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This Article is From Jul 01, 2021

पेट्रोल के दाम में दिल्ली से आगे बिहार, महंगाई की भारी मार; पेट्रोल-डीजल 100 के पार

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    July 01, 2021 00:40 IST
    • Published On July 01, 2021 00:40 IST
    • Last Updated On July 01, 2021 00:40 IST

भारत की आम जनता ने एक रिकार्ड बनाया है. आम खाने का नहीं बल्कि महंगा पेट्रोल खरीद कर सरकार को कई लाख करोड़ टैक्स देने का रिकार्ड. ये वो रिकार्ड है जो अमरीका की पूरी आबादी नहीं बना सकती. उपभोक्तावादी अमेरिकी लोग इस त्याग को समझ ही नहीं सकते हैं. अमेरिकी लोगों को अपनी सरकार से मंदी के संकट में 220 लाख करोड़ का पैकेज मिला. जिनकी नौकरी नहीं गई है उन्हें भी तीन तीन हज़ार डॉलर का चेक मिला. भारतीय रुपये में दो लाख होता है. परिवार के हर सदस्य को मिला. ऐसे लोगों ने चेक ले भी लिया. आध्यात्मिक भारत के लोगों को ऐसा कुछ नहीं मिला, मिलता भी तो शायद वे ठुकरा देते. क्या पता इसलिए भी सरकार ने नहीं दिया. वक्त आ गया है कि भारत के सभी पेशे के बर्बाद लोग अमेरिका की निंदा करें कि हम बर्बाद हो गए लेकिन हमने तो डोल नहीं लिया. उसकी जगह लोन लिया. भारत को इस हीन भावना से निकलना ही होगा, अमेरिका की निंदा करनी ही होगी. मंत्रियों को भी ट्वीट कर भारत की मिडिल क्लास जनता को इस बात का श्रेय देना चाहिए कि सरकार से कुछ न मांगने के लिए आभार. और तो और आपके सहयोग से प्रेरित होकर हम पेट्रोल और डीज़ल के दाम और बढ़ाएंगे. 

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, तेलंगाना, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा, केरल में पेट्रोल 100 रुपये लीटर हो चुका है. जिन राज्यों में पेट्रोल अभी भी सौ रुपये से सस्ता है उन्हें कितना बुरा लग रहा होगा कि उन्हें सौ रुपये लीटर खरीदने का मौका नहीं मिल रहा है. दिल्ली के लोगों को तो खुद से सोचना चाहिए कि दिल्ली प्रति व्यक्ति आय के बारे में भारत में तीसरे नंबर पर है फिर भी 100 रुपये लीटर पेट्रोल खरीद नहीं रहे हैं. 98 रुपये 81 पैसे लीटर खरीद रहे हैं. जबकि गरीब राज्य बिहार के लोग 100 रुपये से अधिक दाम पर पेट्रोल खरीदने के मामले में दिल्ली से आगे निकल चुके हैं. 

मेरा नज़रिया बदला है. पहले लगा कि जनता के साथ ज़्यादती हो रही है अब समझ आया कि जनता ही ज़्यादा देना चाहती है. तमिलनाडु के वित्त मंत्री का बयान है कि केंद्र सरकार ने 2020-21 में पेट्रोल डीज़ल से 3.9 लाख करोड़ का टैक्स वसूला है. 2014-15 में जनता बहुत कम टैक्स दिया करती थी कोई 72000 करोड़ लेकिन जैसे ही जनता अमीर हो गई 2019-20 तक आते आते दो लाख करोड़ से अधिक टैक्स देने लगी. जैसे ही बिज़नेस बंद होने और नौकरी जाने से जनता और अमीर हुई है, वह चार लाख के करीब टैक्स देने लगी है. हमने कई लोगों से पूछने का प्रयास किया कि अपनी निजी अर्थव्यवस्था चौपट कर देश की अर्थव्यवस्था के लिए महंगा पेट्रोल खरीदने के बाद क्या उनमें गर्व की फीलिंग आ रही है? 

