संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने पूरे पाकिस्तान को 'टेररिस्तान' कह दिया. भले ही यह सिर्फ कूटनीतिक बात हो लेकिन अपने देश के कई विद्वानों और वरिष्ठ पत्रकारों ने बड़ी संजीदगी से इसका आगा-पीछा देखा है. उन्होंने इस बयान को अच्छा नहीं माना. कुछ कहने के मुश्किल दौर में भी इस बयान के खिलाफ खुलकर लिखा गया. दरअसल एक समाज के रूप में हम ज्ञानी समाज कहलाते हैं. बड़े दूरअंदेशी. अपनी इस विशेषता के मुताबिक ही विद्वानों ने टेररिस्तान वाले बयान को खराब माना. सिर्फ फिजूल का और खराब ही नहीं माना बल्कि कूटनीतिक लिहाज़ से अपने लिए घातक माना. जितना और जिस तरह का विरोध हुआ है वह खुलकर हुआ है. सो उसे दोहराने की जरूरत नहीं. लेकिन इस बयान के कुछ और पहलू भी हैं. खासकर एक अपराधशास्त्रीय पहलू.
आतंकवाद को लेकर अब तक क्या रवैया रहा : इसे बार बार साबित करने की जरूरत नहीं कि पूरी दुनिया मान रही है कि आतंकवाद एक सार्वभौमिक समस्या बन चुकी है. दुनिया की महाशक्तियों में शुमार बड़े-बड़े देश तक इस समस्या से परेशान हैं और इससे निपटने का कोई निरापद तरीका नहीं ढ़ूंढ पाए. दुनिया ने बड़े-बड़े युद्ध भी देखे हैं. कई देश युद्ध लड़कर जीते हैं और फिर से लड़कर हारे भी हैं. युद्ध जीत कर भी उन्हें तबाह होते देखा गया. आखिर में उन्हें यही समझ में आया कि सर्वशक्तिमान कोई नहीं हो सकत और वैसे भी अंतरराष्ट्रीय नियमन में बंधे लगभग सभी देश एक दूसरे की संप्रभुता को मानने को राजी हो चुके हैं. ये रजामंदी यह ज्ञान या सबक मिलने के बाद बनी कि किसी की संप्रभुता तभी सुनिश्चित हो सकती है जब दूसरे की संप्रभुता सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया जाए. खासतौर पर एटमी और हाइड्रोजनी युग में तो बड़े-बड़े तानाशाह भी सीधे सीधे दूसरे देश पर अपना प्रभुत्व कायम करने की बातें नहीं करते. मसलन आजकल चार्चित उत्तर कोरिया के शासक भी अपनी सुरक्षा की चिंता का तर्क देते हुए ही दबंगई की भाषा बोलते हैं. अगर अपना मामला देखें तो सीमापार से आतंक को लेकरं अब तक हमारा यही रवैया रहा कि पाकिस्तान की वैध सरकार को कटघरे में खड़ा करके उस पर दबाव बनाएं कि वह अपनी ज़मीन का इस्तेमाल आतंकवादियों को न करने दे. आतंकवाद के मामले में हम अब तक यही काम करते रहे.
ये हैं वो महिला ईनम गंभीर जिन्होंने यूएन में पाकिस्तान को खुलेआम कहा टेररिस्तान
पता हैं मज़बूरियां : जिस तरह दुनिया के बड़े बड़े देशों को ऐसे मामलों में अपनी मज़बूरियां पता हैं उसी तरह हमें भी अपनी मज़बूरी का भान होना चाहिए. आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की प्रजाति की किसी लड़ाई का डिजा़यन या ज्ञान अभी ईजाद हो नही पाया. युद्ध का अनुभव तो हमें है लेकिन छद्म युद्ध का बिल्कुल नहीं. बहरहाल जब तक आतंकवाद से लड़ने का कोई डिजा़यन मिलता नहीं तब तक कूटनीतिक उपाय के सिवा कोई चारा भी नहीं. उसी कूटनीतिक उपाय के तौर पर हमारी तरफ से यह टेररिस्तान वाला बयान आया है. इसमें अलग कुछ है तो वह ये कि ये पारंपरिक कूटनीतिक उपाय से कुछ हटके है.
अपने ही लोगों पर अत्याचार करने वाला 'असफल राष्ट्र' है पाकिस्तान : UN में भारत
हासिल क्या होगा यह कहने से : एक पुश्तैनी रंजिश जैसे मामले में पाकिस्तान को यह कहने से उस पर क्या फर्क पड़ना है. इतिहास गवाह है कि उसके साथ हमने तीन युद्ध लड़े हैं और जब युद्धों को जीतकर भी लंबे वक्त के लिए ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ तो टेररिस्तान कहने से क्या हो जाएगा. पारंपरिक तर्क यह दिया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने पाकिस्तान की सरकार को बेनकाब किया जाएगा. बेनकाब करने की बातें हम कब से कर रहे हैं ? पाकिस्तान की सरकार और वहां की सेना पर आतकवादियों को शह देने के आरोप मुद्दत से लगाते चले आ रहे हैं और आजतक यह दिख नहीं पाया कि बारंबार आरोप लगाने की इस कवायद का कोई असर हुआ है.
