कहीं पंचकूला जैसा न बन जाए 'पद्मावत' विवाद, उपद्रवियों को मिल रहा मुख्यमंत्रियों का साथ

फिल्म पद्मावत को लेकर पिछले कई महीनों से विवाद चल रहा है, या फिर यूं कहें कि विवाद फैलाया जा रहा है. करणी सेना और कुछ अन्य संगठनों के विरोध के बाद हमारे देश के नेताओं ने इस गर्म तवे पर अपनी रोटियां सेंकना शुरू कर दिया.

कहीं पंचकूला जैसा न बन जाए 'पद्मावत' विवाद, उपद्रवियों को मिल रहा मुख्यमंत्रियों का साथ

नई दिल्ली:

फिल्म पद्मावत को लेकर पिछले कई महीनों से विवाद चल रहा है, या फिर यूं कहें कि विवाद फैलाया जा रहा है. करणी सेना और कुछ अन्य संगठनों के विरोध के बाद हमारे देश के नेताओं ने इस गर्म तवे पर अपनी रोटियां सेंकना शुरू कर दिया. ऐसे तत्वों को रोकने की बजाय कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों में फिल्म को बैन करने और उसका विरोध करने की होड़ लग गई है. आने वाले उपचुनाव एवं चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह सब खेल खेला जा रहा है. एक खास तबके के वोट बैंक की खातिर आग में घी डालने का काम किया जा रहा है.

खैर अब बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की. पूरे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा कि फिल्म किसी भी राज्य में बैन नहीं होनी चाहिए.लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को भी चुनौती दी जा रही है. विरोध करने वाले तत्वों के साथ राज्य सरकारें भी कोर्ट में याचिका दायर कर चुकी हैं. मध्य प्रदेश और गुजरात सरकार ने दलील दी है कि फिल्म के रिलीज होने से शांति व्यवस्था भंग हो सकती है. लेकिन कोई इनसे पूछे कि शांति व्यवस्था बनाए रखना किसका काम है? इसका सीधा मतलब यह है कि अब इन विरोध करने वाले और प्रदेशों के मुखिया कहे जाने वाले ये चुने हुए लोग उपद्रवी सेनाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं.

कल नोएडा में राजपूत समाज के सैकड़ों लोगों ने तोड़फोड़ की और जमकर उपद्रव मचाया. कानून की धज्जियां सड़क पर उड़ती दिख रही थीं और कानून सो रहा था. वो कहते हैं ना कि जब सैंय्या भए कोतवाल तो फिर डर काहे का.....

अब आपको याद दिलाते हैं पंचकूला के बाबा राम रहीम वाले केस की. इसमें सरकार को सब कुछ पता होते हुए भी इतना बड़ा बवाल खड़ा किया गया. क्योंकि इसमें कहीं न कहीं राजनीतिक फायदा देखा जा रहा था. यह केस हम इसलिए याद दिला रहे हैं क्योंकि पद्ममावत विवाद भी इसी ओर जाता हुआ दिख रहा है. पंचकूला की स्थिति सीएम खट्टर के सामने साफ थी, कई दिनों पहले से मीडिया रिपोर्ट्स ने भी लगातार हंगामे को लेकर चेताया था. इस बार भी हिंसा शुरू हो चुकी है, जिस राज्य में विरोध हो रहा है वहां के सीएम सब कुछ जानते हैं. लेकिन जनता को सुरक्षा का भरोसा दिलाने की बजाए उन्हें डराया जा रहा है. 

लोगों को डराने के लिए तोड़फोड़ की शुरुआत भी हो चुकी है, अब देखना है कि कौन सा राज्य पंचकूला में तबदील होता है और कहां कितनी जानें जाती हैं. लेकिन हमेशा की तरह इसकी जिम्मेदारी लेने भी कोई आगे नहीं आएगा. जैसे गौ रक्षकों के नाम पर हिंसा करने वालों को पता होता है कि सत्ता हमारे साथ है, इसीलिए ज्यादा कुछ नहीं होगा. टीवी चैनल और अख़बार दो कॉलम की खबर लिखकर भूल जाएंगे और भोली भाली जनता को समझाने वाले हमारे नेता जी हैं ना... इसी तरह पद्मावत का विरोध करने वाली सेनाओं को भी पता है कि करोड़ों का नुकसान करने और कुछ लोगों की जान लेने के बाद भी उनका कुछ नहीं होगा... क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा तो उन्होंने धर्म, संस्कृति और अपने इतिहास की रक्षा के लिए किया है.

अब देखना यह होगा कि पेट्रोल बम और लाठियां लेकर निकली इस सेना के खिलाफ क्या कड़ी कार्रवाई होती है, या एक बार फिर नेता सब कुछ देखकर कांच की बनी इमारतों से मंद मंद मुस्कुराकर लोगों की इस लड़ाई का आनंद लेंगे और चुनावों में एक बार फिर आपके द्वार पर वोट मांगने आएंगे.....खैर अब आप ही फैसला करें कि इन सबके बीच कौन सही है और कौन गलत

मुकेश बौड़ाई Khabar.NDTV.com में सब-एडिटर हैं...

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