पता नहीं ये लोग क्यों नहीं गर्व कर पा रहे हैं. हमने कोशिश कि 100 रुपये से अधिक देकर पेट्रोल खरीदने वाले लोग गर्व कर सकें लेकिन वो नहीं कर पा रहे हैं. हम सबको मिलकर पहले खुद को और फिर समाज को समझाना होगा कि देश के लिए महंगा तेल खरीद रहे हैं. आगे ज़रूरत पड़ी तो और महंगा तेल खरीदेंगे. प्रद्युम्न सिंह तोमर मध्य प्रदेश के उद्योग मंत्री हैं. आपने वो विज्ञापन देखा है जब लाइफ में हो आराम तो आइडिया आते हैं, देखिएगा. मंत्री जी ने कहा है कि दाम बढ़ गए तो क्या हुआ, साइकिल चलाओ. सेहत अच्छी रहेगी.

इतनी अच्छी बात कोई मंत्री ही कह सकते हैं क्योंकि जो मन में आए उसकी बात कहने का दिल मंत्रियों को ही तो करता है. तभी तो हमें भाषण पसंद हैं. अमेरिका में बेरोज़गारों को अब तक 55 लाख करोड़ भत्ते के रूप में दिया जा चुका है. 55 लाख करोड़ का पैकेज, वह भी लोन के रूप में नहीं, सीधा कैश. 

महामारी के दौरान अमेरिका के बेरोज़गारों को हर सप्ताह भारतीय रुपये में 22,200 रुपये मिल रहे थे. लेकिन भारत के बेरोज़गार हर सप्ताह उस परीक्षा का फार्म भरने में करोड़ों रुपये सरकार को देने में लगे थे जिसका रिज़ल्ट निकलवाने के लिए उन्हें लाठी खानी पड़ रही थी. सारे राज्यों की सरकारी भर्ती परीक्षाओं की फीस जोड़ लें तो कुल राशि कई सौ करोड़ की हो जाएगी. ऐसी कोई परीक्षा नहीं जिसे लेकर केस मुकदमा नहीं, आंदोलन नहीं. रिजल्ट निकल भी जाए तो विवाद नहीं, विवाद सुलझ जाए तो फिर ज्वाइनिंग नहीं. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी ने बड़ी संख्या में युवाओं को धारा 370, श्रीनगर में प्लाट ख़रीदने. नेहरू मुसलमान हैं और मुसलमानों से नफरत के मीम भेज भेज कर, भेज भेज कर राष्ट्रीय मामलों में एक्सपर्ट तो बना दिया लेकिन अभी तक वे इस फार्मूला को क्रैक नहीं कर पाए हैं कि सरकारी भर्ती परीक्षा का क्या करें. भारत के युवा बेरोज़गार अमेरिका के स्वार्थी बेरोज़गारों की तरह नहीं हैं. हमारे बेरोज़गार सरकार को पैसे देते हैं, ताकि वह लाठी चलवाए और FIR भी करे. युवाओं के इस त्याग को कम से कम अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ज़रूर मान्यता दें और अपने देश के बेरोज़गारों से कहें कि देखो भारत के बेरोज़गार सरकार को करोड़ों रुपये देते हैं और लाठी खाते हैं. इसलिए अमेरिकी सरकार यहां के बेरोज़गारों को भत्ता देने के 55 लाख करोड़ की योजना को बंद करती है. 

सरकार जनता का मन जानती है तभी तो सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कोविड से मरने वाले परिवारों को मुआवज़ा नहीं देगी. सरकार ने मुआवज़ा न देने के लिए बहुत मेहनत की. हलफनामा लिखा, पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट को पढ़ा, हवाला दिया और फिर कहा कि मामला यह नहीं कि सरकार इसका खर्च नहीं उठा सकती है बल्कि मामला यह है कि देश के वित्तीय संसाधनों का तार्किक इस्तेमाल कैसे किया जाए. यहां तक पहुंचने से पहले एक सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि आपदा प्रबंधन कानून के तहत अनिवार्य मुआवजा केवल 12 तरह की प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ आदि पर ही लागू होता है. COVID के प्रसार और प्रभाव के कारण प्राकृतिक आपदाओं के लिए मुआवजे को लागू करना उचित नहीं होगा. इसे कोरोना महामारी पर लागू नहीं किया जा सकता है. अनुग्रह राशि देने के लिए संसाधनों का उपयोग महामारी के खिलाफ कार्यवाही और स्वास्थ्य व्यय को प्रभावित कर सकता है. ये अच्छा करने की बजाए नुकसान का कारण बन सकता है.

