हाशिम अंसारी का अपने जीवनकाल में अयोध्या में राम मंदिर के साथ मस्जिद भी बनना देखने का सपना अधूरा रह गया। बुधवार 20 जुलाई को सवेरे 5.30 बजे अयोध्या विवाद के सबसे पुराने पैरोकार हाशिम के निधन के साथ ही इस विवाद का सार्थक हल निकालने को लेकर उठती रही एक आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गई। उनकी उम्र 95 वर्ष थी। भले ही अयोध्या मामले का नाम आने पर उन्हें मुस्लिम पक्ष का पैरोकार होने की वजह से एक सम्प्रदाय का प्रतिनिधि माना जाए, लेकिन हाशिम ने कभी भी अयोध्या में राम मंदिर न बनाए जाने का समर्थन नहीं किया था, बल्कि उनकी इच्छा यही थी कि विवादित स्थल पर सरकारी जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बनाए जाएं।
अयोध्या भर में ‘चचा’ नाम से प्रख्यात हाशिम अपने कमजोर शरीर, बुलंद आवाज़ और ऊंचा सुनने के बावजूद अपनी राय बेबाक तरीके से रखते थे। पुराने शहर की एक गली में कभी एक छोटी सी दर्जी की दुकान चलाने वाले हाशिम अंसारी को पिछले दो दशकों से पूरी दुनिया में इस मामले के सबसे पुराने वादी होने की वजह से जो ख्याति मिली, उससे वे न कभी आत्म-मुग्ध हुए, और न ही उनके रहन-सहन में कोई बदलाव आया। आज भी उनका घर उतना ही साधारण है जितना कई वर्षों पहले था। उनके आस पास रहने वाले लोग बताते हैं कि भारत समेत दुनिया भर के तमाम देशों से पत्रकार और टीवी पत्रकार वहां आकर हाशिम से बात कर चुके हैं। अभी कुछ दिन पहले ही यूरोप की एक समाचार एजेंसी के कुछ लोग उनसे बात करके गए थे।
हाशिम अंसारी का जन्म 1921 में हुआ था और 28 साल की उम्र में, यानी 1949 में, जब विवादित स्थल पर अचानक रामलला की मूर्तियां प्रकट होने के बाद वहां राम जन्मभूमि होने का दावा उठा तब अंसारी पहली बार इससे जुड़े मुकदमे में 22 दिसम्बर 1949 को वादी बने थे। तब से लेकर आज तक हाशिम न केवल इस मुद्दे पर अपनी राय बेबाक तरीके से रखते आए हैं, बल्कि उन्होंने खुलकर प्रदेश और देश के लगभग सभी मुस्लिम राजनेताओं की आलोचना भी की। उनका मानना था कि यदि दोनों पक्षों की ओर से समझदारी दिखाई जाए तो इस मुद्दे का हल निकलना मुश्किल नहीं है, लेकिन कांग्रेस और अन्य दलों के मुस्लिम नेता इस मामले का हल निकलने के बजए इसे जिन्दा रखना चाहते हैं जिससे उनका राजनीतिक हित बना रहे। इस कड़ी में उन्होंने मुलायम सिंह यादव, मोहम्मद आज़म खान को भी आड़े हाथों लिया था।
कुछ महीनों पहले हुई एक बातचीत में उन्होंने कहा था कि वे रामलला को आज़ाद देखना चाहते हैं और यह भी चाहते हैं कि विवादित स्थल पर राम मंदिर बने, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मुस्लिम हित को अनदेखा किया जाए। इस बात पर निराशा जताई थी कि 'लोग महल में रहें और भगवान राम अस्थाई तम्बू के नीचे।' हाशिम का यह भी दावा था कि यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहल करते तो वह इस मसले के सौहार्दपूर्ण हल के लिए मदद करने को तैयार थे। उनका कहना कि वह चाहते हैं कि अपनी मौत से पहले मस्जिद और राम जन्मभूमि मामले का फैसला भी देख लें। पैरवी करते हुए वे इतना थक चुके थे कि साल 2014 में उन्होंने आगे पैरवी न करने का फैसला कर लिया था, हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि ऐसा उन्होंने मामले की धीमी गति से आगे बढ़ने की वजह से कहा था। इसके बावजूद उन्हें कोर्ट से ही न्याय की उम्मीद थी, क्योंकि कोर्ट से बाहर समझौते की उनकी कई कोशिशें सफल नहीं हो पाई थीं।
