20-21 मार्च को होली है, मगर होली जैसी खबर आ गई है. भारत की राजनीति में जूते का इस्तेमाल कम ही हुआ है. जूते की साइज़ न बता पाने के लिए हम माफी मांगते हैं. किस ब्रांड का जूता था यह भी नहीं बताने के लिए हम माफी मांगते हैं. देखिए हम कितने अच्छे हैं. हमने कुछ नहीं किया फिर भी माफी मांग रहे हैं. संत कबीर नगर में जो घटा है वो कबीर की हर वाणी के खिलाफ घटा है. संत कबीर नगर की इस घटना में न तो कबीर जैसा कुछ था, न ही संत जैसा. कुछ था तो सिर्फ जूता था. वीडियो के पहले कुछ शॉट में बातचीत हो रही है. सांसद शरद त्रिपाठी पूछ रहे हैं कि एक योजना के शिलापट में उनका नाम क्यों नहीं था. इसी बात को लेकर बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी और बीजेपी विधायक राकेश सिंह बघेल के बीच कहा-सुनी होती है और सासंद साहब कह देते हैं कि आपके जैसे विधायक पैदा किए हैं तो विधायक बघेल ने प्रतिक्रिया में कह दिया कि जूते मारेंगे. बस सासंद त्रिपाठी जूता निकालकर विधायक राकेश सिंह बघेल पर बरसाने लगते हैं. बचाव में विधायक बघेल ने भी हाथों से मारने का प्रयास किया मगर सासंद त्रिपाठी की तरह वे बदला नहीं ले पाए.
सांसद त्रिपाठी ने कई जूते मारे. उन्होंने उन गालियों का भी इस्तमाल किया, जिनके शुरू में मां और बहनों का ज़िक्र होता है. आए दिन सोशल मीडिया पर हम ऐसी गालियां झेलते रहते हैं. सांसद का जूता मारना महज़ उकसावे की कार्रवाई नहीं है. बल्कि उकसाया तो सासंद ने था. एक विधायक को यह कहना कि तुम जैसे विधायकों को पैदा किया है, यही अपमानजनक था. विधायक के स्वाभिमान पर हमला था. जूता मारने की इस घटना की एक और व्याख्या ज़रूरी है. जूता मारने का अधिकार कहां से आता है. उस जाति के अहंकार से आता है, जिसे लगता है कि आज भी सारा समाज उसकी पैदाइश है. उसने पैदा किए हैं. जूता मारने का अहंकार पूरी तरह से जातिवादी है. ये मुहावरा कहां से आया और किसके लिए आया, इसका सामान्य अध्ययन बता देगा कि यह जातिवादी अहंकार है. जिला कार्य योजना समिति की बैठक में तमाम अफसरों के बीच नाम नहीं होने को लेकर जूते का निकल आना, उस अहंकार का निकल आना है जो पैदा होता है जातिवाद के अहंकार से. सांसद ने न सिर्फ अपनी जाति के अहंकार और स्वघोषित अधिकार का प्रदर्शन किया, बल्कि विधायिका का भी अपमान किया है.
यूपी विधानसभा के स्पीकर को अपने विधायक के सम्मान में सासंद के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश देना चाहिए. आज ही कई अखबारों में मोदी सरकार का विज्ञापन छपा है कि लाल बत्ती संस्कृति खत्म कर दी. आज ही उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर से यह वीडियो आया है कि लाल बत्ती अभी खत्म नहीं हुई है. भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रवाद की पाठशाला में जहां जातिवाद के खिलाफ लैक्चर दिए जाते हैं, उस पाठशाला में सासंद त्रिपाठी को एक साल के लिए भेज दिया जाना चाहिए. अगर राष्ट्रवाद का असर इन्हीं पर नहीं होगा तो किस पर होगा. सीमा पर तनाव है और सांसद विधायक को जूता मार रहे हैं. इस दृश्य से सेना का मनोबल गिर सकता है. फिलहाल ज़िला प्रशासन इस घटना से सबक ले सकता है.
अब से कोई भी बैठक हो, जिसमें विधायक और सांसद आने वाले हों, उनके जूते उतरवा लिए जाएं. विधायक और सांसद को उचित दूरी पर बिठाया जाए. विधायक और सांसद के बीच कम से कम दो दारोगा का बैठा होना ज़रूरी है. अगर सांसद के पीछे चार समर्थक खड़े हों तो विधायक के पीछे भी उसी संख्या में समर्थकों के खड़े होने की इजाज़त होनी चाहिए. विधायक और सांसद से लिखवा लेना चाहिए कि गुस्सा आने पर गाली नहीं देंगे. और किस तरह से ये ख़बर आप तक पहुंचाए. यही हमारी पोलिटिकल क्वालिटी है. हंसने और रोने से बदलेगी नहीं. कब किस दल से ऐसे दृश्य आ जाएं पता नहीं. इसलिए आज बीजेपी की यह तस्वीर है कल किसी और की ऐसी तस्वीर आ सकती है. आप इसे नहीं बदल सकते तभी मैंने कहा कि जूता पहनकर मीटिंग में आने पर रोक लगा दीजिए. इसका मतलब यह नहीं पिस्तौल लेकर आने की छूट हो.
