'अग्निपथ' पर नीतीश ने सहयोगी BJP के सामने रुख किया साफ

पीएम मोदी ने नीतीश कुमार द्वारा राज्य के लिए असाधारण आर्थिक पैकेज को भी सार्वजनिक तौर पर ठुकरा दिया है. लिहाजा, 2017 में बीजेपी के साथ जाने के बावजूद भी नीतीश कुमार पीएम मोदी और अमित शाह के साथ अपने संबंध बेहतर नहीं कर पाए.

'अग्निपथ' पर नीतीश ने सहयोगी BJP के सामने रुख किया साफ

नीतीश कुमार, बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर पांचवीं बार अपना कार्यकाल चला रहे हैं. लेकिन उन्होंने बीते चार दिनों में अग्निपथ योजना को लेकर राज्य में हुई हिंसा पर जिस तरह की चुप्पी साधी हुई है वो ऐसा दर्शाता है कि वो जानबूझकर चुप हों. प्रदर्शनकारी अलग-अलग जगहों पर ट्रेन में आग लगा रहे हैं, रेलवे स्टेशनों को आग के हवाले किया जा रहा है, बीजेपी नेताओं के घरों, दफ्तर और कार पर हमला हो रहा है. और ये सब नीतीश कुमार की सहयोगी पार्टी बीजेपी के साथ हो रहा है. प्रदर्शनकारियों के हमलों के बाद दोनों ही सहयोगियों के बीच अब तनाव का माहोल है. 

नीतीश कुमार, जो पहले राज्य की नौकरशाही में सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते थे, ने डिप्टी सीएम रेणु देवी के घर पर प्रदर्शनकारियों के हमले के बाद सहानुभूति भरा एक शब्द नहीं कहा. राज्य में हिंसा के शुरू होने और हर बीतते दिन के साथ उसके बढ़ते दायरे को देखते हुए सीएम नीतीश कुमार ने युवा प्रदर्शनकारियों से हिंसक प्रदर्शन न करने जैसी कोई अपील तक नहीं की. 

नीतीश कुमार के इस रवैये ने बीजेपी को ये सोचने के लिए मजबूर किया कि आखिर वो किसकी तरफ हैं? पीएम नरेंद्र मोदी जिनका नीतीश कुमार के साथ हमेशा से ही जटिल रिश्ता रहा है, ने राज्य में 10 बीजेपी नेताओं को अतिरिक्त सुरक्षा देकर ये तो साफ कर दिया कि अब उनका नीतीश कुमार सरकार पर भरोसा नहीं रहा है. 

दरअसल, बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने राज्य में पार्टी के शीर्ष नेताओं की सुरक्षा को लेकर गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त की थी. इसके बाद ही केंद्र ने इन नेताओं की सुरक्षा बढ़ाने का फैसला लिया. अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान खुद संजय जायसवाल के घर पर तोड़फोड़ हुई थी. संजय जायसवाल ने इन घटनाओं के लिए नीतीश कुमार सरकार पर जानबूझकर ऐसी घटनाओं को अनदेखा करने का आरोप भी लगाया था. बिहार बीजेपी अध्यक्ष के आरोपों के बाद जेडीयू ने जवाब दिया था कि उनके शासन में किसी को संरक्षण देने की जरूर नहीं है. 

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प्रदर्शन के दौरान रेलवे की सैंकड़ों करोड़ की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया. नीतीश कुमार खुद देश के रेल मंत्री रह चुके हैं. वो ये अच्छे से जानते हैं कि बिहार जैसे राज्य में प्रदर्शनकारी प्रदर्शन के दौरान रेल और रेलवे ट्रैक को निशाना बना सकते हैं. फिर भी उन्होंने समय रहते सुरक्षा को बढ़ाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए. बीते तीन दिनों से हो रहे प्रदर्शन के बीच नीतीश कुमार ने अपने अधिकारियों को ऐसे कोई निर्देश नहीं दिए जिससे की हिंसा को कम किय जा सके. 

इन सब के बीच सवाल ये है कि आखिर नीतीश कुमार इतना कुछ देखने के बाद भी 'मौन' क्यों हैं? मैनें उनकी पार्टी के कई नेताओं और बिहार काडर के दो अधिकारियों से बात भी जो नीतीश कुमार के करीबी मानें जाते हैं. उन्होंने बताया कि नीतीश कुमार को लगता है कि अग्निपथ योजना को गलत तरीके से तैयार किया गया है. और ये उत्तर भारत के युवाओं के लिए कहीं से भी सही नहीं है. राज्य में हो रही हिंसा को नजरअंदाज करते हुए नीतीश कुमार बीजेपी को संदेश देना चाहते हैं कि उन्हें इस योजना को वापस लेना चाहिए.

