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This Article is From Mar 03, 2016

चीकू, तू तो मेरे 'भगवान' से भी 'विराट' होता जा रहा है रे...!

Sanjay Kishore
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 04, 2016 12:56 pm IST
    • Published On मार्च 03, 2016 20:21 pm IST
    • Last Updated On मार्च 04, 2016 12:56 pm IST
वह ऐसा ही दिन था जब उमंग उन्माद बन जाता है, उत्साह उग्र हो उठता है। रोमांच को फिर से परिभाषित करने की जरूरत पड़ जाती है। राजनैतिक और कूटनैतिक शह-मात का हिसाब 22 गज की जमीन पर बराबर करने की कोशिश की जाती है। मैदान पर खिलाड़ियों के बीच प्रतिद्वंद्विता और तल्ख़ी माहौल में तड़के का काम करते हैं। जीत से कम किसी को कुछ भी मंजूर नहीं होता। स्टेडियम में दर्शकों की सांसें पल-पल थमती और अटकती रहती हैं तो टेलीविजन पर करोड़ों दिल अपनी धड़कनों को काबू में नहीं रख पाते। कई कमजोर दिलों की सांसों की डोर टूट भी जाती है।

बात भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच की हो रही है। एशेज़ की लोकप्रियता "परिष्कृत" (सॉफ़िस्टिकेटेड) है तो भारत-पाक मैचों की दीवानगी में एक तरह की "अनगढ़ता" (क्रूडनेस) है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि खिलाड़ियों पर कितना दबाव होता होगा।

तारीख 27 फरवरी 2016 : शेरे बांग्ला स्टेडियम। मीरपुर, ढाका।
एशिया कप का माहौल भी कुछ ऐसा ही था। पाकिस्तान को भारत ने सिर्फ़ 83 रन पर समेट दिया। मोहम्मद आमिर को मालूम था कि स्पॉट फिक्सिंग का कलंक धोने के लिए इससे बेहतर मौका और मंच नहीं मिल सकता। लिहाजा उन्होने गेंदों से पिच पर आग लगा दी। पहले ही ओवर में आमिर ने रोहित शर्मा और अजिंक्य रहाणे को आउट कर दिया। स्कोर बोर्ड पर 8 रन जुड़ते-जुड़ते सुरेश रैना भी पैवेलियन में थे। इस नाज़ुक और नाटकीय स्थिति के बावज़ूद उस दिन ऐसा नहीं लगा कि भारत मैच जीत नहीं पाएगा। पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने भी कहा कि उन्हें कभी ऐसा लगा ही नहीं कि हम मैच हार जाएंगे। क्या आपको भी ऐसा लगा? उस दिन जो लोग विराट कोहली के चेहरे पर दृढ़ता और हावभाव में सकारात्कता को पढ़ पाए होंगे, उन्हें उनके आत्मविश्वास में जीत नज़र आई होगी।

तारीख 1 मार्च 2016 : शेरे बांग्ला स्टेडियम। मीरपुर, ढाका।
श्रीलंका के 138 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम इंडिया ने 16 रन पर 2 विकेट गंवा दिए। क्रीज़ पर आए विराट कोहली। 47 गेंदों पर 56 रन बनाकर नॉट आउट रहते हुए मैच में जीत दिलाकर ही लौटे।

दबाव में बड़े से बड़े खिलाड़ी बिखर जाते हैं लेकिन महान खिलाड़ी नहीं। विराट कोहली उसी महानता के पथ पर हैं। विराट कोहली को मैदान पर आपा तो खोते हुए आपने अक्सर देखा होगा लेकिन क्या आपने यह देखा है कि उनके गुस्से का सकारात्मक असर उनकी बल्लेबाजी पर पड़ता है? गेंदबाज अक्सर बल्लेबाज की एकाग्रता तोड़ने के लिए उन्हें गुस्सा दिलाने की कोशिश करते हैं। विराट को गुस्सा तो आता है लेकिन इससे उनकी बल्लेबाजी और निखर कर आती है।

विराट कोहली की शख़्सियत में एक तरह की जिद है। हर हाल में जीत के लिए एक जज़्बा है। आखिरी गेंद तक लड़ने और ईंट का जवाब पत्थर से देने के उनके अंदाज पर देश फिदा हुआ जा रहा है। जब 'स्लेज़िंग' के बाद विराट का गुस्सा फूटता है तो देश को नए एंग्री यंग मैन पर नाज़ होता है। हजारों युवा क्रिकेटरों की तरह विराट कोहली भी सचिन तेंदुलकर को अपना आदर्श मानते रहे हैं।

