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This Article is From Sep 18, 2015

बुंदेलखंड की डायरी : किसान, कर्ज, आत्महत्या और नाउम्मीदगी की कहानियां

Ravish Ranjan Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 18, 2015 10:12 am IST
    • Published On सितंबर 18, 2015 09:31 am IST
    • Last Updated On सितंबर 18, 2015 10:12 am IST
बुंदेलखंड से लौटे 2 दिन हो गए हैं लेकिन सितंबर की मौत को भूल नहीं पा रहा हूं। सितंबर से शरद ऋतु की शुरुआत मानी जाती है लेकिन बांदा से 45 किमी दूर पिपरिया गांव में सितंबर महीने में सितंबर नाम के किसान ने मौत को गले लगा दिया। वो अपने पीछे घर के नाम पर चंद कच्ची दीवारें...चार छोटे बच्चे..बिलखती मां और पत्नी समेत दो विधवा औरतों को छोड़ गया है।

हां..घर में संपत्ति है.. डेढ़ कुंतल गेंहू और एक इलाहाबाद ग्रामीण बैंक की पास बुक, जिसमें 2010 में पहली बार रकम जमा भी हुई और निकाली भी गई। 2010 में 5 हज़ार 2 सौ 26 रुपए जमा हुए। दो दिन बाद ही 5 हज़ार रुपए निकाल लिए गए थे। बीते पांच साल से पासबुक में पैसे तो नहीं चढ़े लेकिन उसके ऊपर कर्ज ढाई लाख से बढ़कर 4 लाख हो गया है। छह भाईयों की 12 बीघे जमीन गिरवी रखकर बैंक से कर्जे पर ट्रैक्टर लिया। कर्ज जमा नहीं हुआ सितंबर सिंह के साथ उसके छह भाई किसान से मजदूर हो गए। ठेके पर ली गई जमीन की खेती पहले ओला गिरने से बरबाद हुई, फिर मॉनसून की बेरुखी ने उसकी उम्मीदों में अकाल पैदा कर दिया। इसी 6 सितंबर को सितंबर ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इसी पिपरिया गांव के बाहर के खेतों में उड़द, मूंग और तिल की फसल से ज्यादा घास उगी है। मेरे भी बाबा किसान थे, मैने भी लंबा वक्त गांव में बिताया है लेकिन उड़द और तिल के खेतों में मवेशियों को चरते पहली बार देखा। हमें देखकर बगल के खेत में काम करने वाले सुमिरन अहिरवाल आ गए। बोले- क्या देख रहे हो भय्या हर गांव... हर खेत का कमोवेश यही हाल है... बिटिया सयान हो रही है... घरवाली बीमार रहती है खेत बिना बारिश सूख रहे हैं। हम तो शहर जाकर मजूरी भी नहीं कर सकते हैं। का करें...यही चिंता दिन रात खाए जाती है।
 

मेरे पास उन सवालों का कोई जवाब नहीं था। हमारे ड्राइवर किशोरी ने बात संभाली- चलो भाई भगवान है बस हिम्मत न हारो। आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं है, बस नेताओं के लिए मुआवजे की राजनीति है। मैं बांदा से झांसी की तरफ चल पड़ा। मेरे साथ किसानों के बीच काम करने वाले शिवनारायन सिंह और ग्रामीण पत्रकार प्रमोद चतुर्वेदी थे। एक के हाथ में मौत की डायरी थी, दूसरे के हाथ में आए दिन हो रही मौत और सूखे की तमाम खबरें। मैं झांसी के मऊरानीपुर के सबसे बड़े और समृद्ध गांव स्यावरी पहुंचा। गांव में पुराने जमाने की बनी कई हवेलियां कभी खुशहाली की गवाही देती थीं। इन्ही हवेलियों के बीच से मैं एक बड़े से मकान में दाखिल हुआ। यहां वीर सिंह पटेल नाम के किसान ने खुद को आग के हवाले करके मार डाला। बड़े से घर सात परिवार रहते हैं। वीर सिंह के हिस्से जर्जर छत की छोटी से कोठरी और एक टुकड़ा आंगन का आया था। इसी अप्रैल में उसने आत्महत्या कर ली। वीर सिंह पर पहले से ही 4 लाख का कर्जा था। बिटिया की शादी तय हो गई लेकिन जब पैसों का इंतजाम नहीं हो पाया तो उसने मौत को गले लगा लिया। मरने के बाद राज्य सरकार से सात लाख का मुआवजा मिला। अब इसी रकम से लड़की की शादी की उम्मीद बंधी है।