बिहार काडर के एक अधिकारी ने बताया कि नीतीश कुमार जिस स्थिति में हैं, वो इस योजना का कैसे भी समर्थन नहीं कर सकते, जिसे उत्तर भारत के युवा पहले ही अस्वीकार कर चुके हैं. बिहार के लोग सरकारी नौकरी पर देश के दूसरे किसी राज्य की तुलना में सबसे ज्यादा निर्भर रहते हैं. क्या बीजेपी को लगता है कि नीतीश कुमार मतदाताओं के नाराज होने से खुश होंगे, खास कर तब जब बिहार में विपक्ष भी इस योजना के विरोध में है? 

जेडीयू के एक नेता से मैनें बात की तो उन्होंने बताया कि नीतीश जी एक अनुभवी प्रशासक हैं और मसौदा तैयार करने (कानून) में उत्कृष्ट हैं. उन्हें लगता है कि केंद्र में मोदी की अगुवाई में कोई भी किसी योजना या बिल पर विस्तार से बात नहीं करता है. बगैर किसी चर्चा के ही योजना या बिलों को बनाया या पारित किया जाता है. यही वजह है कि आगे चलकर उन्हें ऐसे बिलों ( कृषि कानून, जमीन अधिग्रहण कानू जैसे) को वापस लेना पड़ा है. जिस तरह से अग्निपथ योजना में आए दिन बदलाव किए जा रहे हैं उससे ये तो साफ है कि मोदी पहले योजना लाते हैं और बाद में सोचते हैं. नीतीश कुमार ऐसे माहौल में अपने पुराने दोस्त स्व. अरुण जेटली को काफी याद करते हैं, जिन्हें किसी योजना या बिल को बनाने में काफी अच्छा अनुभव था. 

ये पूरी तरह से संयोगवश नहीं है कि बीजेपी के नेताओं द्वारा पहले नीतीश कुमार को नुकसान पहुंचाया गया. पीएम मोदी और अमित शाह नीतीश कुमार के साथ हैं. 

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सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार युवा बेरोजगारों की सूची में बिहार देश में दूसरे नंबर का राज्य है. यहां 38.84 लाख युवा नौकरी की तलाश में हैं. बिहार में बेरोजगारी दर 12.8 फीसदी है जो राष्ट्रीय स्तर 7.7 फीसदी से कहीं ज्यादा है. बिहार में निजी औद्योगीकरण सीमित होने की वजह से यहां के युवाओं के पास सरकारी नौकरी में जाने का ही विकल्प बचता है. राज्य की जीडीपी में निजी औद्योगीकरण की हिस्सेदारी 19 फीसदी की है. सीएम नीतीश कुमार के मौजूदा कार्यकाल में भी कई फैक्सट्रियां बंद हुई हैं. यह नीतीश कुमार के 'अग्निपथ' योजना के विरोध की जड़ है. 

पीएम मोदी ने नीतीश कुमार द्वारा राज्य के लिए असाधारण आर्थिक पैकेज को भी सार्वजनिक तौर पर ठुकरा दिया है. लिहाजा, 2017 में बीजेपी के साथ जाने के बावजूद भी नीतीश कुमार पीएम मोदी और अमित शाह के साथ अपने संबंध बेहतर नहीं कर पाए. आपसी मनमुटाव और सावर्जनिक छींटाकशी एक आम सी बात है. नीतीश कुमार ने तो पिछले दिनों अमित शाह के उस बयान का भी मजाक बनाया था जिसमें उन्होंने इतिहास के दोबारा और जरूर लिखे जाने की बात कही थी. नीतीश कुमार राज्य में जातिगत जनगणना चाहते हैं, बीजेपी इसके खिलाफ है. इसलिए नीतीश कुमार ने बिहार में अपने विरोधियों से मिलकर इस बात की घोषणा की कि वो जल्द ही राज्य में जाति की गिनती का काम शुरू करवाएंगे.  

बीते कुछ हफ्तों में, नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को राज्यसभा ना भेजे जाने को लेकर उनसे केंद्रीय इस्पात मंत्री का पद छोड़ने को कहा. साथ ही उनसे उनटा पटना वाला बंगला भी छीन लिया. इसमें सिंह का का क्या अपराध है? ये सब इसलिए किया गया क्योंकि वो नीतीश कुमार की तुलना में पीएम मोदी से करीब हो चुके हैं. 

दो दिन पहले ऐसी चर्चा थी कि नीतीश कुमार ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल नाथ के साथ लंबी बातचीत की है. कमलनाथ ने उनसे अनुरोध किया था कि वो बीजेपी का साथ छोड़ दें. पहले नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होते हैं लेकिन बाद में सिर्फ इसलिए साथ आते हैं ताकि वो राज्य के मुख्यमंत्री बने रहें. एक दूसरे का सहयोग पारस्परिक लाभ को ध्यान में रहकर किया जाता है। एक दूसरे को धोखा देने का डर ही दोनों पार्टी को अब बातचीत के लिए मजबूर कर रहा है. यह वास्तव में इसे छोड़ने की तुलना में अधिक प्रभावी हो सकता है।

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.