सचिन तेंदुलकर ने जो किया उस पर कोई सवाल नहीं है। सदी शुक्रगुज़ार है कि उसने सचिन तेंदुलकर को खेलते हुए देखा। 24 साल तक मैदान पर बादशाहत और दिलों पर भी राज किया। उन्होंने अपनी बल्लेबाजी और अपनी कामयाबी के साथ अपने अंदाज और अपने व्यवहार से विश्व क्रिकेट को अपना मुरीद बना लिया। गेंद और बल्ले के इस खेल- क्रिकेट को हमेशा के लिए बदल दिया। क्रिकेट को सचिन का ऋणी होना चाहिए कि उन्होंने इस खेल को चुना। क्रिकेट से सचिन की पहचान बनी तो सचिन से क्रिकेट की शान बढ़ी। आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं। बल्लेबाजी का शायद ही कोई रिकॉर्ड है जो सचिन के नाम न हो। सर डॉन ब्रैडमैन के रिकॉर्ड तक तो नहीं पहुंच पाए लेकिन खुद डॉन ने कहा कि वे सचिन में अपनी झलक देखते हैं। किसी क्रिकेटर के लिए इससे बड़ी शाबासी क्या हो सकती है!

सचिन की बल्लेबाज़ी में कलात्मकता थी। देखने वालों के लिए उनके खेल में उमंग थी। वक्त के लिए ठहराव था। उनके फॉर्म का पैमाना दूसरे खिलाड़ियों से अलग था। हर बार शतक से कम की उम्मीद नहीं रहती थी। सूनी सड़कें और खाली दफ़्तर उस 'मैस्तरो' के "मैजिक" के प्रति मंत्रमुग्धता थी जिसे मास्टर ब्लास्टर नाम दिया गया। प्रशंसकों के लिए तो वे भगवान ही बन गए।

लेकिन क्या सचिन तेंदुलकर 125 करोड़ उम्मीदों के दबाव के तले हर बार वह प्रदर्शन कर पाए जितनी उनमें प्रतिभा थी? क्या वे हार की पटकथा को जीत के 'क्लामेक्स' में बदल पाए? कुछ सवाल असहज और विस्फोटक बनते जा रहे हैं। इन सवालों के खड़े होने के पीछे है भारत के टेस्ट कप्तान 27 साल के विराट 'चीकू' कोहली।

क्या आपको भी नहीं लगता कि 'चीकू' क्रिकेट के भगवान से भी विराट बनता जा रहा है? टीम जब संकट में होती थी तब क्या सचिन तेंदुलकर वह भरोसा दिला पाते थे जो विराट कोहली के क्रीज़ पर आने से मिलता है? क्या कोहली सचिन से बड़े मैच विनर नहीं बनते जा रहे हैं?

आपको याददास्त को थोड़ा टटोलते हैं। बात बारबेडास टेस्ट की है। 1997-98 में टीम इंडिया को जीत के लिए चौथी पारी में सिर्फ 120 रन बनाने थे। सचिन के रहते टीम से यह रन नहीं बन पाए। 1999 में चेन्नई टेस्ट में पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने दूसरी पारी में 405 मिनट बल्लेबाजी की और 136 रन बनाए। सातवें विकेट के रूप में आउट हुए। आश्चर्यजनक रूप से भारत 12 रन से वह मैच हार गया।

हालांकि क्रिकेट एक टीम गेम है और इसमें किसी एक बल्लेबाज को जीत और हार के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। लेकिन मौजूदा बल्लेबाजों में शतक के साथ सबसे बड़े मैच विनर विराट कोहली ही हैं।

बल्लेबाज़           शतक का जीत में योगदान    कुल शतक        जीत प्रतिशत
सर डॉन ब्रैडमैन          22                                 29              75.8%
मैथ्यू हेडन                  30                                 40              75.0%
स्टीव वॉ                     26                                  35             74.3%
रिकी पॉन्टिंग               52                                 71             73.2%
विव रिचर्ड्स                23                                 35             65.7%
विराट कोहली              23                                 36             63.89    
महेला जयवर्धने            34                                 54             62.97
कुमार संगाकारा           37                                 63             58.74%
ज़ैक कैलिस                 34                                 62             54.83
सचिन तेंदुलकर            53                               100             53.0%
ब्रायन लारा                  24                                 53             45.2%
    
वेस्टइंडीज़ के महान बल्लेबाज सर विवियन रिचर्ड्स कहते हैं कि विराट उनकी तरह विस्फोटक बल्लेबाजी करते हैं। वनडे में सबसे तेज     7 हजार रन और सबसे तेज 25 शतक पहले ही वे अपने नाम कर चुके हैं। सचिन के शागिर्द की नजर उनके बाकी कीर्तिमानों पर भी है। भक्त भगवान से बड़ा होता जा रहा है तो खुशी भी सबसे ज्यादा भगवान को ही हो रही होगी।

दिलों को गर सचिन जीतते आए हैं तो आने वाला वक्त शायद विराट कोहली को सबसे बड़ा मैच विनर कहेगा। फिलहाल विराट कोहली दुनिया के सर्वत्रेष्ठ बल्लेबाज हैं इसमें शक की कोई बात नहीं।

संजय किशोर एनडीटीवी के खेल विभाग में एसोसिएट एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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