झांसी में इस साल 34 किसानों को मरने के बाद मुआवजा मिला है। लेकिन यहां के डीएम अनुराग यादव कहते हैं कि हम किसानों की आत्महत्या का कोई रिकॉर्ड नहीं रखते हैं। बुंदेलखंड में किसानों की आत्महत्या अब महज स्थानीय अखबारों की दो कॉलम की खबर के अलावा शायद कुछ नहीं है। बीते छह साल से लगातार सूखा पड़ रहा है। इस साल बुंदेलखंड में कमजोर मॉनसून को देखते हुए बड़े पैमाने पर तिल बोने की सलाह दी गई। किसानों ने उड़द, मूंग और तिल की फसल बोई भी। लेकिन, मॉनसून में महज 51 फीसदी हुई बारिश से किसानों की उम्मीदें सूखती जा रही है। स्यावरी गांव से आगे बढ़ने पर बम्हौरी गांव के तीन किसान भाई मिले। बारिश न होने के चलते 6 बीघे का खेत झुलस चुका था। उनके शरीर पर एक धोती और हाथों में तीखी धूप से बचने के लिए फटा छाता जरुर था।

प्राकृतिक आपदा और सूखे से जूझ रहे किसान आजकल हताशा के शिकार है। आमदनी के नाम पर सरकार से मिलने वाले थोड़े मआवजे या बैंक के किसान क्रेडिट कार्ड से कर्जा है। सरकारी आंकड़ों में बुंदेलखंड के सात जिलों के करीब 14 लाख किसानों पर एक हज़ार से ज्यादा का कर्जा है। लेकिन लाखों किसानों ने कई बैंक से दलाल के जरिए कर्जा ले रखा है। ऐसी की एक किसान द्रौपदी मिली। किसान क्रेडिट कार्ड पर चार साल पहले उन्होंने 30 हज़ार रुपए लिए थे जो अब ये बढ़कर 70 हज़ार का हो चुका है। द्रौपदी कहती हैं कि बैंक वालों का कहना है कि जमीन के बदले वो ज्यादा कर्जा दे सकते हैं। इसी कर्जे से पहला कर्जा चुकता करने का उनके पास विकल्प है। पर वो इस कर्जे के मकड़जाल में फंसना नहीं चाहती है।

एक ऐसे ही गांव जलालपुरा में हम पहुंचे। झांसी से 82 किमी दूर इस गांव में कर्जे में डूबे अमरपाल सिंह किसान की मौत दो महीना पहले सदमे से हो गई। अब उनके दो बेटे गुजरात मजदूरी कर कर्जा उतारने गए हैं। घर में उनकी बहू सोनम अपने दो छोटे बच्चों के साथ रहती है। इस गांव में 2 लाख से लेकर 15 लाख तक का कर्जा करीब-करीब हर घर पर है। अकेले सरकारी बैंकों पर इस गांव का करीब 11 करोड़ रुपए बाकी है। इन्ही ढेरों समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों को बुंदेलखंड पैकेज के रूप में 7266 करोड़ रुपए दिए। लेकिन हम आगे आपको बताएंगे कि कैसे किसानों को राहत के नाम पर बुंदेलखंड के पैसों से पार्क और मूर्तियां बनवाई गई। कोल्हुवा के जंगल जो कभी ददुवा डाकू का पनाहगाह थी। उस घने जंगल में महज कागजों पर 55 चेकडैम बना दिए गए।  

क्रमश...

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