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This Article is From Jun 24, 2016

कैमरन की नैतिकता... क्या भारतीय नेता सीख लेंगे?

Sushil Kumar Mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 24, 2016 21:18 pm IST
    • Published On जून 24, 2016 21:18 pm IST
    • Last Updated On जून 24, 2016 21:18 pm IST
“सुप्रभात, देश ने एक बड़ी लोकतांत्रिक प्रकिया में हिस्सा लिया है। ब्रिटेन के लोगों ने यूरोपियन यूनियन छोड़ने का निर्णय ले लिया है और हमको इसका सम्मान करना चाहिए। इस परिणाम पर कोई संदेह नहीं होनी चाहिए। गर्व और सम्मान के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि मैं छह साल तक इस देश का प्रधानमंत्री रहा, देश के हित और स्थिरता के लिए एक नए नेतृत्व की जरूरत है।” यह था ब्रिटेन के प्रधानमंत्री  डेविड कैमरन के भाषण का एक हिस्सा। ब्रिटेन के लोगों के यूरोपियन यूनियन छोड़ने के पक्ष में वोट देने के बाद डेविड कैमरन ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है। हालांकि नए प्रधानमंत्री के बनने तक वह इस पद पर बने रहेंगे और अपनी जिम्मेदारी निभाते रहेंगे। अपने भाषण के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कई बार भावुक होते हुए नजर आए। प्रधानमंत्री की मर्जी के खिलाफ ब्रिटेन के लोगों ने वोट दिया। कैमरन चाहते थे कि ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन में बना रहे।  

अगर कैमरन चाहते तो प्रधानमंत्री के पद पर बने रह सकते थे। लेकिन उन्होंने ब्रिटेन के लोगों के निर्णय को सम्मान देते हुए अपना पद छोड़ दिया। सन 2015 में कैमरन लगातार दूसरी बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने।  चुनाव के दौरान ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन छोड़ने को लेकर काफी चर्चा हुई थी और चुनाव प्रचार के दौरान कैमरन ने वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी जीतेगी तो ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन में रहना है या नहीं उसे लेकर रेफरेंडम लाएंगे। अपने वादे को पूरा करते हुए प्रधानमंत्री कैमरन रेफरेंडम लाए और इसी रेफेरेंडम ने उनको प्रधानमंत्री पद छोड़ने पर मजबूर किया। ब्रिटेन के कई क्षेत्र के लोगों ने वोट दिया जिसमें कैमरन के खुद के क्षेत्र के लोग भी शामिल थे । हैरानी की बात यह थी कि प्रधानमंत्री के खुद के इलाके के करीब 46 प्रतिशत लोगों ने कैमरन की इच्छा के खिलाफ वोट दिया।

प्रधानमंत्री कैमरन के इस निर्णय की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। नैतिकता को आधार मानते हुए प्रधानमंत्री का पद उन्होंने कुर्बान कर दिया। सिर्फ ब्रिटिश के प्रधानमंत्री नहीं, दुनिया के कई ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं जिन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया है। कुछ दिन पहले आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिगमुंडर गुन्नलाउगस्सोन ने पनामा पेपर्स में अपना नाम आने के बाद तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया था। अगर वह चाहते तो जांच रिपोर्ट आने तक इंतजार कर सकते थे। गुन्नलाउगस्सोन आइसलैंड के लिए काफी अच्छा काम कर रहे थे। 2008 की मंदी के बाद आइसलैंड की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका थी। करीब एक साल पहले फर्जी डिप्लोमा डिग्री को लेकर माल्डोवा के युवा प्रधानमंत्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। वह सिर्फ चार महीने के लिए माल्डोवा के प्रधानमंत्री बन पाए। जाते-जाते वह यह कहकर गए थे कि वह मैनेजर हैं, राजनेता नहीं और राजनीति के झगड़े से वह दूर रहना चाहते हैं। उनका कहना था कि वह नहीं चाहते कि शिक्षा बहस का कारण बने और देश का नुकसान हो।

इस तरह कई देशों के बड़े-बड़े नेता नैतिकता के आधार पर अपने पदों की कुर्बानी दे चुके हैं।  लेकिन भारत जैसे देश में ऐसा देखने को नहीं मिलता है। दुनिया के सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत में रोज एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। लेकिन ज्यादातर नेता इस्तीफा तो बहुत दूर की बात नैतिकता को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हुए अपना हित पूरा करते हैं।

सुशील कुमार महापात्र NDTV इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...

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