इस घटना के बाद से तो हथियार के साथ आने पर पूरी पाबंदी होनी चाहिए. आप शर्म करें, क्योंकि आप वही कर सकते हैं. ज़िला प्रशासन में अगर प्रशासन होने का इकबाल बचा होता तो पहली बार जूता चलते ही रोक लेता. मगर इकबाल इस कदर खत्म हो गया है कि जूता चलने का काम पूरा होने के बाद पुलिस के अफसर आते हैं और दोनों को अलग करते हैं. कोई वहां तय नहीं कर पाया कि रोक देने पर किसकी तरफ से एक्शन हो जाता है. भारतीय राजनीति के इस विकास की भी समीक्षा कीजिए. कायदे से शरद त्रिपाठी का टिकट काट देना चाहिए. उन्हें पार्टी से निकाल देना चाहिए और उनका जूता लेकर पार्टी के दफ्तर के बाहर रख देना चाहिए कि दोबारा इसका किसी ने इस्तेमाल किया तो उसका हाल शरद त्रिपाठी की तरह होगा.
अगर शरद त्रिपाठी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई, तो फिर जूता मारना राजनीति में प्रतिष्ठित हो जाएगा. शरद त्रिपाठी को भी अपने पांव और दिमाग़ से जूता निकाल देना चाहिए. पांव से पहले दिमाग़ से जूता निकाल देना चाहिए, क्योंकि जूता मारने के ख्याल का पहला सिग्नल उस दिमाग से आता है जो समाज के संकीर्ण संस्कारों से बना होता है. दिमाग़ में जब जूता होता है, तभी हाथ में जूता आता है. हम सभी कई बार जूता मारने की बात कह देते हैं. इससे बचना चाहिए. न खुद को जूते मारने की बात कहनी चाहिए और न ही किसी और को जूते मारने की बात कहनी चाहिए. हम सब बोल देते हैं. नहीं बोलना चाहिए. न बोलना चाहिए और न ही निकालना चाहिए. न चौराहे पर न तिराहे पर. एक उदाहरण से समझिए. पितृसत्ता सिर्फ पुरुषों में नहीं होती, वो औरतों में भी घुसी रहती है. इसलिए इसके खिलाफ लड़ाई पुरुषों के साथ साथ औरतों को भी लड़नी पड़ती है. इसी तरह जूता मारने की यह सामंती और जातिवादी भाषा से हम सबको लड़ने की ज़रूरत है.
अब आते हैं उस खबर पर जिस पर यकीन नहीं हो रहा है. रक्षा मंत्रालय से राफेल मामले की सीक्रेट फाइल चोरी हो गई है. सीरीयसली. रक्षा मंत्रालय की सीक्रेट फाइल चोरी हो गई है. वो भी रक्षा मंत्रालय से चोरी हुई है. ये किसी ने नहीं सोचा होगा कि तरह तरह के मोड़ से गुज़रता हुआ राफेल इस मोड़ पर पहुंच जाएगा. सरकार जिस फाइल को सीक्रेट बता कर दुनिया को नहीं बता रही थी, उसी सीक्रेट फाइल की रक्षा नहीं कर सकी और वो चोरी हो गई. सही में. सरकार ने यह बात सुप्रीम कोर्ट में कही है. विपक्ष चाहे तो सीक्रेट फाइल से ही इस्तीफा मांग सकता है, क्योंकि सरकार से इस्तीफा मांगने पर सेना का मनोबल गिर सकता है. फाइल ही इस्तीफा देकर वायुसेना के मनोबल को बचा सकती है.
हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच पर राफेल मामले में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई हो रही थी. प्रशांत भूषण हिन्दू अखबार में छपी एन राम की रिपोर्ट के आधार पर अतिरिक्त हलफनामा देना चाहते थे जिसे कोर्ट ने लेने से मना कर दिया. उस वक्त अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने विरोध किया और कहा कि ये लेख चोरी किए गए दस्तावेज़ों पर आधारित है. रक्षा मंत्रालय से पूर्व या वर्तमान कर्मचारी द्वारा चोरी किए गए हैं. ये गोपनीय दस्तावेज़ हैं और इन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है.