मुकदमे में वादी होने के बावजूद अयोध्या शहर में सभी लोग उनकी इज्ज़त करते थे क्योंकि उनके स्वभाव में कभी सांप्रदायिक भेदभाव नजर नहीं आता था। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि इस मामले की सुनवाई के दौरान हाशिम और हिन्दू पक्ष के पैरोकारों में महंत राम केवल दास और महंत राम चन्द्र परमहंस रिक्शे पर बैठ कर एक साथ कोर्ट जाते थे और साथ साथ ही चाय व नाश्ता भी करते थे। 13 साल पहले परमहंस की हुई मृत्यु पर आया उनका बयान ‘मेरा दोस्त मुझसे पहले चला गया’ आज भी लोगों की जुबान पर है। वर्ष 1992 में जब विवादित ढांचे को गिराया गया उसके बाद हुए दंगों में कुछ लोगों ने उनके घर को आग लगाकर उन्हें भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी, लेकिन स्थानीय लोगों ने–जिनमें हिन्दू भी शामिल थे–उन्हें दंगाइयों से बचाया और सुरक्षित स्थान पर रखा।
हाशिम पिछले कुछ महीनों से बीमार थे और उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने की वजह से कुछ दिन अस्पताल के आई.सी.यू. में भी भर्ती कराया गया था। हाशिम का एक बेटा और एक बेटी है, और पिछले कई वर्षों से उनका बेटा इकबाल ही अपने पिता से पूछे गए सवालों को उनके कान में ऊंची आवाज़ में बोलकर उनका जवाब लेता था, क्योंकि हियरिंग एड के बावजूद वह ठीक से सुन नहीं पाते थे। अयोध्या से मिली ख़बरों के अनुसार, उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही उनके घर पर लोगों का तांता लगना शुरू हो गया और इस पर अयोध्या के कई संतो और महंतो ने भी शोक व्यक्त किया। अंसारी के पुत्र इकबाल ने कहा है कि पैगम्बर जनाबे शीश की मजार के पास स्थित कब्रिस्तान में उनको सुपुर्द-ए-खाक किया जायेगा।
हाशिम के निधन पर मुलायम समेत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी शोक जताया है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष और प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञान दास ने भी शोक व्यक्त करते हुए कहा कि मंदिर मस्जिद विवाद का सुलह समझौते से हल चाहने वाला व्यक्ति चला गया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जफरयाब जिलानी ने कहा है कि अंसारी की मौत के बाद उनके बेटे को मुक़दमे में पैरोकार बनाया जा सकता है और यह फैसला खुद हाशिम अंसारी ने पहले ही कर दिया था। हालांकि कुछ जानकारों ने कहा है कि हाशिम की मौत से मुस्लिमों का पक्ष इस अयोध्या केस में कमजोर होगा क्योंकि इस केस में जितनी जानकारी अंसारी को थी, उतनी शायद ही किसी पैरोकार को होगी। उनकी मौत से इस केस में कोर्ट के बाहर किसी समझौते की सम्भावना भी कम हो गई है।
रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...
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This Article is From Jul 20, 2016
अधूरे ख्वाब के साथ चले गए अयोध्या के 'चचा' हाशिम अंसारी...
Ratan Mani Lal
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 20, 2016 15:16 pm IST
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Published On जुलाई 20, 2016 14:54 pm IST
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Last Updated On जुलाई 20, 2016 15:16 pm IST
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