सेम टू सेम आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत जनता मास्क न पहनने पर फाइन दे रही है. दिल्ली में ही तालाबंदी खुलने के बाद पहले तीन हफ्ते में लोगों ने सात करोड़ से अधिक की राशि फाइन में दे दी. गुजरात की जनता ने 11 जून तक 99 करोड़ की फाइन दी है. पूरे देश में सोचिए लोगों ने कितने पैसे दिए होंगे. ये सब आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत किया जा रहा है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की गाइडलाइन में लिखा है कि सरकार केवल अनुग्रह राशि नहीं देगी बल्कि जीविका के साधनों की बहाली के लिए सहायता भी करेगी. ये लाइन बहुत अहम है. उसी सेम टू सेम आपदा प्रबंधन एक्ट में लिखा है कि यह गाइडलाइन बनानी होगी- शिविरों में खाना, पानी, इलाज और सफाई की व्यवस्था. विधवाओं और अनाथों के लिए विशेष व्यवस्था. मरने पर मिलने वाली सहायता राशि, टूटे घरों के लिए मुआवज़ा देना, जीवन यापन के साधनों को बहाल करने हेतु. 

दरअसल किसी ने सोचा नहीं होगा कि कोई गौरव बंसल और रीपक कंसल जैसा कोई वकील होगा जो सबको मुआवज़ा दिलाने के अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट चला जाएगा. आक्सीजन के मामले में, भोजन के मामले में और मुआवज़े के मामले में ऐसे वकील आगे न आए होते, सुप्रीम कोर्ट ने पहल न की होती तो क्या होता. लोग सिर्फ महामारी से नहीं मरे हैं, सरकार की लापरवाही से भी मरे हैं. हेडलाइन बदलवा देने से सच्चाई नहीं बदल जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने आज तय कर दिया कि सरकार को मुआवज़ा देना होगा. कोर्ट ने सरकार की दलील को ठुकरा दी कि आपदा कानून में मुआवज़े का प्रावधना अनिवार्य नहीं है. कोर्ट ने सरकार को बताया कि कानून में ही लिखा है कि राष्ट्रीय प्राधिकरण को मृत व्यक्ति के परिवारों को मुआवजा देने के लिए गाइडलाइन बनानी ही होगी. छह हफ्ते के भीतर प्रत्येक कोविड पीड़ित को भुगतान की जाने वाली अनुग्रह राशि तय करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण NDMA को दिशानिर्देश तैयार करने के लिए कहा है. कितना मुआवज़ा दिया जाएगा यह तय किया जाना चाहिए. NDMA के पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं.

गौरव बंसल ने कहा है कि “आज हमारी जनहित याचिका पर निर्देश दिया है कि वह मुआवज़ा हर उस परिवार को दे जिनका कोई सदस्य कोविड के कारण मरा है. हमारी दलील थी कि सरकार का इस तरीके से मना करना अवैध है. तर्कसंगत नहीं है. सरकार की कानूनी और लीगल ड्यूटी नहीं है. सरकार से कहा है कि छह वीक के अंदर अपनी नीति लाए. अमाउंट के सिलसिले में कोर्ट ने कहा है कि जो भी होना है अपने सारे फंड को ध्यान में रखते हुए करें मगर वो रीजनलेबल अमाउंट होना चाहिए. आज सरकार को निर्देश दिया है कि छह वीक के अंदर लाएं. एक नेशनल इंश्योरेंस स्कीम पर विचार करें जिससे सरकार पर आगे वित्तीय भार न आए. सरकार प्रीमियम दे. आप कह सकते हैं कि एक्स ग्रेशिया दिया जा सकता है.”