UN में सुषमा के भाषण पर राहुल गांधी ने कसा तंज, ट्वीट कर साधा निशाना
नया क्या है यह कहने में : अब तक सिर्फ वहां की सरकार, वहां की फौज और वहां की खुफिया एजंसी को ही कटघरे में खड़ा करते थे. नया यह है कि इस बार हमने पूरे पाकिस्तान को आतंकवादी कहा है. इससे एक संदेश यह गया कि हम वहां के उस जागरूक समाज को भी आतंकवादी कह रहे हैं जो अपनी सरकार से लड़ भिड़ रहे हैं और खुद भी आतंकवाद का शिकार हो रहे हैं. इस तरह से हमने पाकिस्तान के समाज के सभ्य तबके को भी कंलकित कर दिया.
पीएम मोदी और राजनाथ सिंह ने की UN में सुषमा के भाषण की तारीफ, कहा-आपने भारत का मान बढ़ाया
अपराधी तक को भी कलंकित करने से क्यों बचा जाता है : अपराधशास्त्रीय अवधारणा है कि जहां तक संभव हो अपराधियों को भी कलंकित करने से बचाया जाए. इसलिए बचाया जाए ताकि उसके सुधरने की गुंजाइश बनी रहे. अपराधशास्त्रीय अनुभव यह है कि एक बार अपराधी होने का कलंक लगने के बाद वह उस दबाव से मुक्त हो जाता है जो उस पर स्वाभाविक रूप से रहता है कि वह ऐसा काम न करे जिससे वह कलंकित हो. यहां तो बात उससे भी ज्यादा बड़ी ये है कि आतंकवादियों के नाम पर पूरे देश को आतंकवादी कहने से वहां के सभ्य समाज की प्रतिक्रिया का जवाब देने में हम अड़चन में पड़ सकते हैं. यह भी अकादमिक तथ्य है कि सभ्य नागरिक पर एक अपराधी का स्टिगमा यानी कलंक लगने के बाद उसके सभ्य व्यवहार में भी बदलाव आने लगते हैं. इस तरह से हमने पाकिस्तान में उस सभ्य समाज के समर्थन को खो दिया है जो उम्मीद की किरण नहीं बल्कि भरी पूरी संभावनाएं थी. पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों, फिल्मी सितारों, खिलाड़ियों और कलाकारों के करोड़ों फैन हैं. चाहे वे थोड़े से हों लेकिन वहां पर भी मानवता के पक्षधर समाज एक तबका रहता है. ये भाविष्य के किसी अपेक्षित वातावरण के निर्माण की संभावना थे. लेकिन एक शब्द ने इस संभावना को ठिकाने लगा दिया.
संयुक्त राष्ट्र में सुषमा स्वराज के संबोधन के बाद बोला पाकिस्तान, 'भारत है आतंकवाद की जननी'
कहां-कहां विसंगतियां दिखेंगी अब : क्या अब हम यह कहेंगे कि भारत में टेररिस्तान के उच्चायुक्त और टेरेरिस्तान में भारत के उच्चायुक्त. क्या यह कहना संभव हो पाएगा कि संयुक्त राष्ट्र का एक सदस्य टेररिस्तान भी है. क्या हमारे इस नामकरण के बाद दुनिया के सभी देश पाकिस्तान से अपने राजनयिक संबंध विच्छेद कर लेंगे? भले ही छोटा हो, दुनिया के लिए पाकिस्तान भी एक बाजा़र है. क्या वे देश उससे व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध खत्म कर देंगे. ये सब मोटे मोटे तथ्य हैं जिनके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे टेररिस्तान कहा जाना दूसरे देशों को भी भाएगा नहीं या उन्हें अड़चन में डालेगा.
अब बात ये कि फिर आतंकवाद से निपटने के लिए क्या करें? इस विषय पर अपराधशास्त्री की अपनी छोटी सी हैसियत के लिहाज़ से एक आलेख इसी स्तंभ में 18 जुलाई 2016 को अपडेट हुआ था. उसे एक बार फिर पढ़ा जा सकता है.
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं…
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
This Article is From Sep 25, 2017
पाकिस्तान को 'टेररिस्तान' करार देने से क्या होगा हासिल...?
Sudhir Jain
- ब्लॉग,
-
Updated:सितंबर 25, 2017 15:49 pm IST
-
Published On सितंबर 25, 2017 15:43 pm IST
-
Last Updated On सितंबर 25, 2017 15:49 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं