनीतिक मामलों को सिर्फ इस लिहाज़ से नहीं देखना चाहिए कि नतीजा कैसा आने वाला है। इस तरह भी देखिये कि नतीजे के पहले कौन किसके लिए कैसी चाल चल रहा है।
पाकिस्तान के अखबारों में भी एनएसजी के मसले पर चीन के बयानों का खूब विश्लेषण हो रहा है। वहां के प्रतिष्ठित अखबार डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा है कि पाकिस्तान मानता रहा है कि पाकिस्तान के बिना भारत को सदस्यता देने से दोनों देशों के बीच सैन्य परमाणु प्रतियोगिता शुरू हो जाएगा। जिसके कारण चीन भारत की सदस्यता को रोकना चाहता है। साथ ही चीन भारत की अमरीका से बढ़ती नज़दीकियों को भी ग़ौर से देख रहा है। डॉन अखबार ने लिखा है कि पाकिस्तान ने क्या अपनी रणनीति सही बनाई है। पाकिस्तान देर से जागा लगता है। क्या पाकिस्तान ने भारत की तरह कोशिश की है। डॉन ने पाकिस्तान की रणनीति को काफी अस्तव्यस्त बताया है। अखबार ने चीन पर पाकिस्तान की बढ़ती निर्भरता को लेकर आशंकाएं जताई हैं कि सिर्फ इसी दम से क्या पाकिस्तान अपने हितों को साध सकता है।
भारत की कूटनीतिक सक्रियता सिर्फ अमरीका या चीन तक ही सीमित नहीं है। विदेश सचिव बीजिंग का दौरा कर आए हैं। सियोल भी जा सकते हैं। प्रधानमंत्री खुद अमरीका के अलावा स्विटजरलैंड और मैक्सिको गए थे। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी कहा है कि वे 23 मुल्कों के संपर्क में हैं। गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपित शी जिनपिंग की ताशकंद में मुलाकात होने की संभावना है। 2008 में चीन अन्य सदस्य देशों के एतराज़ की आड़ ले रहा था लेकिन अमरीका के दबाव में जब एक-एक कर सभी देश हां करते गए तो चीन ने भी हां कह दिया। मगर इस बार चीन अपना पोज़िशन सार्वजिनक करते जा रहा है।
द वायर डॉट इन वेबसाइट में एंड्रूय स्मॉल ने लिखा है कि इस बार जानकारों को लग रहा है कि चीन अंत तक अपनी राय नहीं बदलेगा। अब सवाल है कि चीन कहां तक विरोध करेगा। एनएसजी के नियम के तहत वो सिविलियन न्यूक्लियर ट्रेड नहीं कर सकता, लेकिन तब भारत को अपवाद के रूप में छूट दी गई थी। इसके कारण भारत वैधानिक तरीके से परमाणु ईंधन और टेक्नोलॉजी के मामले में कारोबार कर सकता है। भारत के अखबारों में इस मसले पर छपे लेख पढ़ेंगे तो लगेगा कि चीन के अलावा करीब-करीब सभी देशों ने समर्थन कर दिया है। चीन के अखबारों को पढ़ेंगे तो लगेगा कि ज्यादातर देश भारत का विरोध कर रहे हैं।
न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत की सदस्यता का फैसला जून या जुलाई में नहीं होने वाला है। विदेश मंत्री ने भी कहा है कि इस साल तक भारत सदस्य बनने की कोशिश करेगा लेकिन भारत ने अपनी सक्रियता से क्या चीन और पाकिस्तान को कुछ ज्यादा बेचैन तो नहीं कर दिया है। इन अवरोधों से क्या यह समझा जाए कि सदस्यता मिली तो दुनिया के कूटनीतिक मानचित्र पर भारत की स्थिति 49वें मुल्क बनने से कहीं और ज़्यादा मज़बूत हो जाएगा। कुछ तो है जिसे लेकर पाकिस्तान परेशान है। चीन बेचैन है और भारत शांत है। एनएसजी के अलावा भारत ने कुछ और तार तो नहीं छेड़ दिए हैं जिस पर हमारी नज़र जा नहीं पा रही है।