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This Article is From Sep 10, 2012

क्या कार्टून बनाना देश के साथ गद्दारी है...

Himanshu Shekhar Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 19, 2014 15:53 pm IST
    • Published On सितंबर 10, 2012 21:20 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2014 15:53 pm IST

कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के ख़िलाफ़ इतनी सख्त कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं।

असीम त्रिवेदी के पक्ष में अलग−अलग दलों के लोग और सामाजिक कायकर्ता खड़े हो चुके हैं। उनका कहना है लोकतंत्र में बोलने की आज़ादी पर इस तरह का पहरा नहीं हो सकता।

सरकार का कहना है बोलने की आज़ादी ठीक है लेकिन राष्ट्रीय प्रतीकों की मर्यादा का खयाल रखा जाना चाहिए।

सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने सोमवार को कहा कार्टूनिस्ट आर्टिस्ट होते हैं। उन्हें संवैधानिक लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें भारत गणराज्य के प्रतीकों को अपने कार्टूनों का आधार या विषय नहीं बनाना चाहिए।

उधर, कार्टूनिस्ट मानते हैं अंग्रेजों के ज़माने से चले आ रहे एक कानून की बिना पर ऐसी कार्रवाई लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है।

हिन्दुस्तान के कार्टूनिस्ट राजेंद्र धोड़पकर ने एनडीटीवी से कहा असीम पर देशद्रोह का आरोप लगाना मूखर्तापूर्ण है यह लोकतांत्रिक तरीका नहीं है। अभिव्यक्ति के मामलों को पुलिसिया तरीके से नहीं निपटाना चाहिए।

कुछ अरसा पहले ममता बनर्जी का कार्टून आगे बढ़ाने की सज़ा भुगत चुके अंबिकेश महापात्र इसे सरकार की बढ़ती असहनशीलता के तौर पर देखते हैं।

कानून के जानकारों के मुताबिक प्रतीक चिह्नों का ऐसा इस्तेमाल कानूनी तौर पर गलत हो सकता है लेकिन लोकतंत्र की आज़ादी का सवाल ज्यादा अहम है। कानून के जानकार संजय पारेख मानते हैं देशद्रोह का प्रावधान संविधान से हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि इसका दुरुपयोग हो रहा है।

असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी के बाद अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमा तय करने को लेकर देश में एक नई बहस छिड़ गई है। इस विवाद के सामने आने के बाद मुख्य तौर पर दो तरह के सवाल उठ रहे हैं... पहला क्या बोलने की आज़ादी असीमित होनी चाहिए और  दूसरा कि क्या इस तरह के मामलों से निपटने के लिए मौजूदा कानून पुराने हो चुके हैं।

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