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This Article is From Apr 13, 2017

उपचुनाव परिणाम आम आदमी पार्टी और तृणमूल के लिए लाए सबक...

Rajeev Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 13, 2017 19:51 pm IST
    • Published On अप्रैल 13, 2017 19:44 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 13, 2017 19:51 pm IST
दिल्ली और देश में हुए 10 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी का जलवा कायम है. यह जीत बीजेपी की है या फिर पीएम मोदी यह फर्क अभी भी कोई नहीं कर सकता. लेकिन सच्चाई यही है कि जीत पीएम मोदी के नाम पर बीजेपी को मिल रही है. बीजेपी की जीत विपक्षी दलों को यह साफ संकेत दे रही है कि उन्हें अपनी कार्यशैली में बदलाव की जरूरत है. लोगों में नरेंद्र मोदी के नाम पर बैठता विश्वास अन्य राजनीतिक दलों के लिए शुभ संकेत नहीं जान पड़ता. यह चुनाव यदि सबसे बड़ा संदेश किसी के लिए लाया है तो वह है ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और दिल्ली की अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी.

पश्चिम बंगाल की एक सीट कांठी दक्षिण पर उपचुनाव हुआ. पश्चिम बंगाल हमेशा से लेफ्ट दलों का गढ़ रहा है. लेकिन अब ममता बनर्जी ने अपनी अच्छी खासी पैठ बनाई है और लोगों के भीतर पार्टी और अपनी सादगी के दम पर अपने प्रति भी लोगों की आस्था जगाई है. लेकिन बंगाल की जिस सीट पर जीत भले ही टीएमसी की रही लेकिन वहां भी बीजेपी ने एक मायने में जीत दर्ज की है. इस सीट पर बीजेपी के मिले मत प्रतिशत ने यह साफ कर दिया है कि उसने लेफ्ट के वोटरों का दिल जीत लिया है. पिछले चुनाव में बीजेपी को यहां से केवल 9 फीसदी वोट मिले थे जो इस बार 22 फीसदी तक चला गया है जबकि लेफ्ट दलों को 24 फीसदी वोट मिला था जो खिसककर केवल 2 फीसदी पर अटका और लेफ्ट के दो प्रतिशत मत ममता बनर्जी के उम्मीदवार ने भी अपनी ओर आकर्षित किया है. इससे यह साफ हो रहा है कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में जल्द मत प्रतिशत के साथ सीटों पर जोरदार तरीके से दावेदारी करने जा रही है.

यह भी गौर करने की बात है कि तृणमूल प्रत्याशी ने 169381 वोट में से 95369 वोट हासिल किए. बीजेपी प्रत्याशी ने 52843 वोट हासिल किए और लेफ्ट प्रत्याशी केवल 17423 वोट पर सिमट गया. उधर, लेफ्ट के नेता भले ही बीजेपी को ज्यादा ताकतवर न समझ रहे हों, लेकिन पिछला विधानसभा चुनाव और अब उपचुनाव यह दर्शा रहा है कि उनकी जमीन खिसक चुकी है और उन्हें भी अपने तौर तरीकों में बदलाव लाना होगा, नहीं तो उनका भविष्य रसातल की ओर अग्रसर है.

वहीं, दिल्ली की एक सीट पर उपचुनाव हुआ. राजौरी गार्डन सीट पर आम आदमी पार्टी ने 2015 के चुनाव में भारी अंतर से बीजेपी अकाली प्रत्याशी को हराया था. इस सीट पर तब बीजेपी का ही कब्जा था. इस बार इस सीट पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी की जमानत जब्त होना सबसे बड़ी चिंता का विषय केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए बन गया है. इस चुनाव में खुद केजरीवाल के अलावा पार्टी के सभी कद्दावर नेताओं ने जनता के बीच जाकर वोट मांगा था. लोगों ने उनकी बात नहीं मानी, क्यों यह तो वोटर ही बताएंगे. लेकिन अरविंद केजरीवाल और पार्टी ने अपनी हार को स्वीकारते हुए कहा है कि लोग अभी नाराज हैं.