आप सोच नहीं सकते कि गौरव कुमार बंसल ने उन परिवारों के लिए क्या किया है जिनके किसी अपने की मौत कोविड से हुई है. अगर ऐसे परिवारों के यहां सरकार का मुआवज़ा पहुंचे तो गर्व से कहिएगा कि धन्यवाद गौरव बंसल जी. उनका फोटो लगाकर घर के बाहर और नज़दीक के बैंक के सामने भी लगाइये. जहां पर आजकल अलग तरह का पोस्टर लगाने को कहा जा रहा है. बैंक वाले भी क्या कर सकते हैं. अब अगर चिट्ठी आएगी कि पोस्टर लगाने हैं तो लगाना पड़ता है. खैर धन्यवाद गौरव बंसल जी, धन्यवाद रीपक कंसल जी वाला पोस्टर लगा दीजिएगा. ऊपर बड़े अक्षरों में लिखा होना चाहिए कि धन्यवाद सुप्रीम कोर्ट जी.

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला करीब चार लाख परिवारों को सहारा देगा. जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह का यह फैसला है. जस्टिस अशोक भूषण का यह आखिरी फैसला था. वे रिटायर हो रहे हैं. चीफ जस्टिस एनवी रमना ने उनके बारे में कहा है कि जस्टिस भूषण के फैसले उनके कल्याणकारी और मानवतावादी दृष्टिकोण के सबूत हैं. कोर्ट ने बीमा का विकल्प सुझाया है जिसकी बात 15 वें वित्त आयोग में की गई है. “हर राज्य के आपदा मृत्यु दर डाटा के आधार पर, किसी बीमा कम्पनी की साझेदारी में एक राष्ट्रीय बीमा कंपनी स्थापित की जा सकती है. राज्य सरकारें बीमा प्रीमियम देकर इस योजना में शामिल हो सकती हैं. केंद्र सरकार भी योगदान दे सकती है. बीमाधारक की मृत्यु होने पर बीमा कम्पनियां अलग-अलग चरणों में परिजनों को राशि का भुगतान करेंगी. बीमा योजना को इस प्रकार डिजाइन किया जा सकता है कि वह बुनयादी तौर पर एक सामाजिक संरक्षण योजना की तरह कार्य करे. इससे सरकार पर प्रशासनिक  बोझ नहीं बढ़ेगा, क्योंकि पे-आउट की जम्मेदारी बीमा कम्पनियों की होती है.”

पिछले साल 9 नवंबर को 15 वें वित्त आयोग ने इसका सुझाव दिया था जो हेडलाइन नहीं बनी होगी क्योंकि इसका संबंध आम जनता के हित से था. मंत्री जी के हित से नहीं था. पहली लहर में भी एक लाख से अधिक लोग मरे थे. अगर सरकार गंभीर होती तो वित्त आयोग की सुझाव पर पहल करती. आपने कोई ऐसी हेडलाइन देखी कि कोविड से मरने वालों को परिवार को कुछ मुआवज़ा मिले. इसके लिए सरकार 15 वें वित्त आयोग की सिफारिशानुसार उच्चस्तरीय बैठक कर रही है. अगर पुराने अखबारों को रद्दी में नहीं बेचा है तो चेक कीजिए. 