इस पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि सरकार ने क्या कार्रवाई की, 8 फरवरी को रिपोर्ट छपी है तो अटार्नी जनरल ने कहा कि पता करके बताता हूं. फिर दोबारा जब सुनवाई शुरू हुई तो उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय के पूर्व कर्मचारी या वर्तमान कर्मचारी ने चोरी की है, इसकी जांच हो रही है. जस्टिस जोसेफ ने पूछा कि अगर राफेल सौदे में भ्रष्टाचार किया गया है तो क्या सरकार ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के पीछे शरण ले सकती है? नहीं.
अटार्नी जनरल, हम जांच कर रहे हैं, आपराधिक मामला है, ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के खिलाफ है. जस्टिस के एम जोसेफ- मान लीजिए बड़ा अपराध हुआ है तो क्या आप राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में बचाव करेंगे? जस्टिस केएम जोसेफ- आपके तर्क के हिसाब से तो बोफोर्स केस में भी क्रिमिनल कोर्ट को कोई दस्तावेज़ नहीं मिलता. यह केस बंद हो जाना चाहिए? अटार्नी जनरल- सुप्रीम कोर्ट के हर वाक्य को अस्थिर करने में इस्तमाल किया जा सकता है.
प्रशांत भूषण ने सवाल किया कि इतने गंभीर मसले पर किसी थाने में एफआईआर नहीं हुई है. आपको याद दिला दें कि द हिन्दू में एन राम ने राफेल मामले में पहली रिपोर्ट पहली 18 जनवरी 2019 को आई थी. बताया था कि मोदी राज में 36 रफालों की कीमत 41 प्रतिशत अधिक थी. दूसरी रिपोर्ट 8 फरवरी 2019 को आई. रक्षा मंत्रालय ने विरोध किया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय को बातचीत नहीं करनी चाहिए. तीसरी रिपोर्ट 11 फरवरी 2019 को आई. राफेल डील से एंटी करप्शन प्रावधानों को हटा दिया गया. चौथी रिपोर्ट 13 फरवरी 2019 को आई. इंडियन निगोशिएटिंग टीम ने कहा था कि यूपीए के समय की शर्तें बेहतर थीं. पांचवी रिपोर्ट 6 मार्च 2019 को आई. बैंक गारंटी नहीं देने के कारण राफेल की कीमतें काफी बढ़ गई हैं.
हिन्दू अखबार के पत्रकार एन राम ने कहा कि आप भले ही चोरी का दस्तावेज़ कहें, हमें फर्क नहीं पड़ता. हमारे सोर्स के बारे में कोई नहीं जान सकता है. ये दस्तावेज़ खुद में बहुत कुछ कहते हैं. सुप्रीम कोर्ट में जो बहस चल रही है उस पर अंतिम फैसला नहीं आया है. 14 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. सीबीआई जांच से इनकार कर दिया था. उस आदेश में सीएजी रिपोर्ट को लेकर विवाद हुआ था. अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सीबीआई जांच के आदेश नहीं दिए जा सकते हैं. इससे देश को भारी नुकसान होगा. वेणुगोपाल ने कहा कि हिन्दू अखबार के खिलाफ ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत कार्रवाई होनी, चाहिए मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कुछ नहीं कहा. क्योंकि अगली सुनवाई 14 मार्च को है. इस बहस के दौरान आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को लेकर कोर्ट ने कड़े शब्द कहे.
इस बीच पुलवामा आतंकी हमले के शहीदों के परिवार पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकाने पर हुए भारत हवाई हमले के सबूत मांग रहे हैं. ये सवाल भी लगातार उठ रहा है कि क्या शहीदों को लेकर नेता, मंत्री या अफ़सर सिर्फ़ बयानबाज़ी या दिखावा कर रहे हैं. बिहार के बेगुसराय में ये कैंडल मार्च शहीद पिंटू सिंह के गांव वालों ने निकाला है. सीआरपीएफ़ जवान पिंटू सिंह कुपवाड़ा में हुई आतंकी मुठभेड़ में शहीद हुए थे. 3 मार्च को जब पटना एयरपोर्ट पर उनका पार्थिव शरीर पहुंचा तो उसे लेने के लिए ना तो कोई नेता मौजूद था ना ही कोई अफ़सर, जबकि उसी समय पटना में प्रधानमंत्री मोदी की एक रैली हो रही थी जिसमें एनडीए के तमाम बड़े नेता मौजूद थे. पिंटू सिंह के गांव वाले इस बात से काफ़ी नाराज़ हैं.