सवाल लोगों के अभी नाराजगी का ही नहीं है. इस उपचुनाव को 10 दिनों के भीतर दिल्ली में होने वाले तीनों एमसीडी के चुनाव के लिए रेफरेंडम के तौर पर देखा जा रहा है. यह अलग बात है कि आम आदमी पार्टी और उनके नेता इस बात को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और अभी दावा कर रहे हैं कि उनके दो साल के कार्यकाल और काम को देखकर जनता एमसीडी चुनावों में वोट डालेगी. उधर, बीजेपी और उनके नेता अभी से दिल्ली के एमसीडी चुनावों में भारी जीत की उम्मीद लगाए बैठे हैं. उनका मानना है कि केजरीवाल और पार्टी से लोगों का विश्वास उठ चुका है.  

हिमाचल की बात की जाए तो वहां कांग्रेस की सरकार है. ऐसे में जहां अकसर यह देखा गया है कि उपचुनावों में अकसर वह पार्टी बाजी मारा करती है जहां पर उस पार्टी की सरकार है. यहां पर बीजेपी के प्रत्याशी ने 24 हजार से ज्यादा मत प्राप्त किए वहीं कांग्रेस प्रत्याशी केवल 16 हजार मत के करीब पा सके. बावजूद इसके हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को पटखनी देकर बीजेपी प्रत्याशी की जीत यह दर्शाती है कि राज्य की कांग्रेस सरकार लोगों के दिल जीतने में अभी कामयाब नहीं हो पाई है. वैसे भी राज्य के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह आय और संपत्ति के मामले में जांच का सामना कर रहे हैं. हाल ही उनकी दिल्ली स्थित करोड़ों की प्रॉपर्टी को कोर्ट के आदेश के बाद जब्त किया गया है. भ्रष्टाचार के मामले उनके लिए दिक्कत तो पैदा कर रहे हैं, साथ ही पार्टी की छवि को दागदार कर रहे हैं और लोगों का विश्वास खोने की यह एक बड़ी वजह बनता जा रहा है.

राजस्थान में बीजेपी सरकार है और ऐसे में बीजेपी का धौलपुर सीट जीतना ज्यादा अचरज पैदा नहीं करता. यह सीट बीजेपी ने बीएसपी से छीनी है. उधर, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और दो सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कर यह दिखाया है कि पार्टी लोगों में अभी भी अपनी पैठ बनाए हुए है. ऐसा ही हाल असम में भी है. पहली बार बीजेपी ने उत्तर पूर्व के किसी राज्य में अपनी सरकार अपने दम पर बनाई तो वह असम है. यहां पर भी एक सीट का उपचुनाव यही दर्शाता है कि लोगों ने सत्ताधारी दल के प्रत्याशी को वोट दिया. ऐसा माना जाता है कि लोग सत्ताधारी दल के प्रत्याशी को इसलिए भी वोट देते हैं क्योंकि लोगों के आम जीवन से जुड़े सर्वाधिक काम राज्य सरकार और स्थानीय सरकार के मार्फत ही होते हैं.

मध्य प्रदेश की दो सीटों पर उपचुनाव हुए. एक सीट बीजेपी के पास थी वह बांधवगढ़ सीट जीत ही गई. दूसरी सीट पर कांग्रेस का कब्जा था यानी अटेर सीट. यहां पर देश शाम गिनती हुई. कांग्रेस के प्रत्याशी हेमंत कटारे मात्र 857 वोटों के अंतर से बीजेपी के प्रत्याशी को हराया.

कुल मिलाकर देखा जाए तो छह राज्यों में हुए उपचुनाव में चार में बीजेपी ने जीत दर्ज कर यह दिखाया है कि वह अभी भी राजनीतिक रेस में सबसे आगे है और उनकी अपनी राज्य सरकारें हों या फिर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार दोनों के काम पर वह इन चुनावों के जरिए लोगों की मुहर लगवाए जा रहे हैं.

(राजीव मिश्रा एनडीटीवी खबर में न्यूज़ एडिटर हैं)

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