पहले केंद्र ने कहा कि  COVID के पीड़ितों को 4 लाख का मुआवजा नहीं दिया जा सकता है.आपदा प्रबंधन कानून के तहत अनिवार्य मुआवजा केवल प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ आदि पर ही लागू होता है. एक बीमारी के लिए अनुग्रह राशि देना और दूसरी के लिए इसे अस्वीकार करना अनुचित होगा. सभी COVID पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान राज्यों के वित्तीय सामर्थ्य से बाहर है. COVID के प्रसार और प्रभाव के कारण प्राकृतिक आपदाओं के लिए मुआवजे को लागू करना उचित नहीं होगा. इसे कोरोना महामारी पर लागू नहीं किया जा सकता है. महामारी के कारण 3,85,000 से अधिक मौतें हुई हैं जिनके और भी बढ़ने की संभावना है. केंद्र ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले ही कहते हैं कि नीतिगत मामलों को कार्यपालिका पर छोड़ देना चाहिए और अदालत कार्यपालिका की ओर से फैसले नहीं ले सक. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के रुख के चलते केंद्र ने पैंतरा बदल लिया. लिखित जवाब दाखिल करते हुए  केंद्र की ओर से कहा गया कि मुद्दा राजकोषीय सामर्थ्य का नहीं है, बल्कि देश के वित्तीय और अन्य सभी संसाधनों के सबसे तर्कसंगत, विवेकपूर्ण और सही उपयोग का है. ऐसे में आपदा प्रबंधन कानून के न्यूनतम राहत के मानक को ध्यान में रखने की बजाए भविष्य जरूरतों को ध्यान में रखा जाए. 

विपक्ष ने भी यही मांग खूब की लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया. न ही इस ज़रूरी मांग को आपने पहले पन्ने पर हेडलाइन के रूप में देखा होगा कि विपक्ष जनता की परवाह कर रहा है. राहुल गांधी ने लगातार ट्वीट किया कि जिन लोगों की मौत कोविड से हुई है उनके परिजनों को मुआवज़ा मिलना चाहिए.

बिहार सरकार ने कोविड से मरने वाले लोगों के परिजनों को चार लाख देने का ऐलान किया है. जिनकी मौत सरकारी अस्पताल में हुई है उनके परिजनों को मुआवज़ा मिलने भी लगा है. जिनकी मौत प्राइवेट अस्पतालो में हुई है, मुआवज़ा उन्हें भी मिल रहा है लेकिन प्रक्रिया लंबी हो गई. जब बिहार दे सकता है तो केंद्र सरकार क्यों नहीं. यही नहीं ब्लैक फंगस की दवा नहीं थी. दवा में देरी होने से जान तो गई ही लोगों को समय पर इलाज भी नहीं मिला. वकील रीपक कंसल ने एक और याचिका दायर की है कि ब्लैक फंगस के चलते जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिजनों को मुआवज़ा मिले. 

टीका की याद आ ही जाती है. जब से हेडलाइन चारों तरफ छपी है कि भारत ने अमेरिका से ज्यादा टीका दिया है तब से ऐसी हेडलाइन अखबारों से गायब हो गई है कि 21 जून को 90 लाख टीका देने के बाद लगातार गिरावट आ रही है. नौ दिन में हम एक भी दिन वापस 21 दिन के रिकार्ड को नहीं छू सके. पहले पन्ने से टीके की कमी की खबरें गायब हैं. जबकि लोग टीका केंद्र पर आते हैं, इंतज़ार करते हैं और लौट जाते हैं. लेकिन हेडलाइन मैनेज हो चुका है तो ये खबर अब प्रमुख खबर नहीं रही. 

बोलसोनारो सरकार ने भारत बायोटेक से कोवैक्सीन के 2 करोड़ डोज़ की डील की थी. 32 करोड़ डॉलर की. राष्ट्रपति बोलसोनारो पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा. उसकी जांच हो रही है. आरोप है कि कोवैक्सीन महंगी भी है और इसे मंज़ूरी भी नहीं मिली है. ब्राज़ील के ट्वीटर पर #covaxingate ट्रेंड कर रहा है. वहां के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि घोटाले की जानकारी राष्ट्रपति को दी थी मगर उन्होंने कुछ नहीं किया. ब्राज़ील ने कोवैक्सीन के साथ डील निलंबित कर दिया है. भारत बायोटेक ने भ्रष्टाचार के आरोपों से इनकार किया है. भारत में इनकार ही काफी है. खंडन भी असरदार होता है. जांच होती नहीं, होती है तो बंद लिफाफे में रिपोर्ट आती है. कुछ याद आया. सर्च कीजिए बंद लिफाफे में जांच की रिपोर्ट किस मामले में आई थी.  

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